Taslima Nasreen: भारत में रह सकती हैं बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन, रेजिडेंस परमिट हुआ रिन्यू, जानिए क्या होता है India Residency Permit

India Residency Permit: बांग्लादेश की निर्वासित लेखिका तस्लीमा नसरीन ने रेजिडेंस परमिट बढ़ाने पर गृहमंत्री अमित शाह का धन्यवाद दिया है. सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट किया है, 'A World of thanks'. हाथ जोड़ने वाली इमोजी के साथ उन्होंने गृह मंत्री अमित शाह को भी टैग किया है. 

Taslima Nasreen (Photo: X@taslimanasreen)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 22 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 5:01 PM IST
  • तस्लीमा नसरीन ने गृहमंत्री से रेजिडेंस परमिट बढ़ाने की लगाई थी गुहार 
  • बांग्लादेश की निर्वासित लेखिका तस्लीमा साल 2004 से रह रहीं भारत में

बांग्लादेश (Bangladesh) की निर्वासित लेखिका तस्लीमा नसरीन (Taslima Nasreen) भारत (India) में रह सकती हैं. भारत ने रहने की अनुमित दे दी है. दरअसल, तस्लीमा नसरीन ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से रेजिडेंस परमिट (Residency Permit) रिन्यू करने की गुहार लगाई थी. उन्होंने कहा था उन्हें भारत में रहने दिया जाए. 

भारत को बताया अपना दूसरा घर
तस्लीमा नसरीन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर अमित शाह से गुहार लगाते हुए एक पोस्ट सोमवार को किया था. इसमें लिखा था, अमित शाह जी, नमस्कार. मैं भारत में रहती हूं क्योंकि मैं इस महान देश से प्यार करती हूं. पिछले 20 वर्षों से यह मेरा दूसरा घर रहा है. लेकिन गृह मंत्रालय 22 जुलाई से मेरे रेजिडेंस परमिट को बढ़ा नहीं रहा है. मैं बहुत चिंतित हूं.  

यदि आप इसे बढ़ा देंगे तो मैं आपकी आभारी रहूंगी. इसके बाद गृह मंत्रालय ने तस्लीमा नसरीन का रेजिडेंस परमिट बढ़ा दिया है. इसके बाद तसलीमा नसरीन ने अमित शाह का धन्यवाद दिया है. तसलीमा नसरीन ने एक्स पर पोस्ट किया, 'A World of thanks'. हाथ जोड़ने वाली इमोजी के साथ उन्होंने गृह मंत्री अमित शाह को भी टैग किया है. आपको मालूम हो कि तसलीमा नसरीन का रेजिडेंस परमिट 27 जुलाई 2204 को ही समाप्त हो गया था. 

क्या है रेजिडेंस परमिट
1. रेजिडेंस परमिट एक आधिकारिक डॉक्यूमेंट होता है.
2. किसी भी विदेशी नागरिक को भारत में रहने के लिए रेजिडेंस परमिट जरूरी होता है. 
3. यह किसी फॉरेनर को 180 दिनों से ज्यादा समय तक भारत में रहने की अनुमति देता है.
4. जो विदेशी नागरिक 180 दिनों से ज्यादा समय तक भारत में रहने का प्लान बनाते हैं, उन्हें फॉरेन रीजनल रजिस्ट्रेशन ऑफिस से यह परमिट लेना होता है.
5. रेजिडेंस परमिट की लिमट खत्म होने के बाद इसे रिन्यू कराना होता है.

किन-किन डॉक्यूमेंट्स की पड़ती है जरूरत
1. चार पासपोर्ट फोटो.
2. वैध पासपोर्ट और वीजा.
3. पासपोर्ट पृष्ठ  की  तीन प्रतियां जिसमें फोटो और वैध वीजा हो.
4. भारत में व्यक्ति के निवास को बताने वाले दस्तावेजों की प्रतियां.  
5. पंजीकरण शुल्क. 

भारत देता है इतने प्रकार का अस्थायी निवास परमिट 
1. रोजगार वीजा: इसकी वैधता नौकरी के आधार पर 5 वर्ष तक हो सकती है. इसे बढ़ाया भी जा सकता है.
2. बिजनेस वीजा: इसकी वैधता भी 5 वर्ष की होती है.
3. परियोजना वीजा: यह एक वर्ष या परियोजना की अवधि के लिए प्राप्त किया जा सकता है.
4. परिवार पुनर्मिलन वीजा: इसे भारत में एक्स-एंट्री वीजा के नाम से जाना जाता है. इसकी वैधता 5 वर्ष है.
5. अनुसंधान वीजा: यह 5 वर्ष की अवधि के लिए भी प्राप्त किया जा सकता है.
6. चिकित्सा वीजा: एक वर्ष की अवधि के लिए.

तस्लीमा नसरीन को क्यों छोड़ना पड़ा था बांग्लादेश
तस्लीमा नसरीन के पास अभी स्वीडन की नागरिकता है. बांग्लादेश की लेखिका तस्लीमा नसरीन को कट्टरपंथियों की धमकी के बाद 90 के दशक में देश छोड़ना पड़ा था. उन पर इस्लाम के खिलाफ लिखने का आरोप लगा था. 1994 में उनके खिलाफ फतवा जारी किया गया था, इसके बाद उन्हें देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा. हालांकि तस्लीमा साल 1998 में वह कुछ दिनों के लिए वापस बांग्लादेश गईं थीं लेकिन उस समय शेख हसीना की सरकार ने उन्हें वहां रहने नहीं दिया. इसके बाद तस्लीमा नसरीन निर्वासन के दौरान अमेरिका और यूरोप में रहीं हैं. 

इसके बाद 2004 में वह भारत आ गईं. शुरू में वह कोलकाता में रहती थीं. उनका कहना था कि बांग्लादेश के करीब कोलकाता में रहकर वह अपने वतन के अनुभव को महसूस करती रहेंगी लेकिन 2007 में उन पर दबाव बना और उन्हें कोलकाता भी छोड़ना पड़ा. कुछ दिन जयपुर रहने के बाद तसलीमा नसरीन फिलहाल दिल्ली में रहती हैं. बांग्लादेशी लेखिका कई बार कह चुकी हैं कि उन्हें भारत में रहना अच्छा लगता है, क्योंकि यहां की और बांग्लादेश की संस्कृति और परिवेश एक जैसे हैं, इसलिए मुझे ऐसा नहीं लगता कि मैं अपने घर से बाहर रह रही हूं.

लज्जा उपन्यास ने साहित्यिक जगत का खींचा था ध्यान 
तस्लीमा नसरीन 1990 के दशक की शुरुआत में अपने निबंधों और उपन्यासों के कारण खासी चर्चित रहीं. उनके लेखन में उन्होंने 'उन धर्मों' की आलोचना की, जिन्हें वे 'महिला विरोधी' मानती हैं. तस्लीमा नसरीन के 1993 में आए 'लज्जा' उपन्यास ने पूरी दुनिया के साहित्यिक जगत का ध्यान खींचा था.

यह किताब दिसंबर 1992 में भारत में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद बंगाली हिंदुओं के खिलाफ हिंसा, बलात्कार, लूटपाट और हत्याओं के बारे में लिखी गई थी. किताब पहली बार 1993 में बंगाली में पब्लिश हुई और बाद में बांग्लादेश में बैन कर दी गई. फिर भी प्रकाशन के छह महीने बाद इसकी हजारों प्रतियां बिकीं. ऐसा कहा जाता है कि इसके बाद उन्हें मौत की धमकियां मिलने लगीं, जिसके चलते उन्हें देश छोड़ने को मजबूर होना पड़ा. तस्लीमा नसरीन की आत्मकथा अमर मेयेबेला साल 1998 में आई थी. इसकी भी खूब चर्चा हुई थी.

 

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