भारतीय सेना के लिए जमीन और आसमान के साथ साथ समुद्र की सुरक्षा भी बहुत अहम है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए भारत ऑटोनोमस अंडरवाटर व्हीकल्स (Autonomous Underwater Vehicle) तैयार कर रहा है. भारतीय रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने हाल ही में एक ऑटोनोमस अंडरवाटर व्हीकल (एयूवी) का सफल परीक्षण किया है.
यह एयूवी भारतीय नौसेना की समुद्री सुरक्षा को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा. डीआरडीओ के इस नए एयूवी का उद्देश्य समुद्र की गहराइयों में निगरानी और सुरक्षा को बढ़ाना है.
बिना इंसानी मदद के चलेगा भारत का एयूवी
डीआरडीओ का बनाया हुआ एयूवी पूरी तरह से रोबोटिक और एआई-सक्षम है. यह बिना किसी मानव हस्तक्षेप के पानी के अंदर ऑपरेट कर सकता है. रक्षा विशेषज्ञ ब्रिगेडियर शरदेंदू (रिटायर्ड) ने बताया, "यह एयूवी पानी के अंदर खुद ही अपनी दिशा तय कर सकता है और कितनी गहराई तक जाना है इसका आंकलन भी खुद ही कर सकता है."
उन्होंने बताया, "यह तट से तट तक ऑपरेट कर सकता है. इसे इंसानों से लगातार इनपुट की जरूरत भी नहीं. यह एआई की मदद से चलता है और एक प्रोग्रामिंग के तहत ऑपरेट करता है. इसलिए यह पानी के अंदर खुद ही अपनी दिशा तय कर लेता है."
नौसेना के लिए कितना महत्वपूर्ण?
यह एयूवी नेवल सर्विलांस, एंटी सबमरीन वारफेयर और समुद्री सर्वेक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. इसके एडवांस्ड सेंसेस, कटिंग एज कैमरा, रडार, और इन्फ्रारेड टेक्नोलॉजी इसे हर तरह की निगरानी और जासूसी के लिए उपयुक्त बनाते हैं. ब्रिगेडियर शरदेंदू बताते हैं कि एयूवी का सोनार सिस्टम साउंड वेव्स के जरिए ऑब्जेक्ट की एग्ज़ैक्ट लोकेशन बता सकता है.
उन्होंने एयूवी के सोनार सिस्टम के बारे में कहा, "एयूवी जब पानी के सरफेस के नीचे जाता है तो सोनार सिस्टम ऑपरेट करता है. साउंड वेव जेनेरेट करता है. जब ये साउंड वेव किसी ऑब्जेक्ट से टकराकर वापस आती है तो वह उसकी सटीक लोकेशन बता देता है. जब तीन-चार सोनार सिस्टम एक साथ लगाए जाते हैं तो किसी भी ऑबजेक्ट की सटीक लोकेशन मिलना आसान है."
पानी के नीचे कम्यूनिकेशन भी एक बड़ी चुनौती होती है. इसके लिए एयूवी में अकूस्टिक मॉडल और अकूस्टिक पोजिशनिंग सिस्टम का इस्तेमाल किया गया है. यह सिस्टम एयूवी को रियल टाइम मॉनीटरिंग और मनूवर करने में मदद करता है.
एल एंड टी के योगदान
भारत की जरूरतों को देखते हुए एल एंड टी भी एयूवी डेवलप कर रहा है. इनके नाम हैं माया, अमोघ और अदम्य. अदम्य की रफ्तार 11 किलोमीटर प्रति घंटे है और यह 500 मीटर की गहराई में आठ घंटे तक रह सकता है. अमोघ 22 घंटे तक समंदर में रह सकता है और 1000 मीटर गहराई तक जा सकता है.
अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में कितना अहम?
दुनिया के कई देश अंडरवॉटर ड्रोन टेक्नोलॉजी पर तेजी से काम कर रहे हैं. ऑस्ट्रेलिया का घोस्ट शार्क और अमेरिका का मैंटा रे अंडरवाटर ड्रोन काफी सुर्खियों में हैं. ये ड्रोन समुद्र की निगरानी करने, सीक्रेट मिशन को अंजाम देने और खुफिया मिशन को अंजाम देने में सक्षम हैं.
पश्चिमी देशों के अलावा चीन भी समुद्री डिफेंस के मामले में तेज़ी से तरक्की कर रहा है. ऐसे में भारत भी पीछे नहीं रह सकता. भारतीय सेना अपने हथियारों को आर्टिफिशियल इन्टेलिजेन्स से लैस कर रही है ताकि जंग के मैदान में इंसानों की जगह मशीनों का इस्तेमाल किया जा सके. डीआरडीओ की अनमैन्ड बोट और मंत्रा टैंक जैसे उपकरण भारतीय सेना की ताकत को और बढ़ाएंगे.