Gig Workers Economy: स्विगी-जोमैटो के राइडर्स को सामाजिक सुरक्षा देगी सरकार, क्या कहते हैं यूरोप-अमेरिका के नियम, भारत कितना पीछे?

भारत सरकार ने स्विगी और जोमैटो जैसे मंचों पर काम करने वाले 'गिग वर्कर्स' को ई-श्रम पोर्टल पर जगह देने का फैसला किया है. सरकार का यह कदम इन कामगारों को बेहतर सुविधाएं हासिल करने का मौका देगा. लेकिन भारत गिग वर्कर्स की जरूरतें पूरी करने के मामले में कितना पीछे है?

As per Niti Aayog, India has 7 million gig workers, and this number is expected to grow to 25 million by 2030, with an annual growth rate of nearly 12%.
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 02 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 3:49 PM IST

केंद्र सरकार ने स्विगी और ज़ोमैटो जैसी कंपनियों के लिए काम करने वाले गिग वर्करों को सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में शामिल करने का फैसला किया है. सरकार ऐसे छोटे-मोटे काम करने वाले श्रमिकों के लिए 'ई-श्रमिक पोर्टल (E-shramik portal) खोल देगी, जिससे यह श्रमिकों के लिए केंद्र सरकार की योजनाओं का लाभ उठा सकेंगे. 

'गिग वर्क' यानी छोटे-मोटे काम करने वालों की संख्या भारत में तेजी से बढ़ रही है. नैसकॉम की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक भारत में गिग वर्करों की संख्या 2.35 करोड़ हो जाएगी. सिर्फ भारत ही नहीं, गिग वर्क की अर्थव्यवस्था दुनियाभर में तेजी से बढ़ रही है. इस क्षेत्र में काम करने वालों के अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए कई जगहों पर जरूरी कानून भी लागू हो चुके हैं. 

क्या कहते हैं अमेरिका के कानून?
अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा 'गिग' या फ्रीलांस बाजार है. इस देश में छोटे-मोटे काम करने वालों ने मूल अधिकारों के लिए लंबा संघर्ष किया है. राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) की सरकार ने अक्तूबर 2022 में इसकी सनद लेते हुए एक कानून पेश किया, जिसके तहत कई फ्रीलांसर फुल-टाइम कर्मचारियों की श्रेणी में आ सकते थे. 

अमेरिका के श्रम विभाग (Department of Labour) ने जनवरी 2024 में अंतिम नियम जारी किया. इससे श्रमिकों को कर्मचारियों के तौर पर वर्गीकृत करना आसान हो जाएगा. इससे उन्हें न्यूनतम वेतन (Minimum wage) और ओवरटाइम वेतन (Overtime wage) जैसे फायदे मिल सकेंगे. अमेरिकी संसद का यह नियम मार्च में लागू कर दिया गया और उन व्यवसायों के खिलाफ ज्यादा प्रभावी साबित हुआ जो पैसे बचाने के लिए जानबूझकर श्रमिकों को गलत श्रेणी में डालते थे. 

मौजूदा दौर में अमेरिका के कई राज्यों में गिग अर्थव्यवस्था से जुड़े कानूनों में सकारात्मक बदलाव होने लगा है. मिसाल के तौर पर, कैलिफोर्निया में हाल ही में असेंबली बिल-5 पारित हुआ है जिससे कामगारों को फ्रीलांसर या फुल-टाइम कर्मचारी की श्रेणी में रखना होगा और उन्हें जरूरी अधिकार देने होंगे. 

सितंबर 2023 की वॉशिंगटन स्टेट स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार, कॉलोराडो और मिनेसोटा सहित कम से कम 10 राज्यों के सांसद फूड-डिलिवरी करने वालों और कैब ड्राइवरों के लिए नए सुरक्षा कानूनों पर विचार कर रेह हैं. साथ ही कम से कम 10 राज्य गिग वर्कर्स को रिटायरमेंट और पेड लीव (Paid leave) जैसी सुविधाएं दिलाने के पक्ष में हैं. 

क्या कहते हैं यूरोप के कानून?
यह कहना गलत नहीं होगा कि यूरोप कर्मचारी अधिकारों के मामले में अमेरिका से काफी आगे है. अप्रैल 2024 में यूरोपीय संघ (European Union) की संसद ने गिग वर्कर्स की काम करने की परिस्थितियों में सुधार करने वाले नए नियमों के पक्ष में वोट किया. यूरोपीय संघ में कई गिग वर्कर्स को 'सेल्फ एम्प्लॉइड' की श्रेणी में रखा गया है. नए नियमों का लक्ष्य है कि इन कर्मचारियों को फुल-टाइम कर्मचारियों की श्रेणी में लाया जाए और उन्हें जरूरी अधिकार दिलाए जाएं. 

नए नियम प्रमुख रूप से गिग वर्कर्स को रोजगार से जुड़े अधिकार दिलाने आए हैं. यूरोपीय यूनियन में आने वाले सभी देशों के लिए जरूरी है कि वे राष्ट्रीय स्तर पर इन नियमों के आधार पर कानून बनाएं. इस क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियों के पास इन कानूनों के दायरे में आने से बचने का मौका होगा लेकिन उन्हें यह साबित करना होगा कि वे गिग वर्कर्स को एक फुल-टाइम कर्मचारी के बंधनों में नहीं बांध रही हैं. इसके अलावा नॉर्वे और स्विट्ज़रलैंड जैसे गैर-ईयू देशों में भी गिग वर्कर्स के अधिकारों की सुरक्षा के लिए कानून लागू किए जा चुके हैं. 

भारत कितना पीछे?
भारत में फिलहाल गिग वर्कर्स के लिए न्यूनतम वेतन सुनिश्चित करने के लिए कोई कानून नहीं है. फेयरवर्क इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, ज्यादातर डिजिटल प्लेटफॉर्म पर छोटे-मोटे काम करने वाले कामगारों के लिए न्यूनतम वेतन की पॉलिसी भी नहीं है. राजस्थान फिलहाल भारत का एकमात्र राज्य है जहां गिग वर्कर्स के अधिकारों को कानूनी सुरक्षा मिली हुई है. कर्नाटक विधानसभा में भी इससे संबंधित बिल पेश किया गया है, हालांकि यह अभी पारित नहीं हुआ है. 

भारत सरकार ने ज़ोमैटो और स्विगी जैसे मंचों से ड्राइवरों के काम के घंटे कम करने और उनकी कमाई में पारदर्शिता बढ़ाने की भी सिफारिशें की हैं, हालांकि इसे लेकर कोई कानूनसाज़ी नहीं हुई है. अगर ऐप्स इन सिफारिशों पर अमल करते हैं तो गिग वर्कर्स के लिए अच्छा होगा, लेकिन बिना ठोस नीतियों के गिग वर्कर्स का जीवन बेहतर होना मुश्किल है. 

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