बनारस के लकड़ी उद्योग का दक्षिण भारत में बढ़ा दबदबा, लकड़ी से बनी देवी देवताओं की मूर्तियों को पसंद कर रहे लोग

दक्षिण भारत में होने वाले गोलू बोम्मई त्योहार में गुड़िया और खिलौनों की पूजा की जाती है. ये खिलौने लकड़ी के बने होते है. खास बात ये है खिलौने बनारस की जीआई टैग लकड़ी से बने होते हैं.

गोलू बोम्मई
शिल्पी सेन
  • बनारस,
  • 28 सितंबर 2022,
  • अपडेटेड 8:19 AM IST
  • बनारस के कारीगरों ने किए हैं कई बदलाव 
  • भगवान की भाव भंगिमा वाली मूर्तियां हैं खास पसंद

भारत में अक्टूबर का महीना काफी खुशनुमा होता है. देश के कोने-कोने में कोई न कोई त्यौहार मनाया जाता है. हर त्यौहार का नजारा अलग ही होता है. शारदीय नवरात्र में दक्षिण भारत में होने वाले प्रसिद्ध 'गोलू' या गोलू बोम्मई (Golu Bommai) में इस बार नजारा अलग है. ये नज़ारा उत्तर भारत और दक्षिण भारत के मिलन का है. वजह ये है कि 'गोलू' में घर-घर सजाई जाने वाली गुड़ियों में इस बार वाराणसी के जीआई टैग (GI tagged) लकड़ी का इस्तेमाल किया गया है. इन लकड़ियों से बनी मूर्तियों और गुड़िया का खूब मांग है. काशी के लोलार्क कुंड में लकड़ी के खिलौनों के कारीगरों में इन मूर्तियों और गुड़ियों को बनाया है.

वाराणसी के वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट और जीआई टैग के अंतर्गत आने वाले लकड़ी के खिलौनों की मांग इस बार दक्षिण भारत के गोलू फेस्टिवल में देखी जा सकती है. तरह तरह की देव-देवी मूर्ति और लकड़ी की गुड़िया, वहां की परम्परागत मूर्तियों के साथ सजी नज़र आ रही है.

दक्षिण भारत के त्योहार में बनारसी लकड़ी की गुड़िया  
दरअसल दक्षिण भारत में होने वाले 10 दिन तक चलने वाले गोलू फेस्टिवल की शुरुआत 26 सितंबर को हुई है. ये त्योहार गुड़ियों को सजा कर रखने और उनके सामने गीत गाने के लिए जाना जाता है. इस बार गोलू त्यौहार में दक्षिण की परम्परागत गुड़ियों और खिलौनों के साथ बनारस के लकड़ी उद्योग के खिलौने एवं मूर्तियों को भी देखा जा सकेगा. यूपी में पूर्वांचल के लकड़ी उद्योग के कारीगरों के लिए ये काफी खास बात है क्योंकि अब तक बनारस की लकड़ी के खिलौने और गुड़िया उत्तर भारत में पसंद की जाती रही हैं. हालांकि पहले भी बनारसी लकड़ी और गचकारी के खिलौने दक्षिण भारत के लोग पसंद करते रहे हैं. इस बार इन गुड़ियों की मांग बढ़ी है.

बनारस के कारीगरों ने किए हैं कई बदलाव 
गोलू फेस्टिवल में सजावट के लिए रखी मूर्तियों में बनारस के लकड़ी के खिलौनों को इस बार पसंद किया का रहा है. ये खिलौने अपनी कारीगरी और सुंदरता की वजह से पसंद किए जा रहे हैं. खास बात ये है कि पिछले कुछ समय में इनके ऊपर पॉलिश किए जाने वाले रंगों में काफी प्रयोग किए गए हैं. साथ ही पौराणिक कथाओं से जुड़े पात्र और घटनाओं पर आधारित मूर्तियों का भी खूब चलन है. बनारस के लोलार्क कुंड में लकड़ी के खिलौने और गुड़िया के कारोबारी बताते हैं कि दक्षिण भारत की परिवेश से मिलती जुलती मूर्तियों को बनाने का ऑर्डर गोलू फेस्टिवल के लिए बनारस के कारीगरों को मिला था. 

भगवान की भाव भंगिमा वाली मूर्तियां हैं खास पसंद
गोलू फेस्टिवल में राजा, राजा का हाथी, घोड़े बहुत पसंद किए जाते हैं. साथ ही भगवान राम की अलग अलग भाव भंगिमा वाली मूर्तियां, राम दरबार, श्री कृष्ण, कृष्ण की लीलाएँ, मां दुर्गा की प्रतिमा की मांग ज्यादा रही है. बाकि दिनों में देवी देवताओं के मूर्तियों के साथ घरों में सजाने के लिए लकड़ी के खिलौनों की मांग खूब रहती है. जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बनारस के लकड़ी के खिलौने विदेशी मेहमानों को उपहार के तौर पर दिए हैं. तब से इनकी मांग विदेशों में भी बढ़ी है. 

पीएम मोदी के कारण बढ़ा है चलन
G-7 समिट में पीएम मोदी ने इंडोनेशिया के राष्ट्रपति को लकड़ी का बना राम दरबार दिया था. लोलार्क कुंड के प्रमुख खिलौना कारोबारी बिहारी लाल अग्रवाल बताते हैं कि, "जब से प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लकड़ी के खिलौने के उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचार-प्रसार किया है. तब से इसकी मांग देश और विदेशों में ज़्यादा बढ़ी है. पर हम लोग डिमांड के मुताबिक इन गुड़ियों और खिलौने में बदलाव भी करते हैं, जिससे ये सभी तरह के लोगों को पसंद आ सकें."

गुड़ियों और खिलौनों की सजती है झांकी, होता है उत्सव 
गोलू यानी ‘फेस्टिवल ऑफ़ डॉल्स’ दक्षिण भारत में शरद ऋतु में पड़ने वाले शारदीय नवरात्र में मनाया जाता है. इस त्यौहार में माता पार्वती की पूजा की जाती है. वहीं घर-घर गुड़ियों को खूबसूरत तरीके से सजाने की भी परंपरा है. ये गुड़ियों का उत्सव है जिसमें गुड़ियों को सीढ़ीनुमा लकड़ी के स्टेप्स में सजाया जाता है. इसमें रोशनी की जाती है. 10 दिनों तक चलने वाले इस गुड़िया फेस्टिवल में देवी देवताओं की मूर्तियों के साथ घर के सारे गुड्डे गुड़ियां और खिलौनों को सजाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है. घर घर में जहां लोग इसको सजाते हैं. वहीं एक दूसरे के घर में इस अवसर पर मिलने और गुड़िया सजावट को देखने भी लोग जाते हैं. सामाजिकता के इस उत्सव में इसी गुड़िया सजावट के सामने गीत भी गाए जाते हैं. विषम संख्या (3,5,7,9) की सीढ़ीनुमा प्लेटफ़ॉर्म बनाकर  सजाया जाता है. हर साल कम से कम तीन मूर्तियों को झांकी में जोड़ने की परंपरा है.

क्या है गोलू त्योहार की मान्यता
गोलू दक्षिण भारत का अभिनव उत्सव है. तमिल में इसे बोम्मई कोलू, तेलुगू में बोम्मला कोलुवा, कन्नड़ में बॉम्बे हब्बा बोलते हैं. ऐसी मान्यता है कि 10 दिनों तक मैसूर के राजा अलग-अलग प्रांतों के मुख्य लोगों के साथ सीढ़ी नुमा जगह पर बैठ कर दशहरा का उत्सव मनाते थे. इसलिए इसकी झांकी सीढ़ी के आकार की होती है, जिस पर सबसे ऊपर राजा और रानी को रखा जाता है. ऐसी भी मान्यता है कि इसी दौरान महिषासुर नामक राक्षस का अंत चामुंडा देवी ने किया था, इस ख़ुशी में ये त्योहार मनाया जाता है और मां पार्वती की विशेष मान्यता है.

 

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