विश्व स्तर पर यह अपनी तरह का पहला मामला हो सकता है जब किसी परमाणु रिएक्टर सेंटर को जनता के लिए म्यूजियम में परिवर्तित किया जा रहा है. रिएक्टर ट्रॉम्बे में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC)में अप्सरा है, जो 67 साल पहले 4 अगस्त, 1956 को दोपहर 3.45 बजे एक उपलब्धि हासिल की जिसने न केवल भारत, बल्कि एशिया के लिए भी परमाणु युग की शुरुआत की थी.
इसे 20 जनवरी, 1957 को जवाहरलाल नेहरू द्वारा राष्ट्र को समर्पित किया गया था. एक मेगावाट के रिएक्टर को 2009 में नवीनीकरण के लिए बंद कर दिया गया था और 10 सितंबर, 2018 को अप्सरा यू के रूप में फिर से शुरू किया गया था. वैज्ञानिकों ने इसका उपयोग परमाणु भौतिकी के क्षेत्र में बुनियादी अनुसंधान चिकित्सा अनुप्रयोग, मेटेरियल साइंस और रेडिएशन शील्डिंग के लिए किया था. कुछ साल बाद अप्सरा यू (Apsara U)को सेवामुक्त कर दिया गया जिसके बाद से म्यूजियम बनाने की परियोजना काफी समय से विचाराधीन है.
शनिवार शाम को टाइम्स ऑफ इंडिया के हवाले से पूर्व भारतीय परमाणु प्रमुख आर चिदम्बरम, 'इंडिया राइजिंग: मेमोयर्स ऑफ ए साइंटिस्ट', सह-लेखक सुरेश गंगोत्रा, BARC के निदेशक और परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष एके मोहंती ने पुष्टि करते हुए कहा, "हम अप्सरा को एक म्यूजियम में बदलने पर काम कर रहे हैं जो जनता को भारत के परमाणु कार्यक्रम के इतिहास की एक झलक प्रदान करेगा."
यह कहते हुए कि यह दुनिया में अपनी तरह की पहली परियोजना हो सकती है, उन्होंने कहा, “मौजूदा योजना में अन्य चीजों के अलावा उस स्थान को भी दिखाया गया है जहां होमी भाभा रिएक्टर में बैठते थे और पुराने BARC प्रशिक्षण स्कूल को भी दिखाया गया था. हम इस परियोजना के संबंध में नेहरू विज्ञान केंद्र के अधिकारियों से परामर्श करने की योजना बना रहे हैं.''
क्यों अप्सरा नाम पड़ गया ?
दरअसल रिएक्टर के शुरू होने पर इससे नीली किरणें निकली थीं. इसी वजह से प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इसका नाम अप्सरा रख दिया था.रिएक्टर रिसर्च सेंटर अप्सरा का डिजाइन वैज्ञानिक डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा ने साल 1955 में तैयार किया था. अप्सरा एक पूल-प्रकार का रिएक्टर था, जो कि 80 फीसदी शुद्ध यूरेनियम ईंधन का उपयोग करता है. जुलाई 1955 तक डिजाइन को अंतिम रूप दिया. श्रीनिवासन ने कहा कि भाभा चाहते थे कि रिएक्टर को छोड़कर पूरी तरह से भारत में बनाया जाए खाली ईंधन तत्वों का आयात किया जाता था. उन्होंने कहा कि जिस स्थान पर अप्सरा का निर्माण किया गया था, उस स्थान पर एक समय सैंडो कैसल, एक पारसी परिवार की संपत्ति और एक मुस्लिम संत की दरगाह थी. शहर की विभिन्न इकाइयों ने रिएक्टर के लिए कंपोनेंट्स का निर्माण किया, जैसे टीआईएफआर, चिंचपोकली और मझगांव डॉक्स में न्यू स्टैंडर्ड इंजीनियरिंग कंपनी. इसके चालू होने से भारत ने रेडियो आइसोटोप का उत्पादन शुरू किया। रेडियो आइसोटोप का चिकित्सा, खाद्य संरक्षण, पाइपलाइन चेकिंग के अलावा कई जगहों पर महत्व है.
अभी कितना समय लगेगा?
यह देखते हुए कि BARC एक उच्च सुरक्षा क्षेत्र है क्योंकि यह भारत के परमाणु हथियार कार्यक्रम की हार्टबीट है, योजनाकारों के सामने चुनौती यह है कि सुरक्षा से समझौता किए बिना प्रस्तावित म्यूजियम तक सार्वजनिक पहुंच कैसे दी जाए. एक प्रोविजनल योजना के अनुसार, टूरिस्ट रिफाइनरियों के पास BARC के दक्षिणी द्वार से म्यूजियम में प्रवेश करेंगे. परियोजना की समयसीमा के बारे में पूछे जाने पर मोहंती ने कहा कि इसमें एक साल या उससे थोड़ा अधिक समय लग सकता है. इस बारे में उन्होंने और अधिक जानकारी देने से इनकार कर दिया और कहा कि इस पर अभी काम हो रहा है. एक बार जैसे ही संग्रहालय अच्छे से बनकर तैयार हो जाएगा, तो स्कूली बच्चों को बैचों में लाया जाएगा.