हर गणतंत्र दिवस पर कर्तव्य पथ (पहले राजपथ) की सड़कों पर भारत की विविधता, संस्कृति और प्रगति का अद्भुत प्रदर्शन देखने को मिलता है. परेड की मुख्य आकर्षणों में से एक होती हैं राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और सरकारी विभागों की भव्य झांकियां. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इन झांकियों का चयन कैसे होता है?
झांकी चयन की प्रक्रिया काफी लंबी होती है. इसमें महीनों के सोच-विचार, डिजाइनिंग और सुधार शामिल होता है.
पहला कदम: सभी प्रतिभागियों को आमंत्रण
यह सफर हर साल सितंबर में शुरू होता है, जब रक्षा मंत्रालय राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और केंद्रीय विभागों से प्रस्ताव मांगता है. हर प्रतिभागी को एक ऐसी झांकी तैयार करनी होती है, जो उनकी अनोखी पहचान, इतिहास या उपलब्धियों को प्रस्तुत करे और साल के निर्धारित थीम के अनुरूप हो.
2025 गणतंत्र दिवस परेड की थीम 'स्वर्णिम भारत: विरासत और विकास' रखा गया है. इसमें भारत की विरासत पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा.
चित्रों से वास्तविकता तक
पहला चरण कल्पना का होता है. प्रतिभागी अपनी प्रस्तावित झांकी के रंगीन और विस्तृत स्केच जमा करते हैं. शर्त ये होती है कि स्केच ऐसा हो जिसमें कोई व्याख्या न देनी पड़े और ये खुद अपनी कहानी कहे. यह एक ऐसी चुनौती होती है, जिसमें सटीकता और कलात्मकता की जरूरत होती है.
कला, संगीत, वास्तुकला और संस्कृति जैसे क्षेत्रों के एक्सपर्ट का एक पैनल इन डिजाइनों की समीक्षा करता है. सुझाव दिए जाते हैं, संशोधन की मांग की जाती है, और केवल सबसे प्रभावशाली विचार अगले दौर में जाते हैं.
चयनित प्रतिभागी फिर अपने स्वीकृत स्केच को 3D मॉडलों में बदलते हैं. बनने के बाद इन मॉडलों को फिर से जांचा जाता है, यह सुनिश्चित करने के लिए कि वे परेड के लिए सभी मानकों को पूरा करते हों.
कड़े दिशा-निर्देश, रचनात्मक स्वतंत्रता
हालांकि रचनात्मकता की कोई सीमा नहीं है, लेकिन मंत्रालय ने परेड की भावना को बनाए रखने और समानता सुनिश्चित करने के लिए कुछ दिशा-निर्देश तय किए हैं:
-पर्यावरण के अनुकूल सामग्री: प्लास्टिक के उपयोग से बचा जाए. प्रतिभागियों को टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल सामग्री का उपयोग करना होता है.
-आकार की पाबंदियां: झांकी को 24 फीट लंबी, 8 फीट चौड़ी और 4 फीट ऊंची ट्रेलर में फिट होना चाहिए, और कुल आयाम 45 फीट लंबाई, 14 फीट चौड़ाई और 16 फीट ऊंचाई से अधिक नहीं होने चाहिए.
-लोगो न हो: राज्य या विभाग के नाम को छोड़कर कोई भी प्रचार सामग्री शामिल नहीं हो सकती.
साथ ही, झांकी के साथ प्रस्तुत होने वाली डांस परफॉर्मेंस में पारंपरिक लोक कला, पारंपरिक वेशभूषा और संगीत होना चाहिए.
चुनाव प्रक्रिया होती है मुश्किल
चयन प्रक्रिया में कई दौर होते हैं, जहां पैनल झांकी कैसी दिख रही है, कितनी अपील करती है, सांस्कृतिक महत्व, थीम की प्रस्तुति और जनता पर प्रभाव जैसे कारकों की जांच करता है. प्रत्येक दौर में कमजोर प्रतिभागियों को बाहर कर दिया जाता है, और केवल सर्वश्रेष्ठ झांकियां ही आखिर तक पहुंचती हैं.
लेकिन सभी राउंड को पार करने के बाद भी प्रतिभागियों को अपने स्वीकृत डिजाइन का सख्ती से पालन करना होता है. किसी भी तरह का बदलाव करने से आपको डिसक्वालीफाई किया जा सकता है.
गणतंत्र दिवस का जादू
चयनित झांकियां फिर सावधानीपूर्वक तैयार की जाती हैं और दिल्ली लाई जाती हैं, जहां वे परेड की भव्य रिहर्सल का हिस्सा बनती हैं. 26 जनवरी को जब ये झांकियां कर्तव्य पथ पर प्रस्तुत होती हैं.
हालांकि, इस साल झांकी चयन प्रक्रिया को लेकर विवाद हुआ है, क्योंकि दिल्ली की झांकी को जगह नहीं मिली. आम आदमी पार्टी (AAP) ने इस पर नाराजगी जताते हुए राष्ट्रीय राजधानी के साथ राजनीतिक भेदभाव का आरोप लगाया है. पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा, “क्या दिल्ली, जो देश की राजधानी है, को हर साल प्रतिनिधित्व नहीं मिलना चाहिए?”
विवादों के बावजूद, गणतंत्र दिवस की झांकियां भारत की विविधता में एकता का प्रतीक बनी रहती हैं. हर साल, ये देश की विरासत का जश्न मनाती हैं, प्रगति को सलाम करती हैं और अपनी कहानियों से लाखों लोगों को प्रेरित करती हैं.