मदर्स डे के दिन मिलिए 'इस वॉरियर मॉम' से जिसने मां बनने के लिए मौत को मात देकर जिंदगी से जंग जीती

यह कहानी है एक ऐसी मां की जो मां बनने से पहले ही जिंदगी से जंग लड़ रही थी. डॉक्टर ने उम्मीद छोड़ दी थी और सांसे कभी भी कम सकती थी. लेकिन मां बनने के जज्बात में इस मां को मौत के मुंह से भी निकाल दिया.

अंकिता और उनकी बच्ची
तेजश्री पुरंदरे
  • नई दिल्ली,
  • 08 मई 2022,
  • अपडेटेड 1:33 PM IST
  • पैदा होने के 31 दिनों तक वेंटिलेटर पर थी बच्ची
  • सात महीने की प्रेग्नेंसी में हो गया कोरोना

हालातों के आगे जब साथ, न जुबाँ होती है, पहचान लेती है ख़ामोशी में हर दर्द. वो सिर्फ 'माँ' होती है. मां शब्द अपने आप में ही पूरा संसार समेट लेता है. मां सिर्फ एक बच्चे को जन्म ही नहीं देती, बल्कि 9 महीने उसे अपने शरीर का अंश बना के रखती है. कई बार ऐसा होता है जब एक औरत को मां बनने में कई तरह की तकलीफों का सामना करना पड़ता है, कई बार किसी बीमारी की वजह से स्थितियां डरावनी हो जाती हैं. आज हम आप एक ऐसी कहानी के बारे में बताएंगे जहां एक मां अपनी बच्ची को बचाने के लिए जिंदगी से जंग लड़ ली. 

पैदा होने के 31 दिनों तक वेंटिलेटर पर थी बच्ची
अंकिता की शादी को पांच साल हो चुके हैं और एक साल पहले उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया जिसका नाम वीरा है. वीरा का संघर्ष गर्भ से ही शुरू हो गया था. जन्म लेने के बाद भी वीरा और उसकी मां जिंदगी और मौत के बीच करीब 31 दिनों तक लड़ती रही. लेकिन उस मां ने कभी भी हार न मानने वाले हौसले ने कोरोना को मात देकर एक नई उम्मीद जगा दी है. जन्म लेने के बाद 31 दिनों तक चले उपचार के दौरान उनकी बेटी वीरा का भी हौसला नहीं टूटा और चिकित्सकों का वीरा पर विश्वास कायम रहा. नतीजा यह कि देश में कोरोना से संक्रमित होने वाली सबसे कम उम्र और सबसे कम वजन वाली बच्ची वीरा ने कोरोना पर फतह पाकर इतिहास रच दिया.

सात महीने की प्रेग्नेंसी में हो गया कोरोना
दरअसल कोरोना काल की दूसरी लहर में जब पूरा देश इसकी चपेट में आ गया था तब हर्ष और उसका परिवार भी इस भयावह परिस्थिति से जूझ रहा था. फरीदाबाद में रहने वाले हर्ष और अंकिता जल्द ही माता पिता बनने वाले थे लेकिन हर्ष कोरोना से संक्रमित हो गए. सारी सावधानियां बरतने के बावजूद हर्ष की पत्नी अंकिता जिन्हें सात माह की प्रेग्नेंसी वो भी कोरोना से संक्रमित हो गई.

प्रीमेच्योर डिलीवरी की वजह से खतरे में थी जान
डॉक्टरों के मुताबिक वीरा की मां अंकिता को कोविड संक्रमण के बाद गंभीर अवस्था में सर्वोदय अस्पताल भर्ती करवाया गया. एक ओर जहां अंकिता की हालत कोरोना के कारण बिगड़ती जा रही थी वहीं दूसरी ओर डॉक्टर्स को उसकी प्रेग्नेंसी पर भी ध्यान देना था. डॉक्टरों के लिए भी दोनों चीजों को ध्यान में रखते हुए इलाज करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य था. अंकिता की हालत को देखते हुए डॉक्टर्स ने उसके तुरंत आईसीयू में भर्ती करवाया. उनकी 31 सप्ताह की प्रेगनेंसी के बाद सिजेरियन डिलीवरी से बच्ची का जन्म हुआ. चूंकि बच्चा 31 सप्ताह का था इसलिए अंकिता ने प्रीमेच्योर डिलीवरी में बच्चे को जन्म दिया. अंकिता के पॉजि​टीव होने के कारण जरूरी था कि बच्ची का भी कोविड टेस्ट करवाया जाए. बच्ची के आरटी पीसीआर टेस्ट भी पॉजिटिव आया. ऐसे में मात्र 1.29 किलोग्राम वजनी वीरा का उपचार करना बेहद चुनौतीपूर्ण था. अस्पताल प्रबंधन के अनुसार बच्ची को वेंटीलेटर सपोर्ट की आवश्यकता थी और उसके फेफड़े भी सिकुड़े हुए थे.

जब जिंदगी से जंग लड़ रही थी अंकिता
प्रीमैच्योर डिलीवरी के कारण बच्ची की हालत गंभीर थी. उसे वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत थी क्योंकि इंफेक्शन उसके फेफड़ों तक पहुंच गया था. इसके लिए भी उसका इलाज शुरू किया गया. हालांकि इस दौरान तक बच्ची की हालत में थोड़ा सुधार था. इसलिए जन्म के चौथे दिन उसे वेंटिलेटर से HFNC पर शिफ्ट कर दिया गया. इसके बाद वीरा के मां अंकिता की भी तबीयत बिगड़ती चली गई. अंकिता का ऑक्सीजन 24 तक पहुंच चुका था. डॉक्टर्स ने यहां तक कह दिया था कि अंकिता को बचाना बहुत मुश्किल है. लेकिन अंकिता को मां बनने के ख्याल ने ही इतने विपरीत परिस्थितियों में जिंदा रखा. वे बताती हैं कि एक मां बनना जिंदगी का सबसे सुखद अनुभव होता है. और इसलिए शायद मैं जिंदगी और मौत के बीच की लड़ाई में मौत को हरा पाई.

 

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