मिलेनियम सिटी कटक में ऐतिहासिक बालीयात्रा की शुरुात आज यानी 27 नवंबर से हो रही है. यह आठ दिवसीय उत्सव है, जो ओडिशा (तत्कालीन कलिंग) के समुद्री गौरव का जश्न मनाता है. उत्सव में इस बार 35-फीट ऊंची और 100 फीट चौड़ी रेत की नाव का स्कल्पचर लगाया जा रहा है जो कलरफुल लाइटिंग से रोशन होगा. यह लोगों के लिए एक नया अनुभव रहेगा.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, फेस्टिवल ग्राउंड पर लोगों को ग्रामीण परिवेश का अहसास होगा. नाव की विशाल रेत कला के अलावा, फूस के घरों के मॉडल, मंदिर, मीना बाजार और महोत्सव मैदान पर विभिन्न प्रकार के झूले विजिटर्स को एक नया अनुभव देंगे. रेत की नाव की मूर्ति सैंड आर्टिस्ट सुदाम प्रधान और 10 अन्य कलाकारों ने बनाई है जिसके लिए 300 टन से ज्यादा रेत का उपयोग किया गया है.
क्या है बाली जात्रा
बाली जात्रा, ओडिशा के समुद्री इतिहास का जश्न मनाने वाला एक त्योहार है और इसे एशिया का सबसे बड़ा खुला व्यापार मेला (Open Trade Fair) माना जाता है. इस त्यौहार की जड़ें प्राचीन काल से जुड़ी हैं जब व्यापारी भारतीय उपमहाद्वीप से आस-पास की भूमि पर समुद्री यात्रा पर निकलते थे. "बाली यात्रा" का अनुवाद "बाली की यात्रा" है. यह त्यौहार प्राचीन कलिंग (आधुनिक ओडिशा) और बाली और जावा, सुमात्रा, बोर्नियो, बर्मा (म्यांमार) और सीलोन (श्रीलंका) जैसे अन्य दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्रों के बीच 2,000 साल पुराने समुद्री और सांस्कृतिक संबंधों की याद दिलाता है.
बाली जात्रा का इतिहास
यह त्यौहार उस प्राचीन समय की याद दिलाता है जब कलिंग (ओडिशा) का भारतीय उपमहाद्वीप में समुद्री व्यापार में महत्वपूर्ण स्थान था. इस क्षेत्र के बहादुर नाविक "बोइतास" नामक विशाल नौकाओं पर रोमन साम्राज्य, अफ्रीका, फारस, अरब देशों, चीन, जापान, बर्मा, सीलोन और कई अन्य देशों के साथ व्यापार संपर्क स्थापित करने के लिए अज्ञात देशों की साहसी यात्राओं पर निकलते थे. इस मौसम में चलने वाली अनुकूल हवा का फायदा उठाते हुए, यात्रा कार्तिक पूर्णिमा से शुरू होती थी. बोइतास को चलाने के लिए पवन ऊर्जा का उपयोग करने के लिए अजहला, या बड़े कपड़े की पाल का उपयोग किया जाता था.
बाली जात्रा उत्सव "तापोई" की कथा से जुड़ा है और इसमें "भालुकुनी ओशा," "खुदुरुकुनी ओशा," और "बड़ा ओशा" जैसे अनुष्ठान शामिल हैं. यह अपने नाविक भाइयों की वापसी की प्रतीक्षा कर रही एक युवती की याद दिलाता है. नाविकों के प्रयास और समुद्री व्यापार पर कलिंग की कमान इतनी उल्लेखनीय थी कि कालिदास ने अपने रघुवंश में कलिंग को "समुद्र का भगवान" नाम दिया था. इतिहासकारों का सुझाव है कि कलिंग और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच कुछ लोकप्रिय व्यापारिक चीजें काली मिर्च, दालचीनी, इलायची, रेशम, कपूर, सोना और आभूषण थे.
बोट फेस्टिवल है खास
हर साल, कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर, ओडिशा के लोग छोटी खिलौना नावों को तैराने के लिए महानदी, ब्राह्मणी नदी, तालाबों, पानी की टंकियों और समुद्र तटों के पास इकट्ठा होते हैं. ये नावें रंगीन कागज, सूखे केले के पेड़ की छाल और कॉर्क से बनी होती हैं और सुबह-सुबह इन्हें नदी में छोड़ा जाता है. नावों में पारंपरिक पान होता है और इनके अंदर छोटे तेल के दीपक जलाकर रखे जाते हैंय लोग ओडिशा के प्रारंभिक समुद्री इतिहास को याद करने के लिए "आ का मा बोई, पैन गुआ थोई..." नामक गीत गाते हैं.
यह गीत कलिंग के समुद्री व्यापारियों के लिए चार महत्वपूर्ण महीनों के बारे में बताता है. साल 2022 के उत्सव में 35 मिनट में 22,000 कागज की नावें बनाकर नदी में छोड़ी गई थीं. इसने गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में जगह बनाई.
बाली यात्रा एक व्यापारिक कार्यक्रम होने के साथ-साथ सांस्कृतिक विविधता का उत्सव भी है. यह उत्सव बाराबती किले के पास महानदी पर गडगड़िया घाट पर होता है और विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों जैसे लोक नृत्य, पारंपरिक संगीत प्रदर्शन और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का प्रदर्शन किया जाता है. बाली यात्रा के साथ लगने वाला भव्य पल्लीश्री मेला भी एक महत्वपूर्ण आकर्षण है. मेले में कई स्टॉल हैं जो विभिन्न प्रकार के सामान, स्थानीय व्यंजनों और हस्तनिर्मित वस्तुओं को बेचते हैं.
इस बार होगा खास लेजर लाइट शो
रिपोर्ट्स के मुताबिक, बाली जात्रा उत्सव 2023 के लिए एक विशेष लेजर लाइट शो की योजना बनाई गई है, जो बाली यात्रा के इतिहास में अपनी तरह का पहला होगा. इसके अतिरिक्त, अधिकारी यह सुनिश्चित करने के लिए विशेष उपाय कर रहे हैं कि यह आयोजन सस्टेनेबल हो और इसका पर्यावरण पर गलत प्रभाव कम से कम हो. उदाहरण के लिए, यहां ऐसे स्टॉल होंगे जहां लोग प्रत्येक प्लास्टिक की बोतल लौटाने पर 5 रुपये का कैशबैक पा सकते हैं. यात्रियों को सलाह दी जाती है कि वे पर्यावरणीय क्षति को न्यूनतम रखने के लिए किए गए प्रयासों में योगदान दें.