July महीने की 25 तारीख है खास, 1977 के बाद से इसी दिन राष्ट्रपति लेते हैं पद की शपथ, लेकिन क्यों, जानिए

द्रौपदी मुर्मू से पहले देश में नौ राष्ट्रपति हुए हैं, जिन्होंने 25 जुलाई को शपथ ली थी. साल 1977 से यह सिलसिला जारी है, जब 25 जुलाई 1977 को नीलम संजीवा रेड्डी ने देश के राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी. 

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (फाइल फोटो)
मिथिलेश कुमार सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 24 जुलाई 2023,
  • अपडेटेड 12:10 AM IST
  • 25 जुलाई को राष्ट्रपति पद की शपथ लेने की बन गई है परंपरा 
  • राष्ट्रपति 5 साल की अवधि के लिए करते हैं पद धारण 

हर दिन इतिहास के पन्नों में अहम होता है. ऐसा ही 25 जुलाई के साथ भी है. भारत के लिए 25 जुलाई का दिन देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति को लेकर अहम है. जी हां, लगभग सभी राष्ट्रपतियों ने बिना किसी लिखित नियम के इसी दिन ही शपथ ली है. हर पांच साल बाद 25 जुलाई को भारत को नया राष्ट्रपति मिलता रहा है. हालांकि राजेंद्र प्रसाद, सर्वपल्ली राधाकृष्णन, जाकिर हुसैन और फखरुद्दीन अली अहमद ने इस दिन शपथ नहीं ली थी. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बाद जाकिर हुसैन और फखरुद्दीन अली अहमद राष्ट्रपति पद पर अपना कार्यकाल नहीं पूरा कर पाए थे. उनके निधन के बाद मध्यावधि चुनाव हुए. 

अभी तक इतने राष्ट्रपतियों ने ली है इस दिन शपथ
द्रौपदी मुर्मू से पहले देश में 9 राष्ट्रपति हुए हैं, जिन्होंने 25 जुलाई को शपथ ली थी. बता दें कि साल 1977 से यह सिलसिला जारी है, जब 25 जुलाई 1977 को नीलम संजीवा रेड्डी ने देश के राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी. इनके बाद ज्ञानी जैल सिंह, आर वेंकटरमन, शंकर दयाल शर्मा, केआर नारायणन, एपीजे अब्दुल कलाम, प्रतिभा देवीसिंह पाटिल, प्रणब मुखर्जी और रामनाथ कोविंद ने 25 जुलाई को ही राष्ट्रपति की शपथ ली थी.  इस तारीख को ही शपथ लेने की एक तरह से अब परंपरा बन गई है.

25 जुलाई को शपथ लेने वाले राष्ट्रपति
1. द्रौपदी मुर्मू- 25 जुलाई 2022.
2. रामनाथ कोविंद- 25 जुलाई 2017 से 25 जुलाई 2022.
3. प्रणब मुखर्जी- 25 जुलाई 2012 से 25 जुलाई 2017.
4. प्रतिभा पाटिल- 25 जुलाई 2007 से 25 जुलाई 2012.
5. एपीजे अब्दुल कलाम- 25 जुलाई 2002 से 25 जुलाई 2007.
6. केआर नारायणन- 25 जुलाई 1997 से 25 जुलाई 2002.
7. शंकर दयाल शर्मा- 25 जुलाई 1992 से 25 जुलाई 1997.
8. आर वेंकटरमन- 25 जुलाई 1987 से 25 जुलाई 1992.
9. ज्ञानी जैल सिंह- 25 जुलाई 1982 से 25 जुलाई 1987.
10. नीलम संजीव रेड्डी- 25 जुलाई 1977 से 25 जुलाई 1982

ऐसे क्यों होता है
बता दें भारत के इतिहास में कभी ऐसा नहीं हुआ है, जब कोई भी दिन बिना राष्ट्रपति के रहा हो. भारत में राष्ट्रपति का पद कभी भी खाली नहीं रहा. जिस दिन जिस राष्ट्रपति का कार्यकाल खत्म होता है, उसी दिन दूसरे राष्ट्रपति को शपथ दिला दी जाती है. 1950 में राजेंद्र प्रसाद सबसे पहले राष्ट्रपति बने और उनके बाद हमेशा कोई न कोई देश का राष्ट्रपति रहा. यदि कार्यकाल पर नजर डालेंगे तो जिस दिन एक राष्ट्रपति का कार्यकाल खत्म होता है, उसी दिन दूसरे राष्ट्रपति की शपथ भी हो जाती है. 1977 से 25 जुलाई के दिन ऐसा हो रहा है, इसलिए 25 जुलाई के दिन राष्ट्रपति पद के लिए शपथ दिलाई जाती है. भारत के संविधान के अनुच्छेद 56 के अनुसार, राष्ट्रपति अपने पद ग्रहण करने की तिथि से 5 साल की अवधि के लिए पद धारण करता है. अपनी पदावधि के अवसान के पश्चात् भी वह अपने पद पर तब तक बना रहता है, जब तक उसका उत्तराधिकारी उसका पद ग्रहण नहीं कर लेता है.

कौन लड़ सकता है राष्ट्रपति का चुनाव
राष्ट्रपति का चयन एक निर्वाचक मंडल की ओर किया जाता है, जिसमें संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य और राज्यों की विधान सभाओं एवं साथ ही राष्ट्रीय राजधानी, दिल्ली क्षेत्र और संघ शासित क्षेत्र, पुदुचेरी के निर्वाचित सदस्य सम्मिलित होते हैं. अनुच्‍छेद 58 के अनुसार, वो व्यक्ति राष्ट्रपति का चुनाव लड़ सकता है, जो भारत का नागरिक हो. साथ ही उसकी उम्र 35 साल से ज्यादा हो और लोक सभा का सदस्य होने के लिए अर्हित होना चाहिए. भारत सरकार या किसी भी राज्य सरकार के अधीन या किसी भी स्थानीय या अन्य प्राधिकरण के अधीन, उक्त किसी भी सरकार के नियंत्रणाधीन किसी भी लाभ का पदधारी नहीं होना चाहिए.

कैसे होता है राष्ट्रपति का चुनाव
1. राष्ट्रपति पद की दौड़ में हिस्सा लेने वाले प्रत्येक उम्मीदवार को अपना नामांकन दाखिल करना होता है. राष्ट्रपति चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति को इसके लिए 15000 रुपए से अधिक जमा करने होते हैं और 50 प्रस्तावकों और 50 समर्थकों की एक हस्ताक्षर की हुई सूची जमा करनी होती है. प्रस्तावक और समर्थक राष्ट्रपति चुनाव 2022 में मतदान करने के योग्य निर्वाचकों में से कोई भी हो सकता है. राष्ट्रपति चुनाव में वोट देने योग्य व्यक्ति केवल एक ही उम्मीदवार के नाम का प्रस्ताव या समर्थन कर सकता है. 
2. राष्ट्रपति चुनाव में सभी निर्वाचित विधायक अपने-अपने राज्य और केंद्र शाषित प्रदेश में तो वहीं सभी निर्वाचित सांसद राज्यसभा और लोकसभा में वोट करते हैं. वोट डालने के लिए निर्वाचित सांसदों और  निर्वाचित विधायकों को मतपत्र दिए जाते हैं. सांसदों को हरे रंग और विधायकों को गुलाबी रंग का मतपत्र दिया जाता है. उन्हें विशेष पेन भी दिए जाते हैं, जिसका उपयोग वे अपने वोट रिकॉर्ड करने के लिए कर सकते हैं.
3. प्रत्येक मतपत्र में उन सभी उम्मीदवारों के नाम होते हैं जो राष्ट्रपति चुनाव लड़ रहे हैं. निर्वाचक प्रत्येक उम्मीदवार के लिए अपनी वरीयता को इंगित करता है. जिस उम्मीदवार को वे राष्ट्रपति के रूप में सबसे अधिक पसंद करते हैं, उनके लिए '1' नंबर चुनते हैं जबकि उस उम्मीदवार के लिए '2', जो उनकी दूसरी वरीयता है और इसी तरह अन्य वरियता का चुनाव भी निर्वाचक करता है. हालांकि जो भी निर्वाचक राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों के लिए वरीयताएं चिह्नित करता है उसके लिए यह आवश्यक नहीं है कि वो सभी उम्मीदवारों का चयन करे. वो केवल पहली वरीयता को ही चिह्नित कर सकता है.
4. वोटिंग के बाद विधायकों के मतपत्रों को राज्यवार इकट्ठा कर प्रत्येक उम्मीदवार की ट्रे में डाल दिया जाता है. फिर इसी प्रकार संसद सदस्यों के मतपत्रों का वितरण किया जाता है. 

कैसे होती है वोटों की गिनती
1. वोट डालने वाले सांसदों और विधायकों के वोट का वेटेज अलग-अलग होता है. दो राज्यों के विधायकों के वोटों का वेटेज भी अलग-अलग होता है.
2. विधायक के मामले में जिस राज्य का विधायक हो उसकी आबादी देखी जाती है और उस प्रदेश के विधानसभा सदस्यों की संख्या देखी जाती है. वेटेज निकालने के लिए प्रदेश की जनसंख्या को चुने हुए विधायक की संख्या से बांटा जाता है, उसे फिर एक हजार से भाग दिया जाता है. अब जो आंकड़ा आता है वही उस राज्य के वोट का वेटेज होता है.

कैसे तय होता है राष्ट्रपति पद का विजेता
1. राष्ट्रपति चुनाव का विजेता वह व्यक्ति नहीं होता जिसे सबसे अधिक मत प्राप्त होते हैं, बल्कि वह व्यक्ति होता है जिसे एक निश्चित कोटे से अधिक मत प्राप्त होते हैं. प्रत्येक उम्मीदवार के लिए डाले गए वोटों को जोड़कर, योग को 2 से विभाजित करके और भागफल में 1 जोड़कर कोटा तय किया जाता है.
2. जो उम्मीदवार तय कोटा से अधिक वोट प्राप्त करता है, वह विजेता होता है. यदि किसी को कोटे से अधिक वोट नहीं मिलते हैं, तो सबसे कम वोट वाले उम्मीदवार को रेस से हटा दिया जाता है और हटाए गए उम्मीदवारों के मतपत्र उन मतपत्रों में दूसरी वरीयता पसंद के आधार पर शेष उम्मीदवारों के बीच वितरित किए जाते हैं.प्रत्येक उम्मीदवार के लिए कुल मतों की गिनती की प्रक्रिया फिर दोहराई जाती है ताकि यह देखा जा सके कि कोई तय कोटा से ऊपर मत पा सका है या नहीं. यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक किसी का वोट कोटा से अधिक तक नहीं पहुंच जाता है, या जब तक लगातार निष्कासन के बाद सिर्फ एक उम्मीदवार नहीं बच जाता है. तब उस व्यक्ति को भारत के राष्ट्रपति के विजेता के रूप में घोषित किया जाता है.

 

Read more!

RECOMMENDED