One Nation One Election: JPC सदस्यों के नामों का ऐलान, वन नेशन-वन इलेक्शन को लागू करने के लिए क्या-क्या करना होगा, बिल पास हो गया तो भी कब तक पूरे देश में एक साथ हो सकता है चुनाव?

One Nation One Election Bill: वन नेशन-वन इलेक्शन बिल पर जेपीसी की सिफारिशें मिलने के बाद मोदी सरकार की अगली चुनौती इसे संसद से पास कराने की होगी.संसद का मौजूदा सत्र 20 दिसंबर 2024 तक है. ऐसे में इस सत्र में बिल पास नहीं हो पाएगा. यदि बिल संसद में बिना परिवर्तन पास हो भी गया तो इस पर अमल 2034 से संभव हो पाएगा लेकिन ऐसा क्यों, आइए जानते हैं.

Lok Sabha (File Photo: PTI)
मिथिलेश कुमार सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 19 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 1:25 AM IST
  • जेपीसी में लोकसभा के 21 और राज्यसभा के 10 सदस्य हैं शामिल 
  • मोदी सरकार को संसद में बिल पास कराने के लिए पार करनी होगी चुनौती 

मोदी सरकार (Modi Government) ने एक देश-एक चुनाव यानी वन नेशन-वन इलेक्शन (One Nation One Election) को लेकर एक और कदम बढ़ा दिया है.

कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल 17 दिसंबर 2024 को इससे जुड़े विधेयक संविधान का 129वां संशोधन बिल 2024 और केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) बिल को लोकसभा में पेश किया. इसे ही आमभाषा में एक देश-एक चुनाव विधेयक या वन नेशन-वन इलेक्शन बिल कहा जा रहा है. लोकसभा (Lok Sabha) में वन नेशन-वन इलेक्शन बिल को पेश करने के पक्ष में 269 और विपक्ष में 198 मत पड़े.

अधिकांश विपक्षी दलों ने बिल का किया विरोध 
वन नेशन-वन इलेक्शन बिल का अधिकांश विपक्षी दलों ने विरोध किया. कांग्रेस ने इसे असंवैधानिक बताया. सरकार से इस बिल को तुरंत वापस लेने की मांग की. कांग्रेस ने कहा कि इस बिल को पेश कर केंद्र सरकार ने देश की आत्मा पर चोट किया है. विपक्षी पार्टी के नेताओं ने इस बिल को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेजने की मांग की.

कानून मंत्री ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से इस विधेयक को व्यापक विचार-विमर्श के लिए संसद की संयुक्त समिति के पास भेजने का अनुरोध किया. इसके बाद इसे जेपीसी के पास भेज दिया गया. जेपीसी की सिफारिशें मिलने के बाद मोदी सरकार की अगली चुनौती इसे संसद से पास कराने की होगी.संसद का मौजूदा सत्र 20 दिसंबर 2024 तक है. ऐसे में इस सत्र में बिल पास नहीं हो पाएगा. जेपीसी से मंजूरी के बाद यदि बिल संसद में बिना परिवर्तन पास हो गए तो इस पर अमल 2034 से संभव हो पाएगा.

क्या करेगी जेपीसी
सरकार ने इस बिल को JPC के पास भेजा है. जेपीसी को 8 पन्नों के इस बिल पर काफी कार्य करना होगा. जेपीसी का काम है इस पर व्यापक विचार-विमर्श करना, विभिन्न पक्षकारों और विशेषज्ञों से चर्चा करना और अपनी सिफारिशें सरकार को देना है. इस बिल में संविधान के तीन अनुच्छेदों में परिवर्तन करने और एक नया प्रावधान जोड़ने की पेशकश है. अनुच्छेद 82 में नया प्रावधान जोड़कर राष्ट्रपति द्वारा अप्वाइंटेड तारीख तय करने की बात है. अनुच्छेद 82 जनगणना के बाद परिसीमन के बारे में है.

कब रिपोर्ट देगी जेपीसी 
जेपीसी को वन नेशन-वन इलेक्शन बिल को अंतिम रूप देने में पूरा 2025 साल लग सकता है. ऐसा हुआ तो बिल सदन में साल 2026 में पास होने के लिए जाएगा. यदि मोदी सरकार विशेष बहुमत जुटाकर इस बिल को दोनों सदनों में पास करवाया भी लेती है तो चुनाव आयोग के पास चुनाव 2029 की तैयारी के लिए सिर्फ दो साल बचेंगे, जो पर्याप्त नहीं हैं. आपको मालूम हो कि बिल में यह जिक्र नहीं कि कब से लागू होगा. सरकार ने इसे लागू करने का अधिकार अपने पास रखा है. राष्ट्रपति की अधिसूचना का समय भी स्पष्ट नहीं.

जेपीसी सदस्यों के नामों का हुआ ऐलान
संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी में लोकसभा के 21 और राज्यसभा के 10 सदस्य शामिल हैं. सभी सदस्यों के नामों का ऐलान बुधवार को कर दिया गया. इसमें प्रियंका गांधी वाड्रा, अनुराग सिंह ठाकुर सहित 31 सदस्य शामिल हैं. 

जेपीसी में लोकसभा के सांसदों की लिस्ट 
1. पीपी चौधरी (भाजपा)
2. डॉ. सीएम रमेश (भाजपा)
3. बांसुरी स्वराज (भाजपा)
4. परषोत्तमभाई रूपाला (भाजपा)
5. अनुराग सिंह ठाकुर (भाजपा)
6. विष्णु दयाल राम (भाजपा)
7. भर्तृहरि महताब (भाजपा)
8. डॉ. संबित पात्रा (भाजपा)
9. अनिल बलूनी (भाजपा)
10. विष्णु दत्त शर्मा (भाजपा)
11. प्रियंका गांधी वाड्रा (कांग्रेस)
12. मनीष तिवारी (कांग्रेस)
13. सुखदेव भगत (कांग्रेस)
14. धर्मेन्द्र यादव (सपा)
15. कल्याण बनर्जी (टीएमसी)
16. टीएम सेल्वगणपति (डीएमके)
17. जीएम हरीश बालयोगी (टीडीपी)
18. सुप्रिया सुले (एनसीपी-शरद गुट)
19. डॉ. श्रीकांत एकनाथ शिंदे (शिवसेना-शिंदे गुट)
20. चंदन चौहान (आरएलडी)
21. बालाशोवरी वल्लभनेनी (जनसेना पार्टी)

संविधान संशोधन बिल
आपको मालूम हो कि किसी आम बिल को पास कराने के लिए दोनों सदनों राज्यसभा (Rajya Sabha) और लोकसभा में सामान्य बहुमत की जरूरत होती है जबकि संविधान संशोधन से जुड़े बिल को पास कराने के लिए दो तिहाई बहुमत की जरूरत होती है. वन नेशन-वन इलेक्शन बिल कोई सामान्य बिल नहीं है कि साधारण बहुमत से पास करवा लिया जाए और फिर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद इसे कानून बना दिया जाए.

एक देश-एक चुनाव विधेयक एक संविधान संशोधन बिल है. संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत यह बिल पास किया जाएगा. इसको पास कराने के लिए मोदी सरकार को लोकसभा और राज्यसभा में दो तिहाई बहुमत की जरूरत होगी. दो तिहाई बहुमत न तो एनडीए के पास लोकसभा में है और न ही राज्यसभा में है. लोकसभा में मौजूदा कुल 543 सदस्यों के हिसाब से दो तिहाई बहुमत के लिए 362 सांसदों का समर्थन चाहिए. 

मोदी सरकार को हो सकती है मुश्किल
मोदी सरकार के लिए लोकसभा में बिल पास कराने में मुश्किल हो सकती है क्योंकि बीजेपी (BJP) के अपने कुल 240 सांसद हैं, वहीं एनडीए (NDA) से जुड़े सभी दलों के सासंदों को जोड़ लें तो भी यह संख्या 291 तक ही पहुंचती है, जो दो तिहाई बहुमत से कम है. लोकसभा में इंडिया गठबंधन के 234 और अन्य दलों के 18 सदस्य हैं.

उधर, राज्यसभा की बात करें तो अभी इस सदन में कुल 231 सदस्य हैं, जिसमें दो तिहाई का आंकड़ा 154 होता है. इस उच्च सदन में छह मनोनित सहित एनडीए के कुल 118 सदस्य हैं, फिर भी राज्यसभा में बीजेपी के पास बहुमत से सांसद कम हैं. राज्यसभा में इंडिया गठबंधन के 85 और अन्य दलों के 34 सदस्य हैं. वन नेशन-वन इलेक्शन बिल को अभी जेपीसी के पास विचार-विमर्श के लिए भेजा गया है. हो सकता है कि मोदी सरकार इस विचार-विमर्श के बाद कुछ विरोधी पार्टियों के सांसदों को इस बिल के पक्ष में वोट देने के लिए मिले ले. 

साल 2034 से पहले नहीं हो सकते एक साथ चुनाव
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में 2 सितंबर 2023 को वन नेशन वन इलेक्शन पर विचार के लिए कमेटी बनाई गई थी. इस कमेटी की रिपोर्ट में एक नया प्रावधान अनुच्छेद 82 ए (1) शामिल करने का प्रस्ताव किया गया है. इसमें कहा गया है कि राष्ट्रपति आम चुनाव के बाद लोकसभा की पहली बैठक में तय समय अधिसूचित करेंगे.रिपोर्ट में अनुच्छेद 82 ए (2) को शामिल करने का भी प्रस्ताव किया गया है, जिसमें कहा गया है कि तय तारीख के बाद निर्वाचित राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल की समाप्ति के साथ करने के लिए कम किया जाएगा. 

इसका मतलब है कि साल 2029 में होने वाले लोकसभा चुनाव के बाद राष्ट्रपति अधिसूचना जारी कर लोकसभा की पहली बैठक की तारीख (अप्वाइंटेड डेट) तय करेंगे. इसके बाद पांच साल लोकसभा का फुल टर्म साल 2034 में पूरा होगा. इसके साथ ही सभी विधानसभाओं का कार्यकाल पूरा मान लिया जाएगा, तब जाकर चुनाव एक साथ कराए जा सकेंगे. एक साथ पूरे देश में चुनाव कराने के लिए बुनियादी जरूरतों के हिसाब से भी 2034 की टाइमलाइन ही मेल खाती है. चुनाव आयोग के पास एक इलेक्शन के लिए कम से कम 46 लाख ईवीएम चाहिए. अभी 25 लाख ईवीएम है. इन मशीनों की एक्सपायरी 15 साल है. 10 साल में 15 लाख मशीनें उम्र पूरी कर लेंगी. मशीनों के इंतजाम में भी 10 साल लगेंगे. ऐसे साल 2034 से पहले देश में एक साथ चुनाव शुरू नहीं पाएंगे.

क्या है वन नेशन-वन इलेक्शन
हमारे देश में अभी लोकसभा चुनाव और राज्यों के विधानसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं. ये चुनाव पांच साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद या जब सरकार किसी कारण से भंग हो जाती है तब कराए जाते हैं. इसकी व्यवस्था भारतीय संविधान में की गई है. वन नेशन-वन इलेक्शन का मतलब है कि पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव होंगे.

आपको मालूम हो कि आजादी के बाद देश में पहली बार 1951-52 में चुनाव हुए. तब लोकसभा के साथ ही सभी राज्यों की विधानसभा के चुनाव भी संपन्न हुए थे. इसके बाद साल 1957, 1962 और 1967 में भी एक साथ लोकसभा और विधानसभाओं के लिए चुनाव कराए गए थे. इसके बाद कुछ विधानसभाएं विभिन्न कारणों के चलते भंग कर दी गई थी, जिसके चलते 1968-69 के बाद एक साथ चुनाव होने के क्रम टूट गया. 

बनाई गई थी कमेटी 
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में 2 सितंबर 2023 को वन नेशन वन इलेक्शन पर विचार के लिए कमेटी बनाई गई थी. रामनाथ कोविंद समिति ने वन नेशन-वन इलेक्शन बिल को लागू करने को लेकर 62 राजनीतिक पार्टियों से संपर्क किया था. इनमें से 32 दलों ने वन नेशन वन इलेक्शन का समर्थन किया था, वहीं 15 दलों ने इसका विरोध किया था. 15 ऐसे दल थे, जिन्होंने कोई जवाब नहीं दिया था. इस कमेटी ने 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी. इसे 18 सितंबर को मोदी कैबिनेट ने मंजूरी दी थी.

 

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