वैसे तो कहा जाता है कि पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती है. लेकिन गुजरात में हाल ही में एक ऐसा मामला सामने आया है जब कोर्ट को एक 50 वर्षीय शख्स से कहना पड़ा कि यह पढ़ाई करने की अब आपकी उम्र नहीं है. क्योंकि जनाब इस उम्र में एमबीबीएस पढ़ना चाह रहे हैं.
जी हां, यह कहानी है कंदीप जोशी की. जिन्होंने लगभग 32 साल पहले बड़ौदा मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस में दाखिला लिया था. साल 1988 में उन्होंने एमबीबीएस सेकंड ईयर के एग्जाम दिए थे. लेकिन इसके बाद कुछ निजी कारणों से उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी.
और अब इतने सालों बाद वह अपनी पढ़ाई पूरा करना चाहते हैं. इसलिए उन्होंने याचिका दायर की कि उन्हें मेडिकल कॉलेज में थर्ड ईयर में दाखिला दिया जाए.
कोर्ट ने ख़ारिज की अपील:
जोशी फ़िलहाल किसी बिज़नेस से जुड़े हुए हैं. और अब एमबीबीएस थर्ड ईयर के एग्जाम देना चाहते हैं. इसके लिए उन्होंने बड़ौदा मेडिकल कॉलेज में पहले अपील की थी. लेकिन कॉलेज प्रशासन ने उन्हें अनुमति नहीं दी. इसके बाद उन्होंने कोर्ट में याचिका दायर की.
लेकिन सुनवाई के दौरान कोर्ट ने उनसे जानना चाहा कि क्यों उन्हें जीवन के इस पड़ाव पर एमबीबीएस कोर्स करना है और क्या उन्हें इस तरह "लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़" करना चाहिए. कोर्ट का कहना था कि मान लीजिए (इस तरह के प्रवेश के लिए) कोई नियम नहीं हैं. फिर भी, आपको इस तरह अपनी मनमर्जी से काम करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, खासकर जब आप लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़ करने जा रहे हैं.
कोर्ट ने आगे पूछा कि क्या वह 50 साल की उम्र में इंटर्नशिप कर सकते हैं? यह संभव नहीं है. यह उनके बच्चों के एमबीबीएस करने की उम्र है न कि उनकी. साथ ही अगर वह परीक्षा में बैठते हैं तो फेल हो जायेंगे क्योंकि इतने लम्बे गैप के बाद नया कोर्स पढ़ना आसान नहीं है.
क्योंकि पिछले तीन दशकों में मेडिकल साइंस की एडवांसमेन्ट के बाद कोर्स बहुत बदल गया है.
5 साल के गैप के अंदर ही मिल सकती थी अनुमति:
बताया जा रहा है कि जोशी ने पहली बार 2013 में कॉलेज में दाखिले की मांग की थी. और वहां से इनकार करने के बाद, उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया. अदालत ने भी उनकी याचिका को खारिज कर दिया था. लेकिन उनके पास भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) से संपर्क करने की स्वतंत्रता थी.
लेकिन जब जोशी ने एमसीआई से संपर्क किया, तो वहां से भी उनके अनुरोध को खारिज कर दिया गया. क्योंकि एमसीआई का कहना है कि उन्हें कोर्स से ड्रॉप आउट होने के पांच साल के भीतर ही फिर से थर्ड ईयर में दाखिले की अनुमति मिल सकती थी.
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