Bhagalpur Akhphodwa case: Chhattisgarh में Cataract Surgery के बाद 12 लोगों को दिखना हुआ बंद, Congress ने बताया 'आंखफोड़वा कांड' पार्ट-2... जानिए क्या था बिहार का 'आंखफोड़वा कांड'

Eye Infections After Cataract Surgery: छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद 12 लोगों को दिखाई देना बंद हो गया है.  इन लोगों को इलाज के लिए रायपुर के अस्पताल में भर्ती कराया गया है. सरकार ने मामले में जांच के आदेश दिए हैं तो उधर, कांग्रेस ने इसे बड़ी लापरवाही मानते हुए 'आंखफोड़वा कांड' पार्ट-2 बताया है.

Cataract Surgery Photo: Meta AI)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 29 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 6:31 PM IST
  • भागलपुर जिले में साल 1980 में हुआ था 'आंखफोड़वा कांड'
  • 33 लोगों की आंखें में डाल दिया गया था तेजाब

Eyesight Lost In Dantewada: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के दंतेवाड़ा जिला अस्पताल (Dantewada District Hospital) में मोतियाबिंद के ऑपरेशन (Cataract Surgery) के बाद कई लोगों की आंखों में संक्रमण हो गया है. 12 बुजुर्ग आदिवासियों को दिखना बंद हो गया है. सरकार ने मामले में जांच के आदेश दिए हैं. कई लोगों पर कार्रवाई की गई है. कांग्रेस ने इसे बड़ी लापरवाही मानते हुए 'आंखफोड़वा कांड' पार्ट-2 बताया है.  आइए जानते हैं आखिर बिहार का 'आंखफोड़वा कांड' क्या था? 

भागलपुर में हुआ था 'आंखफोड़वा कांड'
साल 1980 में बिहार के भागलपुर जिले में 'आंखफोड़वा कांड' हुआ था. इस कांड को बिहार पुलिस ने अंजाम दिया था. 33 लोगों की आंखें बोरा सिलने वाला सूआ जिसे टकुआ ये टेकुआ भी कहा जाता है से फोड़कर उसमें तेजाब डाल जला दी गई थीं.

पुलिस की इस कार्रवाई को शुरू में तो समर्थन मिला था लेकिन बाद में पूरे देश में इस कांड की आलोचना की गई थी. इस कांड के कुछ पीड़ित आज भी जिंदा हैं. बॉलीवुड फिल्म निर्माता प्रकाश झा ने भागलपुर के 'आंखफोड़वा कांड' पर एक फिल्म गंगाजल नाम से बनाई थी. एक्टर अजय देवगन इसमें मुख्य किरदार में थे. यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट हुई थी.

इन थानों में घटना को दिया गया था अंजाम
भागलपुर के कोतवाली थाना, अकबर नगर थाना, बरारी थाना, इशाकचक थाना, बांका के रजौन थाना सहित कई थानों में 'आंखफोड़वा कांड' को अंजाम दिया गया था. 'आंखफोड़वा कांड' के पीड़ितों की तस्वीरें उन दिनों अखबारों में छपी थी. इसके बाद देश के लोगों ने पुलिस द्वारा किए गए इस कांड की भर्त्सना की थी.

अब आप सोच रहे होंगे कि पुलिस ने आखिर 'आंखफोड़वा कांड' को क्यों अंजाम दिया था? पुलिस का मानना था कि बढ़े हुए अपराध पर तुरंत लगाम लगाने का इससे अच्छा तरीका कुछ नहीं हो सकता. पुलिस ने कानून को अपने हाथों में लेते हुए 33 अंडर ट्रायल कैदियों की आंखों को फोड़कर उसमें तेजाब डालकर उन्हें अंधा कर दिया था.

पुलिस वाले ऐसे देते थे घटना को अंजाम
अंडर ट्रायल कैदियों को पुलिस पहले थाने के अंदर जेल में ले जाती थी. वहां पर कैदी को जमीन पर लेटा दिया जाता था. उसके बाद कैदी के हाथों और पैरों को पुलिसकर्मी दबाकर रखते थे. इसके बाद एक पुलिसकर्मी आठ-नौ इंच मोटे सूआ को कैदी की दोनों आंखों में घोंप देते थे. इसके बाद दोनों आंखों को दबाकर बाहर निकाल दिया जाता था.

इस दौरान कैदी दर्द से खूब चिल्लाते थे फिर भी इस घटना को अंजाम दिया जाता था. इतना ही नहीं, आंखों को निकालने के बाद उसमें सिरिंज से तेजाब डाल दिया जाता था ताकि जीवनभर दिखाई नहीं दे. इस घटना को अंजाम देने के बाद कैदियों को उपचार के लिए अस्पताल तक नहीं ले जाया जाता था. उन्हें उसी तरह तड़पने के लिए छोड़ दिया जाता था.

पीड़ितों ने बताई थी आपबीती
कुछ पीड़ितों ने इस घटना की मीडिया में आपबीती बताई थी. उनका कहना था कि आंखों में टकुआ और तेजाब डालकर उनकी आंखों को फोड़ दिया गया था. इस घटना के अगले दिन थाने में डॉक्टर को बुलवाया गया था. डॉक्टर ने उनके साथ बातचीत की थी. डॉक्‍टर ने पूछा कि कोई ऐसा है, जिसे हल्‍का भी दिखाई पड़ रहा हो.

तब बंदियों को लगा शायद उनकी आंखों का उपचार किया जाएगा. कुछ बंदियों ने कहा कि उन्हें धुंधला जैसा दिखाई दे रहा है. इसके बाद में ऐसे बंदियों को दूसरे कमरे में ले जाया गया और फिर से उनकी आंखों में टकुआ डालकर तेजाब डाला गया, ताकि उन्हें फ‍िर कभी दिखाई न दे. पुलिस वाले तेजाब को ‘गंगाजल’ कहते थे.


 

Read more!

RECOMMENDED