Member of parliament: आम आदमी पार्टी (AAP) के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह को सोमवार को उच्च सदन (राज्यसभा) में हंगामा और आसन के निर्देशों का उल्लंघन करने के लिए पूरे मॉनसून सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया है. सभापति जगदीप धनखड़ ने प्रश्नकाल में सिंह को निलंबित करने की घोषणा की. आइए आज जानते हैं किसी सांसद (एमपी) पर क्यों और कैसे निलंबन की कार्रवाई की जाती है.
सभापति और अध्यक्ष के पास हैं कुछ शक्तियां
लोकसभा के अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति की भूमिका और कर्तव्य सदन की व्यवस्था बनाए रखना है. उनका काम सदन को सुचारू तौर पर चलाना और सदन की कार्यवाही सही तरीके से हो यह सुनिश्चित करना है. स्पीकर और चेयरमैन दोनों को ही इस काम में बाधा डालने वाले किसी भी सांसद को सदन से हटाने का अधिकार है. इसके लिए उनके पास कुछ शक्तियां हैं. इसके जरिए वह सांसदों को निलंबित कर सकते हैं. इसका जिक्र लोकसभा और राज्यसभा के रूलबुक में है. राज्यसभा में नियम 255 और 256 के तहत सभापति सदस्यों को निलंबित करने की ताकत रखते हैं. वहीं, लोकसभा के अध्यक्ष के पास रूलबुक के नियम 373 और 374 के तहत ऐसी शक्तियां हैं.
राज्यसभा में कब निलंबित हो सकते हैं सांसद
नियम 255: राज्यसभा के रूलबुक के नियम 255 के तहत सभापति को यदि यह लगता है कि किसी सांसद का व्यवहार सदन के संचालन के लिहाज से सही नहीं है तो वो उस सदस्य को सदन से बाहर जाने को कह सकते हैं. नियम 255 के तहत किसी सदस्य को एक दिन के लिए निलंबित किया जा सकता है. सभापति की ओर से निलंबित किए जाने के बाद उस सदस्य को तुरंत सदन से बाहर जाना होता है.
नियम 256: यदि सभापति को लगता है कि सदस्य का व्यवहार बिल्कुल ठीक नहीं है और वह उनकी बातों को बार-बार अनसुनी कर रहे हैं तो रूलबुक के नियम 256 के तहत राज्यसभा के सभापति ऐसे सदस्यों को निलंबित करने का प्रस्ताव सदन में रख सकते हैं. वह सीधा सदस्यों को निलंबित नहीं कर सकते हैं. पहले सभापति सदन में सदस्यों के निलंबन का प्रस्ताव रखते हैं और फिर उसके पास होने के बाद सांसदों का निलंबन प्रभावी हो जाता है. सभापति किसी सदस्य को एक सत्र से ज्यादा निलंबित नहीं कर सकते.
लोकसभा में क्या है नियम
राज्यसभा के सभापति के उलट लोकसभा अध्यक्ष के पास सांसदों को सीधे निलंबन का अधिकार होता है. लोकसभा से भी किसी सांसद को एक दिन, कुछ दिन या फिर पूरे सत्र के लिए निलंबित किया जा सकता है. लोकसभा रूल बुक में ये अधिकार नियम 373 और 374 में है. नियम 373 के तहत सांसद को एक दिन के लिए निलंबित किया जा सकता है तो वहीं नियम 374 के तहत एक निश्चित अवधि और पूरे सत्र के लिए निलंबित करने का अधिकार लोकसभा अध्यक्ष को रहता है.
सांसद का निलंबन कैसे होता है वापस
सांसद का निलंबन वापस लिया जा सकता है, लेकिन ये तभी संभव है जब सदस्य अपने बर्ताव के लिए माफी मांगे. निलंबन को रद्द करने का अधिकार राज्यसभा के सभापति और लोकसभा अध्यक्ष के पास होता है. इसके अलावा निलंबन के खिलाफ प्रस्ताव भी सदन में लाया जा सकता है. यदि प्रस्ताव सदन में पास हो जाता है तो सांसदों का निलंबन रद्द हो सकता है. संसद में व्यवधान डालने वाले सांसदों को निलंबन के समय भी पूरा वेतन मिलता है.
कोर्ट में नहीं किया जा सकता है चैलेंज
संविधान के आर्टिकल 105 (2) के तहत भारत में संसद में किए गए किसी भी व्यवहार के लिए कोई सांसद किसी कोर्ट के प्रति उत्तरदायी नहीं होता है. यानी सदन में कही गई किसी भी बात को कोर्ट में चैलेंज नहीं किया जा सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सांसदों को संसद में कुछ भी करने की छूट मिली है. एक सांसद जो कुछ भी कहता है वो राज्यसभा और लोकसभा की रूल बुक से कंट्रोल होता है. इस पर सिर्फ लोकसभा स्पीकर और राज्यसभा के सभापति ही कार्रवाई कर सकते हैं.