27 जनवरी, 2021 को भारत सरकार ने ‘एयर इंडिया’ कंपनी को टाटा समूह को सौंप दिया और इसके बाद एक बार फिर टाटा ग्रुप ‘एयर इंडिया’ की कमान संभालेगा. टाट और एयर इंडिया ने इस बात की जानकारी ट्वीटर के जरिए साझा की है. अब से लगभग 90 साल पहले साल 1932 में जेआरडी टाटा ने एयर इंडिया की नींव रखी थी. हालांकि उन्होंने कंपनी को बतौर ‘टाटा एयरलाइन्स’ शुरू किया था, जिसे साल 1953 में भारत सरकार ने पब्लिक सेक्टर में ले लिया और इसका नाम ‘एयर इंडिया’ रखा गया.
और अब सालों बाद एक बार फिर एयर इंडिया अपने घर यानी कि टाटा ग्रुप के पास लौट आई है. इसलिए आज हम आपको बता रहे हैं देश की सबसे पुरानी एयरलाइन्स की रोचक कहानी.
कैसे हुई शुरुआत:
अगर भारत के एविएशन सेक्टर की बात की जाए तो सबसे पहला नाम जो दिमाग में आता है, वह है जे. आर. डी टाटा. जो भारत में पायलट लाइसेंस हासिल करने वाले पहले व्यक्ति थे. यह टाटा का ही विज़न था कि भारत में एविएशन सेक्टर की बहुत ज्यादा संभावनाएं हैं.
बताया जाता है कि ब्रिटिश एयर फ़ोर्स के पायलट नेविल विंसेंट ने भारत में एविएशन सेक्टर की कल्पना की और अपने प्रपोजल को लेकर वह देश के बड़े इंडस्ट्रियलिस्ट के पास पहुंचे. वह मशहूर पारसी व्यवसायी सर होमी मेहता के पास गए, लेकिन मेहता ने इस विषय में खास रूचि नहीं दिखाई.
इसके बाद वह उस समय टाटा ग्रुप के चेयरमैन दोराबजी टाटा के पास पहुंचे. हालांकि दोराबजी भी इस विषय में ज्यादा इंटरेस्टेड नहीं थे लेकिन उनके भतीजे जेआरडी इस सेक्टर में कुछ करना चाहते थे. इसलिए जेआरडी की रूचि को देखते हुए दोराबजी ने विंसेट के प्रपोजल पर काम करने का फैसला किया और इसकी जिम्मेदारी जेआरडी पर ही आई.
विंसेट के साथ और सहयोग से साल 1932 में उन्होंने ‘टाटा एयरलाइन्स’ की नींव रखी. यह देश भर में डाक और यात्रियों को ले जाने वाली पहली प्राइवेट एयरलाइन थी. आज आप इसे एयर इंडिया की पूर्वज भी कह सकते हैं.
दूसरे विश्व युद्ध के बाद पब्लिक सेक्टर में हुआ विलय:
1932 में सबसे पहले कराची और बॉम्बे (मुंबई) के बीच एयरमेल सर्विस शुरू की गई. इसके बाद धीरे-धीरे कंपनी अपना बेस बढ़ाती रही और अन्य कई शहरों में सर्विसेज दी जाने लगीं. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान टाटा एयरलाइन्स ने बेहतरीन काम किया और अपनी कमर्शियल सर्विसेज जारी रखीं.
लेकिन देश की आजादी के बाद भारत सरकार ने बहुत-सी प्राइवेट कंपनियों का राष्ट्रीयकरण करने का निर्णय लिया और इनमें टाटा एयरलाइन्स भी शामिल थी. उस समय ‘टाटा एयरलाइन्स’ का नाम बदलकर ‘एयर इंडिया’ कर दिया गया. और साल 1953 में जेआरडी टाटा की इच्छा के विरुद्ध यह कंपनी पूरी तरह से पब्लिक सेक्टर में आ गई.
हालांकि, भारत सरकार ने उन्हें एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइन्स का चेयरमैन नियुक्त कर दिया. लेकिन 1978 में मोरारजी देसाई के कार्यकाल में उन्हें इस पद से हटा दिया गया. और बाद में 1980 में इंदिरा गांधी ने उन्हें एक बार फिर कंपनी के बोर्ड में नियुक्त किया. कहते हैं कि कंपनी के पब्लिक हो जाने के बावजूद जेआरडी पूरी निष्ठा से इसे आगे बढ़ाने के लिए तत्पर रहे क्योंकि यह वह बीज था जो उन्होंने खुद लगाया था.
एयर इंडिया: देश की पहचान:
आज भले ही एयर इंडिया कंपनी कर्ज में डूबी है और सरकार के पास इसे बंद करने या प्राइवेट सेक्टर को देने के अलावा और कोई दूसरा विकल्प नहीं था. लेकिन एक समय था जब एयर इंडिया ग्लोबल लेवल पर भारत की शान हुआ करती थी और देश की पहचान थी.
कहते हैं कि एयर इंडिया ने एविएशन सेक्टर में भारत के बहुत से सपनों को उड़ान दी. कंपनी ने सभी अच्छी जगहों पर अपने ऑफिस खोलें और अपनी ब्रांड को भारतीय कला और संस्कृति के आधार पर खड़ा किया. और इस तरह से यह भारतीय आर्ट के सबसे बड़े कलेक्टर्स में से एक बन गई.
और एयर इंडिया के मैस्कॉट- ‘महाराजा’ को भला कौन भूल सकता है. कहा जाता है कि एयर इंडिया का मैस्कॉट भारतीय हॉस्पिटैलिटी का प्रतीक माना जाता था. इस एयरलाइन के नाम बहुत से रिकॉर्ड भी हैं जैसे साल 2017 में यह ‘सभी महिला क्रू’ (All women crew) के साथ दुनिया भर में उड़ान भरने वाली पहली एयरलाइन बनी.
इसके अलावा 1990 में एयर इंडिया का नाम गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल किया गया क्योंकि इस सिविल एयरलाइन ने सबसे बड़ा ‘इवैक्युएशन ऑपरेशन’ किया था. इराक युद्ध के दौरान एयर इंडिया ने कुवैत से एयर इंडिया ने 49 दिनों तक 450 फ्लाइट ऑपरेट करके एक लाख से भी ज्यादा भारतीयों को एयरलिफ्ट किया था.
एक बाद फिर टाटा के हाथ में कमान:
अगर एयर इंडिया के इतिहास को देखें तो इससे पहले भी कई बार भारत सरकार ने कंपनी को प्राइवेट करने की कोशिश की थी. सबसे पहले साल 2001 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए सरकार ने एयरलाइन की रणनीतिक बिक्री करने का प्रयास किया था. एयर-इंडिया की 40% इक्विटी ब्लॉक में डाल दी गई थी. लेकिन उस समय किसी ने भी एयरलाइन को खरीदने में रूचि नहीं दिखाई.
साल 2007 में एयर इंडिया का अपनी घरेलू इकाई इंडियन एयरलाइंस में विलय हो गया और सरकार ने एयरक्राफ्ट का एक बड़ा ऑर्डर दिया. जिसके बाद कंपनी पर कर्ज बढ़ता रहा. और प्राइवेट सेक्टर में बढ़ते कम्पटीशन के कारण एयर इंडिया बहुत अच्छा बिज़नेस नहीं कर पाई.
इसलिए 2018 सरकार ने फिर से इसे बेचने की कोशिश की लेकिन इस बार भी उन्हें कोई ग्राहक नहीं मिला. लेकिन 2020 में सरकार ने कहा कि वह कंपनी में अपनी 100% हिस्सेदारी बेच देगी. अक्टूबर में उन्होंने 14 दिसंबर की समय सीमा की घोषणा की. इसके बाद टाटा संस सहित और कई कंपनियों ने इसमें रूचि दिखाई.
और 2021 में आखिरकार टाटा संस ने बिडिंग जीतकर एक बारे फिर एयर इंडिया की कमान अपने हाथ में ले ली. अब देखना यह है कि कैसे टाटा ग्रुप के नेतृत्व में एयर इंडिया एक बार फिर देश की शान और पहचान बनती है.