Ramnami Community के लोगों को Ayodhya आने का न्योता, पूरे शरीर पर गुदवाते हैं राम के नाम का टैटू, बड़ी दिलचस्प है इसके पीछे की कहानी

रामनामी समाज के लोग न मंदिर जाते हैं और न ही मूर्ति की पूजा करते हैं. उन्होंने अपने पूरे शरीर पर राम नाम गुदवाया हुआ है. ये लोग राम-राम लिखे कपड़े ही पहनते हैं. घरों की दीवारों पर राम-राम लिखवा रखे हैं. श्रीराम जन्मभूमि ट्रस्ट की ओर से रामनामी समाज के लोगों को रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा में आने को न्योता दिया गया है.

Ramnami Community
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 11 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 1:36 AM IST
  • हमेशा राम नाम जपते रहते हैं रामनामी समाज के लोग 
  • 2 साल का होते ही बच्चे के शरीर पर गुदवा देते हैं राम नाम 

भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या में प्रभु श्री राम के मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी 2024 को होनी है. इसको लेकर पूरे देश में उत्साह है. इस समय छत्तीसगढ़ के रामनामी समाज की भगवान राम के प्रति श्रद्धा चर्चा का विषय बनी हुई है. इस समाज के लोग अपने पूरे शरीर पर राम के नाम का टैटू गुदवाते हैं. आइए आज इसके पीछे की दिलचस्प कहानी के बारे में जानते हैं. 

प्राण-प्रतिष्ठा का मिला न्योता
शरीर के विभिन्न हिस्सों में राम नाम लिखवाने के कारण इस संप्रदाय से जुड़े लोग अलग से ही पहचान में आ जाते हैं. श्रीराम जन्मभूमि ट्रस्ट की ओर से रामनामी समाज के लोगों को रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा में आने को न्योता दिया गया है. इस समुदाय के हर सदस्य, पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं और वातावरण में राम नाम बसा है.

न मंदिर जाते हैं और न ही मूर्ति की करते हैं पूजा 
रामनामी समाज के लोग न मंदिर जाते हैं और न ही मूर्ति पूजा करते हैं. उन्होंने अपने पूरे शरीर पर राम नाम गुदवाया हुआ है. इतना ही नहीं राम-राम लिखे कपड़े भी पहनते हैं. घरों की दीवारों पर राम-राम लिखवाते हैं. देश और दुनिया में एक-दूसरे का अभिवादन हेलो, हाय, नमस्कार आदि शब्दों से किया जाता है. लेकिन इस समुदाय के लोग एक-दूसरे से राम-राम कहकर मिलते हैं.

रामनामियों के हैं 5 प्रतीक
रामनामी समाज के पांच प्रमुख प्रतीक हैं. ये हैं भजन खांब या जैतखांब, शरीर पर राम-राम का नाम गोदवाना, सफेद कपड़ा ओढ़ना, जिस पर काले रंग से राम-राम लिखा हो, घुंघरू बजाते हुए भजन करना और मोरपंखों से बना मुकट पहनना है. सिर से लेकर पैर तक राम नाम, शरीर पर रामनामी चादर, मोरपंख की पगड़ी और घंघुरू रामनामियों की पहचान है.

कैसे शुरू हुई परंपरा
कहा जाता है कि रामनामी समाज मुगलों के विरोध में बसाया गया था. यह तब की बात है, जब मुगलों ने भारतीय मंदिरों को तोड़ना शुरू किया. उन्होंने राम मंदिरों को भी तोड़ दिया और आदेश दिया कि राम को पूजने की बजाय हमारी पूजा करो. लोगों ने आदेश मानने से इनकार किया तो उन्हें सताया गया. विरोध स्वरूप लोगों ने अपने पूरे शरीर पर राम नाम गुदवा लिया और मुगलों से कहा कि एक को मारोगे तो राम नाम वाले 10 खड़े हो जाएंगे. मंदिर-मूर्तियां तोड़ दी, हमारे शरीर से राम नाम हटवा कर दिखाओ.

भक्ति आंदोलन के कारण रामनामी समाज बना
एक और धारणा प्रचलित है कि देश में भक्ति आंदोलन जब अपने चरम पर था, तब लोग अपने-अपने देवी-देवताओं की रजिस्ट्रियां करवाने लगे थे. उस समय दलित समाज के हिस्स में न तो मूर्ति आई और न ही मंदिर. उनसे मंदिर के बाहर खड़ा होने तक का हक छीन लिया गया था. एक सदी पहले रामनामी समाज के लोगों को भी छोटी जाति का बताकर उन्हें मंदिर में नहीं घुसने दिया गया था. 

इसके बाद भगवान राम के प्रति इनकी आस्था शुरू हुई थी. इसी घटना के बाद रामनामी समाज के लोगों ने मंदिर और मूर्ति दोनों को त्याग दिया. अपने रोम-रोम में राम को बसा लिया और तन को मंदिर बना दिया. कहा जाता है कि इस समाज के लोग 2 साल का होते ही बच्चे के शरीर पर राम नाम गुदवा देते हैं. यह लोग कभी झूठ नहीं बोलचे. मांस नहीं खाते, बस राम नाम जपते रहते हैं.

 

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