दिन-24 अप्रैल… साल-1973… जगह-सुप्रीम कोर्ट और 13 जजों की बेंच… यानि आज से ठीक 50 साल पहले अब तक की सबसे बड़ी जजों की बेंच ने एक ऐसा फैसला सुनाया था जिसमें कोर्ट ने कहा था कि संविधान से ऊपर कुछ भी नहीं है. खुद सरकार भी नहीं. 1973 में केरल सरकार के खिलाफ देश के सर्वोच्च न्यायालय में संत केशवानंद भारती का केस पहुंचा, जिसपर लगातार 68 दिन तक जिरह चली. 24 अप्रैल 1973 को 7:6 के बहुमत से फैसला सुनाया गया कि संविधान के मूल ढांचे को संसद संशोधित नहीं कर सकती है.
क्या था पूरा मामला?
साल 1973 में सुप्रीम कोर्ट में केरल सरकार के खिलाफ एक मठ के महंत केशवानंद भारती का मुकदमा आया था. ये मामला मठ की जमीन के अधिग्रहण से संबंधित था. केशवानंद भारती केरल के कासरगोड जिले में स्थित एक मठवासी धार्मिक संस्थान एडनीर मठ के प्रमुख पुजारी थे. केशवानंद भारती के पास मठ में कुछ जमीन थी, जिस पर उनका स्वामित्व था. केरल राज्य सरकार ने 1969 में भूमि सुधार संशोधन अधिनियम पारित किया था. इस अधिनियम के अनुसार, सरकार मठ की कितनी भी भूमि का अधिग्रहण कर सकती थी. मार्च 1970 में, केशवानंद भारती ने उन अधिकारों को लागू करने के लिए (संविधान की धारा 32 के तहत) सुप्रीम कोर्ट का रुख किया.
इसके बाद केरल राज्य सरकार ने एक दूसरा कानून, केरल भूमि सुधार (संशोधन) अधिनियम, 1971 अधिनियमित किया. उस दौरान केशवानंद भारती की याचिका अदालत के विचाराधीन थी.
क्या थी दोनों पक्षों की दलीलें
याचिकाकर्ताओं ने तब कोर्ट के सामने ये दलील दी कि संसद संविधान में उस तरह से संशोधन नहीं कर सकती जैसा वे चाहते हैं क्योंकि ऐसा करने की उनकी शक्ति में नहीं है. संसद अपनी मूल संरचना को बदलने के लिए संविधान में संशोधन नहीं कर सकती है. वहीं दूसरा पक्ष यानि राज्य का कहना था कि संसद की सर्वोच्चता भारतीय कानूनी प्रणाली की मूल संरचना है और इसलिए, संविधान में संशोधन किया जा सकती है. इसके बाद उत्तरदाताओं ने जोर देकर कहा कि अपने सामाजिक-आर्थिक दायित्वों को पूरा करने के लिए संविधान में संशोधन करने के लिए संसद की असीमित शक्ति को बरकरार रखा जाना चाहिए.
कोर्ट ने क्या कहा?
सुनवाई के लिए बनी 13 जजों की संविधान पीठ का नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस एस एम सीकरी कर रहे थे. इस मामले में 7 जजों ने संत केशवानंद भारती के समर्थन में, जबकि 6 जजों ने सरकार के समर्थन में फैसला सुनाया. अपने फैसले में कोर्ट ने तीन मुख्य बातें कही थी-
1. सरकार संविधान से ऊपर नहीं है.
2. सरकार संविधान की मूल भावना यानी मूल ढांचे को नहीं बदल सकती.
3. सरकार अगर किसी भी कानून में बदलाव करती है तो कोर्ट उसकी न्यायिक समीक्षा कर सकता है.
(इनपुट-संजय शर्मा)