मुंबई की आरे कॉलोनी मेट्रो कार शेड विवाद लगातार तूल पकड़ता जा रहा है. लगातार पर्यावरण प्रेमी आरे कॉलोनी में बन रहे मेट्रो शेड का विरोध कर रहे हैं. जहां मेट्रो शेड को बनाने के लिए लगातार पेड़ काटे जा रहे हैं, जिससे पर्यावरण को काफी नुकसान हो रहा है. मुंबई के गोरेगांव इलाके का आरे कॉलोनी के पूरे इलाके में हजारों की संख्या में आदिवासी बस्तियां बसी हुई हैं. इन आदिवासियों के लिए आरे कॉलोनी का जंगल ही सबकुछ है.
आदिवासियों को अपना घर खोने का है डर
दरअसल, आरे कॉलोनी में रहने वाले इन आदिवासियों को अपना घर खोने का डर है. ऐसे में आरे कॉलोनी में लोगों के मदद करने और आदिवासी लोगों को जीवन में आगे बढ़ाने के लिए और उन्हें काम दिलाने के लिए कई फाउंडेशन और एनजीओ काम कर रहे हैं. वहीं मुंबई में पिछले 6 साल से कैसेंड्रा नाजरेथ, मुंबई की एक सामाजिक संरक्षक आदिवासी समुदायों के साथ काम कर रही है. साथ ही कैसेंड्रा नाजरेथ के मुताबिक जिस तरीके से शहर का विकास हो रहा है वैसी चीजें आदिवासियों के लिए उपलब्ध नहीं हैं, और इसलिए वे आदिवासियों की भलाई की दिशा में काम कर रहे हैं.
कैसेंड्रा और उनकी टीम पिछले कई साल से काम कर रही है
कैसेंड्रा और उनकी टीम पिछले 6 साल से आरे कॉलोनी में स्थित 13 आरे गांवों के 2,500 परिवारों की मदद कर रही है. इस मुहिम के तहत यह लोग मुंबई के आसपास के आदिवासी महिलाओं और उनके जीवन को बेहतर बनाने और आत्मनिर्भर बनने की भी कोशिश कर रहे हैं. इस मुहिम के तहत इन इलाकों में रह रहे लोगों को अलग अलग काम सिखाए जाते हैं और उनको आत्मनिर्भर बनाया जाता है. इसकी मदद से वह काम करके खुद पैसे कमा सकें और आगे बढ़ सकें. इसमें महिलाओं को सिलाई का काम, खाना बनाना जैसे काम सीखने की शिक्षा दी जाती है.
गांवों में बनाए गए हैं बायो-टॉयलेट
कैसेंड्रा और उनकी टीम द्वारा एक और महत्वपूर्ण काम किया गया है. उन्होंने जंगल के तकरीबन 12 गांवों में बायो-टॉयलेट की सुविधा भी शुरू की है. ये शौचालय सेप्टिक टैंक की आवश्यकता को समाप्त कर रहे हैं, और आठ परिवारों द्वारा एक ही शौचालय का उपयोग किया जा सकता है. कैसंड्रा का दावा है कि इनमें से कुल 45 जैव-शौचालय हैं जो लगभग 55,000 रुपये की लागत से स्थापित किए गए हैं.