Deputy Speaker कौन? सपा के Awadhesh Prasad के नाम पर India Alliance एकमत, विपक्ष क्यों मांग रहा उपाध्यक्ष का पद, जानिए Lok Sabha में क्या होती है भूमिका 

Lok Sabha Deputy Speaker: लोकसभा के अध्यक्ष के चुनाव के समय से ही विपक्ष सरकार से मांग कर रहा है कि Deputy Speaker का पद उसे मिलना चाहिए.विरोधी दलों का तर्क है कि परंपरागत रूप से यह पद विपक्ष के पास ही जाता रहा है. अब देखना है कि क्या इस बार डिप्टी स्पीकर के पद के लिए चनाव होगा या नहीं.

Parliament (Photo: PTI)
मिथिलेश कुमार सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 03 जुलाई 2024,
  • अपडेटेड 2:14 AM IST
  • अध्यक्ष की अनुपस्थिति में डिप्टी स्पीकर लोकसभा की कार्यवाही का करते हैं संचालन 
  • एमए अय्यंगार थे लोकसभा के पहले उपाध्यक्ष

Who Will Bcome Deputy Speaker: 18वीं लोकसभा (18th Lok Sabha) का गठन हो चुका है. बीजेपी सांसद ओम बिरला (Om Birla) दूसरी बार लोकसभा अध्यक्ष (Lok Sabha Speaker) चुने गए हैं लेकिन डिप्टी स्पीकर (Deputy Speaker) यानी उपाध्यक्ष का पद अभी भी खाली है.

इंडिया गठबंधन (India Alliance) लगातार इस पद की मांग कर रहा है. उधर, बीजेपी (BJP) इसे देने में ना नुकर कर रही है. आइए आज हम आपको बताते हैं कि कैसे डिप्टी स्पीकर पद का चुनाव होता है और लोकसभा में उपाध्यक्ष कितनी पावर रखते हैं.

कांग्रेस, टीएमसी लेकर पूरा विपक्ष  अवधेश के नाम पर राजी
सपा के टिकट पर फैजाबाद लोकसभा सीट यानी अयोध्या से जीतकर अवेधश प्रसाद (Awadhesh Prasad) इस बार संसद पहुंचे हैं. डिप्टी स्पीकर के लिए अवेधश प्रसाद का नाम विपक्ष ने आगे किया है. अखिलेश यादव और राहुल गांधी के बाद  तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी भी अवधेश प्रसाद के नाम पर राजी हैं. टीएमसी के प्रस्ताव का आम आदमी पार्टी ने भी समर्थन किया है.

अभी तक ऐसी रही है परंपरा
लोकसभा में डिप्टी स्पीकर का पद खाली चल रहा है. 17वीं लोकसभा में विपक्ष लगभग नहीं के बराबर था. इसलिए उपाध्यक्ष की जरूरत ही नहीं पड़ी थी. लेकिन इस बार लोकसभा में विपक्ष के सांसद अच्छी-खासी संख्या में हैं. वैसे अभी तक परंपरा रही है कि डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष को दिया जाता है. छटी लोकसभा से 16वीं लोकसभा तक उपाध्यक्ष का पद विपक्ष के पास था.

ओम बिरला के अध्यक्ष चुने जाने से पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने यह मांग उठाई थी कि अध्यक्ष सत्ता पक्ष का तो उपाध्यक्ष विपक्षी दलों का होना चाहिए. लेकिन भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने उपाध्यक्ष पद की मांग के लिए विपक्ष की आलोचना की थी और बताया था कि जिन राज्यों में विपक्ष सत्ता में है, वहां उपाध्यक्ष का पद सत्तारूढ़ दल ने अपने पास रखा है. इसलिए लोकसभा में ऐसा ही होना चाहिए.

कौन होता है डिप्‍टी स्‍पीकर 
हमारे संविधान के अनुच्छेद 93 में लोकसभा के उपाध्यक्ष के चुनाव का उल्लेख किया गया है. इस अनुच्छेद के अनुसार लोकसभा को अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की भूमिका के लिए दो सदस्यों को चुनने का अधिकार है, जब भी ये पद खाली होते हैं.

हालांकि संविधान किसी विशेष समय सीमा का प्रावधान नहीं करता है. एक जवाबदेह लोकतांत्रिक संसद चलाने के लिए सत्तारूढ़ दल के अलावा किसी अन्य पार्टी से लोकसभा के उपाध्यक्ष का चुनाव करना संसदीय परंपरा रही है. Deputy Speaker संसद के निचले सदन का दूसरा सर्वोच्च पदाधिकारी होता है. 

कैसे होता है चुनाव
डिप्‍टी स्‍पीकर यानी उपाध्यक्ष का चयन लोकसभा की प्रक्रिया और कार्य संचालन नियमावली के नियम 8 के तहत किया जाता है. उपाध्यक्ष का चुनाव लोकसभा के सदस्यों की ओर से लोकसभा स्पीकर का चुनाव करने के तुरंत बाद ही किया जाता है.

लोकसभा अध्यक्ष ही उपाध्यक्ष के चुनाव तारीख तय करते हैं. आम चुनावों के बाद लोकसभा की पहली बैठक में लोकसभा के सदस्यों में से पांच वर्ष की अवधि के लिए उपाध्यक्ष का चुनाव किया जाता है. 18वीं लोकसभा में अभी तक सत्ता और विपक्ष के बीच उपाध्यक्ष के पद पर सहमति नहीं बन पाई है. जुलाई के अंतिम सप्ताह में बजट सत्र होगा. इसमें डिप्टी स्पीकर का नाम तय किया जा सकता है.

लोकसभा में डिप्‍टी स्‍पीकर की क्या होती है भूमिका
1. लोकसभा उपाध्यक्ष संसद के निचले सदन में दूसरे सबसे बड़े रैंकिंग अधिकारी होते हैं.
2. लोकसभा के अध्यक्ष की अनुपस्थिति में या पद रिक्त होने की स्थिति में सदन में उपाध्यक्ष पीठासीन अधिकारी के रूप में कार्य करते हैं.
3. इन दोनों ही स्थितियों में डिप्‍टी स्‍पीकर को लोकसभा अध्यक्ष की तरह ही फैसले लेने का अधिकार होता है.
4. यदि लोकसभा अध्यक्ष किसी अधिवेशन से अनुपस्थित रहते हैं तो उपाध्यक्ष दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता भी करते हैं. 
5. मतों के बराबर होने की स्थिति में अध्यक्ष की तरह उपाध्यक्ष निर्णायक मत का विशेषाधिकार रखते हैं.
6. एक विशेष विशेषाधिकार के तहत जब भी उपाध्यक्ष को किसी संसदीय समिति का सदस्य नियुक्त किया जाता है तो वह स्वतः ही उसका अध्यक्ष बन जाते हैं.
7. संसदीय नियमों में अध्यक्ष के सभी अधिकारों को उपाध्यक्ष के लिए भी समान माना जाता है, क्योंकि जब वह सदन की अध्यक्षता करता है तो उपाध्यक्ष के पास भी अध्यक्ष के समान सामान्य शक्तियां होती हैं.

लोकसभा के डिप्‍टी स्‍पीकर को इतनी मिलती है सैलरी
लोकसभा के डिप्‍टी स्‍पीकर को राज्य मंत्री का दर्जा दिया जाता है. उसी के अनुसार सैलरी मिलती है. केंद्र सरकार में राज्य मंत्री को सांसद के वेतन के अलावा अलग से भत्ता दिया जाता है. सांसद को हर महीने एक लाख रुपए की बेसिक सैलरी मिलती है.

साथ 70,000 रुपए निर्वाचन भत्ता और 60,000 रुपए महीना ऑफिस भत्ता दिया जाता है. संसद सत्र के दौरान 2,000 रुपए डेली अलाउंस दिए जाते हैं. यदि कोई सासंद मंत्री बनता है तो उसे अलग से सत्कार भत्ता भी मिलता है. इस तरह कैबिनेट मंत्री को कुल 2.32 लाख रुपए, राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) को 2.31 लाख और राज्य मंत्री को 2,30,600 रुपए महीना मिलते हैं.

सीधे सदन के प्रति होते हैं उत्तरदायी 
डिप्‍टी स्‍पीकर लोकसभा स्‍पीकर के अधीनस्‍थ नहीं बल्कि सीधे सदन के प्रति उत्तरदायी होते हैं. यदि दोनों में कोई भी इस्‍तीफा देना चाहता है तो उन्हें अपना इस्तीफा सदन को प्रस्तुत करना होता है. यानी कि यदि स्पीकर अपना इस्तीफा देते हैं तो वह डिप्‍टी स्‍पीकर को सौंप सकते हैं.यदि डिप्‍टी स्‍पीकर का पद रिक्त है तो महासचिव को इस्‍तीफा दे सकते हैं और साथ ही सदन को इसकी सूचना देनी होती है.

डिप्‍टी स्‍पीकर को पद से कब हटाया जा सकता है. जब वह लोकसभा के सदस्य नहीं रह जाते. यदि वह खुद लिखकर अपना इस्तीफा दे देते हैं. इसके अलावा लोकसभा के सभी सदस्यों की ओर से बहुमत से एक प्रस्ताव पारित करके भी हटाया जा सकता है. यह प्रस्ताव को लाने से 14 दिन पहले उपाध्याक्ष को इसकी सूचना देनी होती है. 

कौन-कौन रह चुके हैं लोकसभा के डिप्टी स्पीकर
1. एमए अय्यंगार: मई 1952  से मार्च 1956
2. सरदार हुकुम सिंह: मार्च 1956 से अप्रैल 1957
3. सरदार हुकुम सिंह: मई 1957 से मार्च 1962
4. एसवी कृष्णमूर्ति: अप्रैल 1962 से मार्च 1967
5. आरके खादिलकर: मार्च 1967 से नवंबर 1969
6. गिल्बर्ट जी स्वेल: मार्च 1971 से जनवरी 1977
7. गोडे मुरहारी: अप्रैल 1977 से अगस्त 1979
8. जी लक्ष्मणन: दिसंबर 1980 से दिसंबर 1984
9. एम थम्बी दुरई: जनवरी 1985 से नवंबर 1989
10. शिवराज वी पाटिल: मार्च 1990 से मार्च 1991
11. एस मल्लिकार्जुनैया: अगस्त 1991 से मई 1996
12. सूरज भान: जुलाई 1996 से दिसंबर 1997
13. पीएम सईद: अक्टूबर 1999 से फरवरी 2004
14. चरणजीत अटवाल: जून 2004 से मई 2009
15. करिया मुंडा: जून 2009 से मई 2014
16. एम थम्बी दुरई: अगस्त 2014 से मई 2019
 

 

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