गोस्वामी तुलसीदास के गांव राजापुर में आज भी सुरक्षित है 447 साल पुरानी रामचरितमानस

रामायण और भगवान राम को आम जन के द्वार तक ले जाने में महाकाव्य रामचरित मानस का एक महत्वपूर्ण किरदार है. गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस की रचना 966 दिन में पूरी हुई थी. इसके लिए गोस्वामी जी ने अयोध्या, काशी, समेत तमाम उन स्थानों का भ्रमण किया जहां भगवान राम से जुड़े साक्ष्य मौजूद थे. तुलसी की रामचरित मानस आज भी गोस्वामी जी के पैतृक निवास राजापुर ग्राम में मौजूद है.

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वरुण सिन्हा
  • नई दिल्ली,
  • 19 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 5:27 PM IST
  • जापानी तकनीक के इस्तेमाल से बचाए किताब के पन्ने
  • रामायण के कई पन्ने हुए विलुप्त

रामायण और भगवान राम को आम जन के द्वार तक ले जाने में महाकाव्य रामचरित मानस का एक महत्वपूर्ण किरदार है. गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस की रचना 966 दिन में पूरी हुई थी. इसके लिए गोस्वामी जी ने अयोध्या, काशी, समेत तमाम उन स्थानों का भ्रमण किया जहां भगवान राम से जुड़े साक्ष्य मौजूद थे. तुलसी की रामचरित मानस आज भी गोस्वामी जी के पैतृक निवास राजापुर ग्राम में मौजूद है. गोस्वामी तुलसीदास की हस्तलिखित यानि उनके द्वारा खुद लिखी गई श्री रामचरितमानस जो सैकड़ों साल पुरानी कृति है, आज भी सुरक्षित है. 

रामायण के कई पन्ने हुए विलुप्त

माना जाता है कि सावन माह में इस कृति के दुर्लभ दर्शन से ही मानव के सब कष्ट दूर हो जाते हैं. रामचरित मानस के सेवक रामाश्रय जी कहते है कि इस महाकाव्य का निर्माण 76 साल की उम्र में तुलसीदास जी ने किया था. अब केवल अयोध्या कांड बचा है, बाकी सब विलुप्त हो गए. उन्होंने किताब दिखाते हुए कहा कि ये जो आप लिखावट देख रहे हैं ये खुद गोस्वामी जी की है. 

500 साल में हिंदी वर्णमाला में आया कितना बदलाव?
समय के साथ-साथ इसके बाकी के खंड विलुप्त हो गए. बस अयोध्या कांड ही बचा है, जिसको देखने के लिए लोग यहां आते हैं. तुलसीदास जी की हस्तलिखित राम कथा अब पढ़ने की समझ रखने वाले बस एक शख्स हैं, रामाश्रय जो तुलसीदास के शिष्य की 11 वी पीढ़ी के हैं और पिछले 500 साल से इनका परिवार इस महा ग्रंथ की सेवा कर रहा है. असल मे रामाश्रय जी कहते है कि हिंदी लिखने में पिछले 50 सालों में 6 अक्षर बदल गए तो सोचिये 500 साल में हिंदी के अक्षरो में कितना बदलाव आया होगा.

जापानी तकनीक का इस्तेमाल
इस ग्रंथ को संरक्षित करने के लिए भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा जापानी तकनीक का इस्तमाल किया गया है. इसमे जहां-जहां से कागज हट गया था वहां पर जापानी लेप के जरिये उसको जोड़ा गया है. मान्यता है कि इस महान ग्रंथ के दर्शन मात्र से सारे कष्ट दूर हो जाते है.

 

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