हर साल 29 अक्टूबर को वर्ल्ड स्ट्रोक डे मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को स्ट्रोक के खतरों के बारे में जागरूक करना है. स्ट्रोक का खतरा वैश्विक स्तर पर बढ़ता जा रहा है. कुछ दशक पहले तक इसे उम्र बढ़ने के साथ होने वाली समस्या के तौर पर जाना जाता था, हालांकि अब युवा आबादी भी इसकी शिकार होती जा रही है. आइए आज जानते हैं ब्रेन स्ट्रोक क्या है और इसकी शुरुआत कैसे होती है.
ब्रेन स्ट्रोक क्या है
ब्रेन स्ट्रोक जिसे लकवा भी कहते हैं एक गंभीर मेडिकल स्थिति है, जो ब्रेन की आर्टरीज यानी धमनियों में ब्लॉकेज या ब्रेक के कारण होती है. इसकी वजह से ब्रेन के किसी हिस्से में ब्लड की आपूर्ति सही तरह से नहीं हो पाती है. जिसकी वजह से ब्रेन सेल्स को नुकसान पहुंचता है.
कितने प्रकार के होते हैं ब्रेन स्ट्रोक
अब यदि बात की जाए की ब्रेन स्ट्रोक कितने प्रकार के होते हैं तो सामने आया है कि स्ट्रोक दो प्रकार के होते हैं. पहला इस्किमिक ब्रेन स्ट्रोक और दूसरा हेमोरेजिक ब्रेन स्ट्रोक. दिमाग तक खून पहुंचाने वाली नसें जब किसी कारण से ब्लॉक हो जाती हैं, तो इस स्थिति को इस्किमिक ब्रेन स्ट्रोक कहा जाता है. वहीं, हेमोरेजिक ब्रेन स्ट्रोक या ब्रेन हैमरेज तब होता है जब दिमाग की नसें फट जाती हैं.
तैयार हो रहा ब्रेन स्ट्रोक का डाटा बैंक
ब्रेन स्ट्रोक के इलाज को बेहतर बनाने के लिए देशभर में डाटा बैंक तैयार किया जा रहा है. इसके लिए एम्स, जीबी पंत सहित देशभर के बड़े अस्पताल अपने यहां आने वाले मरीजों की जानकारी जुटा कर सेंट्रलाइज्ड प्लेटफार्म पर अपलोड कर रहे हैं. कुछ सालों का डाटा एकत्रित होने के बाद इनपर अध्ययन किया जाएगा. इसके अलावा समय को लेकर भी अध्ययन चल रहा है, ताकि उपचार नीति में सुधार किया जा सके.
स्ट्रोक पड़ने पर दिखते हैं ये संकेत
1. शरीर के एक तरफ, चेहरे, बांह या पैर में सुन्नता या कमजोरी.
2. बात करने में कठिनाई या समझने में दिक्कत.
3. एक या दोनों आंखों से देखने में परेशानी.
4. चलने में परेशानी होना, बेचैनी महसूस होना या अपना संतुलन खोना.
5. बिना किसी स्पष्ट कारण के गंभीर सिरदर्द.
6. हाथ से लेकर पैर तक का शरीर का एक हिस्सा लकवाग्रस्त होना.
7. आवाज सही नहीं आना या मुंह का टेढ़ा होना भी स्ट्रोक के ही लक्षण है.
बदल रहा ट्रेंड
डॉक्टरों को मुताबिक पहले ब्रेन स्ट्रोक 60 की उम्र के बाद देखने को मिलता था, लेकिन अब 20 से 30 की उम्र के नौजवान भी इसका शिकार हो रहे हैं. हालांकि इसका कारण क्या है, यह अध्ययन के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा. सर्दियों में ब्रेन स्ट्रोक के केस ज्यादा आते हैं. ब्रेन स्ट्रोक के रिस्क फैक्टर पर नजर डालें तो इससे बचाव के तरीके भी सामने आ जाते हैं. बचाव का सबसे अहम तरीका है हेल्दी डाइट. फल, सब्जियां, हरी पत्तेदार सब्जियां और साबुत अनाज का सेवन ब्रेन स्ट्रोक के खतरे को कम करता है. नमक का कम सेवन भी लाभकारी है.
हर साल इतने मामले आ रहे
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आंकड़ों के मुताबिक हर साल डेढ़ करोड़ से अधिक लोग स्ट्रोक के शिकार हो रहे हैं और करीब 50 लाख लोगों की मौत हो जाती है. आंकड़ों के मुताबिक 45 वर्ष से कम उम्र के लगभग 70,000 अमेरिकियों को स्ट्रोक होता है. लैंसेट कमीशन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में स्ट्रोक हर साल लगभग 13 लाख लोगों को प्रभावित करता है.
देश में बढ़ रहे ब्रेन स्ट्रोक के केस को देखकर अनुमान लगाया जा रहा है कि साल 2050 तक स्ट्रोक से मरने वाले लोगों का आकड़ा 1 करोड़ हर साल तक पहुंच जाएगा. इतना ही नहीं यदि हालात नहीं सुधरे तो आने वाले 30 सालों में 50 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है. इस साल वर्ल्ड स्ट्रोक डे की थीम टुगेदर वी आर ग्रेटर देन स्ट्रोक है. इसका उद्देश्य लोगों को यह बताना है कि स्ट्रोक का उपचार संभव है और हम इसे हरा सकते हैं.
बरतनी चाहिए सावधानी
अध्ययनकर्ता कहते हैं, यह प्रमाणित नहीं होता है कि माइग्रेन की समस्या सीधे तौर पर स्ट्रोक का कारण बनती है, हालांकि अगर आपको माइग्रेन है तो आपको स्ट्रोक का खतरा थोड़ा अधिक हो सकता है. स्ट्रोक और माइग्रेन दोनों मस्तिष्क की ही समस्याएं हैं और कभी-कभी माइग्रेन के लक्षण स्ट्रोक की तरह ही हो सकते हैं. स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं, माइग्रेन से पीड़ित व्यक्ति जो धूम्रपान भी करते हैं उन्हें स्ट्रोक का जोखिम अधिक होता है.
हार्ट की समस्या है तो भी रहें अलर्ट
जिन लोगों को हृदय की समस्या है या जिनको जन्मजात ये परेशानी रहती है, उनमें भी स्ट्रोक होने का खतरा अधिक देखा जाता रहा है. रक्त के थक्के हृदय और मस्तिष्क दोनों रक्त वाहिकाओं के लिए समस्या बढ़ाने वाले हो सकते हैं और इससे हार्ट अटैक का भी खतरा रहता है. स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, जिन लोगों को हार्ट की समस्या रही है उन्हें स्ट्रोक को लेकर अलर्ट रहने की आवश्यकता है.
युवाओं में स्ट्रोक के कारण
युवा वयस्कों में स्ट्रोक के बढ़ते खतरे के लिए जिन जोखिम कारकों को प्रमुख माना जा रहा है, उनमें गड़बड़ लाइफस्टाइल, धूम्रपान-शराब का सेवन, मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या है. जिन लोगों के परिवार में किसी को स्ट्रोक हो चुका है उनमें भी इसका खतरा अधिक देखा जाता रहा है. स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं, कुछ प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएं जैसे माइग्रेन और हार्ट की बीमारी वाले लोगों में भी स्ट्रोक होने का खतरा अधिक हो सकता है.
स्ट्रोक पड़ने पर महिलाओं को ये दिक्कतें भी हो सकती हैं
हिचकी, जी मिचलाना, सीने में बेचैनी, थकान, सांस लेने में कठिनाई, तेज धड़कन. इससे अलग, पुरुषों की तुलना में महिलाओं में कमजोरी का अनुभव और कॉग्नीटिव डिस्फंक्शन ज्यादा देखा जाता है. वैज्ञानिकों का मानना है कि महिलाओं और पुरुषों में अलग-अलग अनुभव के पीछे हॉर्मोन कारण बन सकते हैं. महिलाओं का एस्ट्रोजन हॉर्मोन स्ट्रोक के खिलाफ सुरक्षा देने वाला देखा गया. ऐसा एस्ट्रोजन के एंटी इंफ्लामेटरी गुण की वजह से हो सकता है, जो ब्रेन डैमेज से बचाता है. साथ ही यह हॉर्मोन internal carotid artery में ब्लड फ्लो बढ़ाता है, जिससे दिमाग को ऑक्सीजन से भरपूर खून मिलता है.
ब्रेन स्ट्रोक से बचाव के लिए क्या करें
ब्लड प्रेशर कंट्रोल: हाई ब्लड प्रेशर स्ट्रोक का एक बहुत बड़ा रिस्क फैक्टर है. ब्लड प्रेशर की रेगुलर मॉनिटरिंग और जरूरत पड़ने पर डाइट, एक्सरसाइज, दवा के जरिए मैनेजमेंट करना भी जरूरी है.
हेल्दी डाइट: फल, सब्जियां, पूरे अनाज और लीन प्रोटीन से भरपूर आहार खाएं. सैट्युरेटेड और ट्रांस फैट, नमक और अतिरिक्त चीनी को सीमित करें.
नियमित रूप से एक्सरसाइज करें: हफ्ते में कम से कम 5 दिन 30 मिनट का एक्सरसाइज करें.
सिगरेट छोड़ें: सिगरेट पीने से आपके आपके शरीर में स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है. सिगरेट छोड़ने से तुरंत और लंबे समय तक हेल्थ बेनिफिट हो सकता है.
शराब का सेवन बंद: अधिक मात्रा में शराब पीने से ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है और स्ट्रोक का खतरा भी.
डायबिटीज का मैंजमेंट: हेल्दी डाइट, एक्सरसाइज और डॉक्टर के सुझाव के अनुसार दवाओं के माध्यम से ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल में रखें.
हेल्दी वजन बनाए रखें: अधिक मोटापा या ओबेसिटी स्ट्रोक के खतरे को बढ़ा सकता है.
कोलेस्ट्रॉल का मैनेजमेंट: बढ़े हुए LDL (बुरा) कोलेस्ट्रॉल आपके धमनियों में प्लाक जमने के खतरे को बढ़ा सकता है. दवाइयों और आहार में परिवर्तन से कोलेस्ट्रॉल के लेवल को मैनेज किया जा सकता है.
पर्याप्त पानी पीना: डिहाइड्रेशन ब्लड क्लॉट के खतरे को बढ़ा सकता है, इसलिए दिन में पर्याप्त पानी पीना महत्वपूर्ण है.
तनाव को कम करें: तनाव स्ट्रोक के खतरे में योगदान कर सकता है. ध्यान या योग जैसी तनाव कम करने की तकनीकों को अपनाने से फायदे हो सकता है.
जल्द इलाज मिलना बहुत जरूरी
ब्रेन स्ट्रोक के मामले में जल्द से जल्द इलाज मिलना बहुत जरूरी है. इसलिए यदि किसी को ब्रेन स्ट्रोक हो, तो बिना देरी किए एंबुलेंस बुलाकर मरीज को अस्पताल पहुंचाना चाहिए. जब तक एंबुलेंस न पहुंच जाए, तब तक पीड़ित व्यक्ति को शांत और आरामदायक स्थान पर लिटाएं. उसे किसी प्रकार के दबाव में न आने दें. मरीज की सांसों पर नजर बनाए रखें और स्थिति के अनुरूप जरूरत पड़ने पर पानी पिलाएं. जहां मरीज को रखें, वहां पूरा वेंटिलेशन होना चाहिए. व्यक्ति को सांस लेने में किसी तरह की परेशानी न आने दें. फोन पर डॉक्टर की राय लेकर प्राथमिक उपचार दे सकते हैं. ऐसी स्थिति में एस्पिरिन देना लाभकारी हो सकता है, क्योंकि इससे खून पतला होता है और ब्लॉकेज खुलने की उम्मीद रहती है.