इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) ने हाल ही में लिन इन रिलेशनशिप को लेकर अहम फैसला सुनाया है. हमारे देश में लिव इन रिलेशनशिप को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं. ऐसे में, एक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आया है कि दो वयस्कों को एक साथ रहने की स्वतंत्रता है और किसी भी व्यक्ति को उनके शांतिपूर्ण 'लिव-इन रिलेशनशिप' में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.
इस बड़े फैसले में कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में एक लड़की के पिता द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी को रद्द कर दिया. एक लड़की अपनी इच्छा से अपने पार्टनर के साथ रह रही थी. लेकिन लड़की के पिता ने अपहरण का मुकदमा दर्ज कराया. इस पर कपल ने कोर्ट में बालिग होने का हलफनामा दिया.
सुप्रीम कोर्ट का किया समर्थन
न्यायमूर्ति सुनीत कुमार और न्यायमूर्ति सैयद वाइज मियां की इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया. ऐसा करके हाईकोर्ट ने सुप्रीम ककोर्ट के फैसले पर विश्वास दिखाया है. दरअसल, इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी थी कि अगर दो बालिग आपसी सहमति से एक साथ रहना चाहते हैं तो यह कानून की नजर में अवैध या गलत नहीं है. कोर्ट ऐसे जोड़ो को पारंपरिक विवाहित जोड़ों की तरह देखता है और वे कोर्ट में तय किए गए नियमों के हिसाब से लिव इन में रह सकते हैं.
लिव इन रिलेशन में रह रहे कपल्स को हैं ये अधिकार
एस. खुशबू बनाम कन्नियाम्मल के ऐतिहासिक मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि लिव-इन रिलेशनशिप भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार के दायरे में आता है. ऐसे में, अगर लिव इन में रह रहे कपल में, दोनों लड़की और लड़का बालिग हैं तो यह गलत नहीं है. इस लिव इन रिलेशन को शादी की तरह देखा जाएगा.
साथ ही, लिव इन में यदि संतान पैदा होती है तो बच्चे को अपने माता और पिता की संपत्ति पर पूरा अधिकार मिलेगा. साथ ही, इस रिलेशनशिप में अगर कोई शादी का वादा करके संबंध बनाता है और बाद में मुकर जाता है तो इसे अपराध माना जाएगा.