बिना लिखित कारण बताए गिरफ्तारी? दिल्ली हाई कोर्ट ने NIA की कार्रवाई को ठहराया अवैध! सेना प्रमुख समेत 3 गिरफ्तारियों को किया रद्द

यह फैसला UAPA और दूसरे आपराधिक कानूनों के तहत की जाने वाली गिरफ्तारियों के मामलों में बड़ा उदाहरण बन सकता है. अब NIA जैसी एजेंसियों को किसी भी गिरफ्तारी के समय लिखित में कारण बताने का विशेष ध्यान रखना होगा.  

दिल्ली हाई कोर्ट ने NIA को फटकारा
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 21 फरवरी 2025,
  • अपडेटेड 12:05 PM IST
  • NIA की दलीलें और हाई कोर्ट का जवाब
  • गिरफ्तारी और रिमांड ऑर्डर रद्द

दिल्ली हाई कोर्ट ने गुरुवार को नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी (NIA) द्वारा मणिपुर से लाए गए यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (UNLF) के कथित ‘सेना प्रमुख’ थोकचोम श्यामजई सिंह और अन्य सदस्यों की गिरफ्तारी को अवैध करार देते हुए रद्द कर दिया.  

जस्टिस अनुप जयराम भंभानी ने अपने फैसले में कहा कि गिरफ्तारी के समय लिखित में कारण बताना “अनिवार्य और Unquestionable” है, चाहे वह गिरफ्तारी किसी भी कानून के तहत क्यों न हो. कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पंकज बंसल, प्रबीर पुरकायस्थ और विहान कुमार मामलों के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि यह निर्देश भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22(1) पर आधारित है.  

क्या कहता है संविधान का अनुच्छेद 22(1)?
अनुच्छेद 22(1) के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने पर उसे जल्द से जल्द गिरफ्तारी के कारणों के बारे बताना चाहिए और अपनी पसंद के वकील से परामर्श करने का अधिकार देना चाहिए. हाई कोर्ट ने साफ किया कि इस संवैधानिक प्रावधान के पालन की जिम्मेदारी हमेशा जांच एजेंसी की होती है.  

कौन हैं थोकचोम श्यामजई सिंह और क्यों हुई थी गिरफ्तारी?  
श्यामजई सिंह पर आरोप था कि वह UNLF के माध्यम से मणिपुर में उग्रवादी गतिविधियों का नेतृत्व कर रहे थे. उनके साथ 'लेफ्टिनेंट कर्नल' लिमयम आनंद शर्मा और संगठन के सदस्य इबोमचा मैते को भी मणिपुर के इम्फाल से गिरफ्तार कर दिल्ली लाया गया था. NIA ने दावा किया था कि ये लोग उग्रवाद के लिए पैसे जुटाने, हथियार खरीदने और मणिपुर में जातीय हिंसा को भड़काने की साजिश में शामिल थे.  

NIA की दलीलें और हाई कोर्ट का जवाब
NIA ने कहा कि मार्च 2024 में गिरफ्तारी के समय UAPA कानून के तहत लिखित में कारण बताने की कोई कानूनी जरूरत नहीं थी, और गिरफ्तार लोगों को मौखिक रूप से कारण बताए गए थे. बाद में रिमांड एप्लीकेशन में लिखित विवरण दिया गया था.  

लेकिन हाई कोर्ट ने NIA की इस दलील को खारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पंकज बंसल मामले के फैसले के अनुसार, लिखित में गिरफ्तारी के कारण बताना अनिवार्य था. अदालत ने स्पष्ट किया कि इस मामले में NIA ने कानून का पालन नहीं किया.  

गिरफ्तारी और रिमांड ऑर्डर रद्द
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा, “13 मार्च 2024 को की गई गिरफ्तारियां कानून के उल्लंघन के कारण अमान्य हैं. इसलिए, इन गिरफ्तारियों और 14 मार्च 2024 को दिए गए रिमांड आदेशों को रद्द किया जाता है.” कोर्ट ने तीनों आरोपियों को तुरंत रिहा करने का आदेश देते हुए कहा कि अगर किसी और मामले में उन्हें गिरफ्तार करने की आवश्यकता नहीं है तो उन्हें न्यायिक हिरासत से रिहा किया जाए.  

“कानून की धज्जियां उड़ाई गईं”
कोर्ट ने कहा कि NIA ने गिरफ्तारी के समय लिखित कारण नहीं दिए और यह भी नहीं सुनिश्चित किया कि आरोपियों को उचित कानूनी प्रतिनिधित्व मिले. कोर्ट ने माना कि इस मामले में NIA ने गिरफ्तारी प्रक्रिया में संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों की अनदेखी की.  

NIA ने तर्क दिया था कि आरोपी एक “अंतरराष्ट्रीय साजिश” का हिस्सा थे, जो म्यांमार स्थित आतंकवादी संगठनों द्वारा मणिपुर की जातीय अशांति का फायदा उठाकर भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए रची गई थी.  

लेकिन कोर्ट ने कहा कि आरोपों की गंभीरता के बावजूद, संवैधानिक प्रावधानों का पालन करना जरूरी है. 

क्या है इस फैसले का असर?
यह फैसला UAPA और दूसरे आपराधिक कानूनों के तहत की जाने वाली गिरफ्तारियों के मामलों में बड़ा उदाहरण बन सकता है. अब NIA जैसी एजेंसियों को किसी भी गिरफ्तारी के समय लिखित में कारण बताने का विशेष ध्यान रखना होगा.  

अब ये देखना दिलचस्प होगा कि NIA इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देती है या नहीं. लेकिन यह फैसला निश्चित रूप से भारत में गिरफ्तारी प्रक्रिया को थोड़ा और पारदर्शी और संवैधानिक बनाने का काम कर सकता है. 

 

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