Ariha Shah Case: यूरोपीय देशों में बच्चों को उनके परिवार से अलग करना कितना आम? जर्मनी में फोस्टर केयर कैसे काम करता है? जानिए

2021 में जर्मनी की चाइल्ड प्रोटेक्शन सर्विसेज ने 28 हजार बच्चों को उनके परिवार से अलग करके दूसरे अभिभावकों की देख रेख में डाल दिया. ऐसा ज्यादातर माता-पिता की इच्छा के विरूद्ध किया गया. बच्चों और युवाओं की सुरक्षा के लिए कदम उठाना Jugendamt का काम है.

Child protection Services
अपूर्वा राय
  • नई दिल्ली,
  • 18 जून 2023,
  • अपडेटेड 7:44 PM IST

यूरोपियन देशों में एक कहावत मशहूर है- 'Beware of the Jugendamt, hide your kids यानी जुजेंडमट से सावधान, अपने बच्चों को इनसे छुपा कर रखो.' यूरोपियन देशों में माता-पिता को उनके बच्चों से अलग कर देना कोई नई बात नहीं हैं. यहां ऐसी हजारों कहानियां मिल जाएंगी. खासकर जर्मनी में जब, सुबह की घंटी जरा जोरों से बजती है तो लोग दरवाजा खोलने से डरते हैं. उन्हें लगता है कि शायद फिर चाइल्ड वेलफेयर के नाम पर कोई उन्हें उनके बच्चों से दूर न कर दे. जर्मनी, नॉर्वे समेत कई देशों में बच्चों की परवरिश में छोटी सी गलती पर मां-बाप को सजा मिल जाती है. ताजा मामला भारतीय बच्ची अरिहा शाह का है. 

जर्मनी की एक स्थानीय अदालत ने 27 महीने के बच्ची अरिहा शाह की कस्टडी उनके भारतीय माता-पिता को सौंपने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने बच्ची को लोकल एजेंसी जर्मन यूथ सर्विस को सौंप दिया. कोर्ट का कहना है कि माता-पिता अपनी बच्ची के भविष्य का फैसला लेने के लिए अधिकृत नहीं हैं. अरिहा शाह मामले ने एक बार फिर जर्मनी की बाल सेवाओं और जुगेंडमट (जर्मनी की चाइल्ड वेलफेयर एजेंसी) पर सवाल उठाया है. सवाल इसलिए क्योंकि जर्मनी में आज भी चाइल्ड वेलफेयर सही देख रेख न होने के नाम पर हजारों बच्चों को उनके माता-पिता से अलग कर दिया जाता है.

इंडिया में अगर आपका बच्चा बदमाशी करें तो आप क्या करेंगे... समझाएंगे... शायद तंग आकर एक दो थप्पड़ भी लगा दें. लेकिन जर्मनी में ऐसा करना गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है और एक थप्पड़ लगाने के आरोप में आपको अपने बच्चे से दूर किया जा सकता है.

क्या है अरिहा शाह केस?
अरिहा के पिता भावेश शाह और माता धारा शाह गुजरात के रहने वाले हैं. वो 2018 में जर्मनी गए थे. 2021 में करीब 7 महीने की अरिहा के प्राइवेट पार्ट में चोट लग गई थी. पेरेंट्स जब बच्ची को अस्पताल लेकर गए तब डॉक्टरों ने कथित तौर पर यौन शोषण की बात कहते हुए जर्मनी चाइल्ड केयर यूनिट को इसकी रिपोर्ट की. इसके बाद बच्ची को पेरेंट्स से दूर फॉस्टर केयर में भेज दिया गया. बाद में यौन शोषण की बात गलत साबित हुई बावजूद इसके बच्ची की कस्टडी माता-पिता को नहीं दी जा रही है. अरिहा सितंबर 2021 से जर्मनी के यूथ वेलफेयर ऑफिस की कस्टडी में है. अरिहा की मां ने कोर्ट में अपील की थी कि उनकी बेटी की कस्टडी इंडियन वेलफेयर सर्विसेज को दी जाए. ताकि वो अपने भारतीय मूल्यों से दूर न . होंउनका कहना था कि 'अरिहा अपने रीति-रिवाजों से दूर हो रही है. हम जैन समुदाय से हैं, हम मीट नहीं खाते हैं लेकिन चाइल्ड वेलफेयर का मानना ​​है कि बच्चे के लिए 'केवल मांसाहारी भोजन ही पौष्टिक होता है, वे हमारी बच्ची को अपनी तरह बना रहे हैं.'


हालांकि यूरोपीय देशों में ऐसा होना कोई नई बात नहीं है. 2021 में जर्मनी की चाइल्ड प्रोटेक्शन सर्विसेज ने 28 हजार बच्चों को उनके परिवार से अलग करके दूसरे अभिभावकों की देख रेख में डाल दिया. ऐसा ज्यादातर माता-पिता की इच्छा के विरूद्ध किया गया. बच्चों और युवाओं की सुरक्षा के लिए कदम उठाना Jugendamt का काम है.

जर्मनी में किन परिस्थितियों में प्रशासन बच्चों को उनके मां-बाप से अलग कर सकता है. आइए पहले ये जान लेते हैं-

बच्चों को उनके परिवार से अलग क्यों किया जाता है?
दुनिया के अन्य हिस्सों की तरह जर्मनी में भी बच्चों की जरूरत का ख्याल रखने और उनका सही तरह से पालन पोषण करने की जिम्मेदारी पेरेंट्स की है. लेकिन जर्मनी की लोकल एजेंसियां और फोस्टर केयर इस मामले में दुनिया के बाकी देशों की तुलना में ज्यादा सख्त है. जर्मनी के संविधान के मुताबिक बच्चे के माता-पिता या उसके संवैधानिक अभिभावक ही उनके प्राथमिक संरक्षक हैं. सरकार के दखल को नियम कानूनों के जरिए नियमित किया जाता है. ऐसा जर्मनी के इतिहास की वजह से है. नाजी शासन के दौरान हजारों बच्चों को नस्लीय शुद्धता के नाम पर परिवार से ले लिया गया था. इसलिए दूसरे विश्व युद्ध के बाद नया संविधान बनाने वालों ने परिवारों को सत्ता के मनमाने दखल से बचाने का फैसला करते हुए इस तरह के नियम बना डाले. बच्चों को परिवार से लेना जर्मनी में उसकी सुरक्षा के लिए सेफ गार्ड माना गया है. इसके लिए वहां की सरकार फोस्टर केयर पर खर्च भी करती है. जर्मन सरकार इसके लिए बाल और युवा कल्याण कानून में संशोधन पर विचार भी कर रही है. 

सरकार का दखल कब हो सकता है?
जब इस बात की बहुत ज्यादा संभावना हो कि बच्चों की सेहत कई स्तरों पर बेहद खराब हो रही है. जर्मनी में बच्चों की सुरक्षा को 4 भागों में बांटा गया है.


अनदेखी- ये तब होती है जब किसी बच्चे की मूलभूत जरूरतें न पूरी हों. यानी अगर सरकार को लगता है कि बच्चों की जो पालन पोषण मिलता चाहिए वो नहीं मिल पा रहा, या माता-पिता इसे देने में सक्षम नहीं हैं तो राज्य उन्हें मां-बाप के संरक्षण से सरकारी संरक्षण में 
ले लेता है.

शारीरिक दुर्व्यवहार- जर्मनी में आप अपने बच्चे की गलती पर उसे एक थप्पड़ भी नहीं लगा सकते. साल 2000 के बाद से जर्मनी में बच्चों को थप्पड़ मारना अपराध है. चाइल्ड प्रोटेक्शन को लेकर सख्त जर्मनी का कानून मामूली मानवीय चूक भी नजरअंदाज नहीं करता है.

भावनात्मक दुर्व्यवहार - बच्चे को चिढ़ाना, उनके सामने गलत हरकते करना, उनके सामने घरेलू हिंसा करना इन चीजों से बच्चों को भावनात्मक नुकसान पहुंचता है. ऐसे मामलों में आरोप साबित होने से पहले ही बच्चे को मा-बाप से दूर कर दिया जाता है. यहां संदेह के आधार पर भी फैसला लिया जाता है.

यौन दुर्व्यवहार - अरिहा शाह मामले में 'यौन दुर्व्यवहार' का आरोप लगाकर जर्मन सरकार ने भारतीय बच्ची को फोस्टर केयर में रखा हुआ है. हालांकि जांच में ये मामला साबित नहीं हो पाया. अगर Jugendamt को लगता है कि कोई माता-पिता बच्चे की अनदेखी कर रहे हैं, या उसके साथ किसी तरह की हिंसा हो रही है तो बच्चों को उनके माता-पिता से अलग कर फॉस्टर केयर में डाल देते हैं.


क्या है तरीका
अगर कोई पड़ोसी, कोई टीचर कोई पारिवारिक सदस्य बच्चे के साथ हुई कोई गलत बात नोटिस करता है तो वो यूथ सर्विसेज कोन रिपोर्ट कर सकता है. इसके बाद एक सामाजिक कार्यकर्ता परिवार का दौरा करता है. अगर उन्हें लगता है कि बच्चा किसी खतरे में है तो यूथ सर्विसेज उन्हें अनाथालय या किसी अभिभावक की देख रेख में डालने का फैसला करती है. ये अस्थाई हो सकता है. कम गंभीर मामलों में जिनमें परिवार बच्चों से परेशान हो और उनकी अच्छे से देखरेख न कर पा रहा हो, यूथ सर्विसेज जांच को जारी रखती है. माता पिता को मदद भी देती है. ये मदद किसी तरह की भी हो सकती है.

क्या स्थानीय प्रशासन को दखल देना चाहिए?
जर्मनी के नियमों के मुताबिक अगर माता-पिता बच्चे की सुरक्षा सुनिश्चित करने में असफल होते हैं तो यूथ वेलफेयर ऑफिस इसमें दखल देती है. जर्मनी का दावा है कि हर दिन दुर्व्यवहार के चलते हर दिन एक बच्चे की मौत होती है और हर रोज 12 बच्चे बुरे व्यवहार के चलते अस्पताल पहुंचते हैं. इसलिए सरकार ने इतने कठोर नियम बनाए हैं. हालांकि सिर्फ अदालत ही माता-पिता से कस्टडी छीन सकती है.


जर्मनी की चाइल्ड वेलफेयर एजेंसी किस तरह काम करती है
Jugendamt एक जर्मन और ऑस्ट्रियाई एजेंसी है जिसे बच्चों के वेलफेयर को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया है. हर एक म्युनिसिपालिटी, शहर या "क्रेइस" (काउंटी) के आकार के आधार पर - इसका अपना "जुगेंडमट" है. जुगेंडमट, को यूथ वेलफेयर ऑफिस के रूप में भी जाना जाता है. ये जर्मनी में 1924 से लागू है और वीमर गणराज्य के दौरान "रीच्सगेसेट्स फर जुगेन्डोहल्फ़हर्ट"ने इसे बनाया था. Jugendamt का फंक्शन और पावर अमेरिका में चाइल्ड प्रोटेक्टिव सर्विसेज और इंग्लैंड और वेल्स में चिल्ड्रन एंड फैमिली कोर्ट एडवाइजरी एंड सपोर्ट सर्विस की तरह ही हैं. इन एजेंसियों को ठीक से केयर न करने पर माता-पिता को उनके बच्चों से अलग करने का अधिकार दिया गया है.

जर्मन कानून के अनुसार, अगर जुगेंडमट को किसी ऐसे बच्चे के बारे में पता चलता है जिसके साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है तो उनका एक कर्मचारी परिवार और पड़ोसियों, या उनके केयर के पास जाकर इसकी जांच करता है. अगर अधिकारियों को लगता है कि बच्चा खतरे में है, तो वे बच्चे को परिवार से दूर चाइल्ड केयर यूनिट भेज दिया जाता है. जैसे ही घर में स्थिति में सुधार होता है, बच्चा अपने परिवार के पास वापस जा सकता है. लेकिन भारतीय बच्ची अरिहा सितंबर 2021 से जर्मनी के यूथ वेलफेयर ऑफिस की कस्टडी में है.

किन बच्चों को फोस्टर केयर में सौंपा जाता है?
सरकारों द्वारा संचालित बाल देखरेख संस्थाओं में रहने वाले ऐसे बच्चे जिन्हें देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता है, उन बच्चों को पारिवारिक माहौल देने के लिए उपयुक्त फोस्टर पेरेंट या संस्था को फोस्टर केयर योजना के अंतर्गत सौंपा जाता है. जर्मनी में फोस्टर पेरेंट बनने के लिए आपको शादी करने की जरूरत नहीं है. सिंगल और सेम सेक्स कपल भी फोस्टर पेरेंट बन सकते हैं. लंबे समय तक फोसूटर पेरेंट बनने के लिए बच्चे और फोस्टर पेरेंट की उम्र में एज गैप होना चाहिए.

Jugendamt से जुड़े पिछले विवाद
स्थानीय कोर्ट लगभग सभी मामलों में ऐसा करता रहा है. दूसरे देशों से आए लोगों के बच्चे इसके शिकार बनते हैं. यह पहली बार नहीं है कि जुगेंडमट और इसकी कार्यप्रणाली पर सवाल उठाया गया है. 2018 में, एजेंसी ने 52,590 बच्चों को उनके माता-पिता से अलग कर दिया था. ऐसे कई उदाहरण हैं जब जुगेंडमट ने बिना किसी जस्टिफिकेशन के एक्ट किया है. जर्मनी  में इसी से जुड़ा एक और बेतुका नियम है, अगर कोई बच्चा दो साल तक फोस्टर केयर में रह गया, तो फिर उसे 18 साल का होने तक वहीं रहना होगा.

फोस्टर केयर का बिजनेस और जर्मन सरकार
दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से आए हजारों परिवार जुगेंडमट के शिकार हुए हैं और हो रहे हैं. जिस तरह से जुगेंडमट ऑपरेट होता है, उससे लगता है कि आज भी लोग नाजी जर्मनी में रह रहे हैं. जर्मन सरकार द्वारा संचालित फोस्टर केयर अदालत प्रणाली पर हावी है. बच्चों को पूरी तरह से सामान्य परिवारों से अनुचित पैरेंटिंग का आरोप लगातर जब चाहे लिया जा सकता है. जुगेंडमट को जर्मन सरकार द्वारा संचालित किया जाता है. बच्चों के इस तरह 'छीनने' की घटनाओं में बढ़ोतरी इस वजह से भी होती है कि जुगेंडमट को मिलने वाले पैसे, देखभाल करने वाले बच्चों के आनुपातिक होते हैं. यानी जितने ज्यादा बच्चे होंगे सरकार द्वारा उतनी ज्यादा राशि मुहैया कराई जाएगी. बच्चे के पालन-पोषण की लागत को कवर करने के लिए सरकार मासिक भत्ता भी देती है. सालों से ऐसी वेलफेयर एजेंसी को सुधारने या बंद करने की मांग उठती रही है लेकिन कोई कड़ा कदम नहीं उठाया गया है.

 

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