केंद्र सरकार ने बिहार के दूसरे डिप्टी सीएम और दो बार मुख्यमंत्री रहे कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का ऐलान किया है. कर्पूरी ठाकुर को उनकी जयंती से पहले मरणोपरांत यह सम्मान देने की घोषणा की गई है. केंद्र की मोदी सरकार उनकी जन्मशताब्दी पर 24 जनवरी को सिक्का और नए स्वरूप का डाक टिकट जारी करेगी.
पिछड़े वर्गों के हितों की वकालत करने के लिए जाने जाते थे कर्पूरी ठाकुर
कर्पूरी ठाकुर पिछड़े वर्गों के हितों की वकालत करने के लिए जाने जाते थे. कर्पूरी ठाकुर की सरकार ने बिहार में पिछड़े वर्ग के लिए 26 फीसदी आरक्षण लागू किया था. इसके अलावा उनकी सरकार ने ऊंची जाति के गरीबों और सभी वर्गों की महिलाओं के लिए बिहार में 3-3 प्रतिशत आरक्षण लागू किया था. कर्पूरी ठाकुर को जननायक भी कहा जाता था.
बिहार के समस्तीपुर जिले में हुआ था जन्म
बिहार के समस्तीपुर जिले स्थित पितौझिया गांव में जन्मे कर्पूरी ठाकर ने 1940 में पटना से मैट्रिक परीक्षा पास की थी. उस वक्त देश गुलाम था. मैट्रिक परीक्षा पास करने के बाद कर्पूरी ठाकुर आजादी के आंदोलन में कूद पड़े थे. उन्होंने समाजवाद का रास्ता चुना और आचार्य नरेंद्र देव के साथ समाजवादी आंदोलन से जुड़ गए. 1942 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया और उन्हें जेल भी जाना पड़ा.
बन गए समाजवादी आंदोलन का चेहरा
1945 में जेल से बाहर आने के बाद कर्पूरी ठाकुर धीरे-धीरे समाजवादी आंदोलन का चेहरा बन गए, जिसका मकसद अंग्रेजों से आजादी के साथ-साथ समाज के भीतर पनपे जातीय व सामाजिक भेदभाव को दूर करने का था ताकि दलित, पिछड़े और वंचित को भी एक सम्मान की जिंदगी जीने का हक मिल सके.
1952 में जीता था पहला चुनाव, फिर कभी नहीं हारे
कर्पूरी ठाकुर ने 1952 में पहला विधानसभा चुनाव जीता था. इसके बाद कभी भी वे विधानसभा चुनाव नहीं हारे. ताजपुर विधानसभा क्षेत्र से सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर जीतकर पहली बार विधायक बने थे.
बिहार में पहले गैर कांग्रेसी सीएम बने थे कर्पूरी ठाकुर
कर्पूरी ठाकुर बिहार के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री रहे हैं. पहली बार 22 दिसंबर 1970 से 2 जून 1971 तक वे मुख्यमंत्री रहे. वे सोशलिस्ट पार्टी और भारतीय क्रांति दल की सरकार में सीएम बने थे. सीएम बनने के बाद उन्होंने सरकारी नौकरियों में पिछड़ों को आरक्षण दिया था. वे दूसरी बार जनता पार्टी की सरकार में 24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे. बिहार के दूसरे डिप्टी सीएम/शिक्षा मंत्री (5 मार्च 1967-31 जनवरी 1968) तक रह चुके हैं. कर्पूरी ठाकुर ने शिक्षा मंत्री रहते हुए छात्रों की फीस खत्म कर दी थी और अंग्रेजी की अनिवार्यता भी खत्म कर दी थी.
मालगुजारी खत्म कर दी थी
कर्पूरी ठाकुर जब सीएम थे तो उन खेतों पर मालगुजारी खत्म कर दी, जिनसे किसानों को कोई मुनाफा नहीं होता था, साथ ही 5 एकड़ से कम जोत पर मालगुजारी खत्म कर दी गई. उर्दू को राज्य की भाषा का दर्जा दे दिया. इसके बाद उनकी राजनीतिक ताकत में जबरदस्त इजाफा हुआ और कर्पूरी ठाकुर बिहार की सियासत में समाजवाद का एक बड़ा चेहरा बन गए.
सादगी के लिए जाने जाते थे
कर्पूरी ठाकुर अपनी सादगी के लिए जाने जाते थे. उन्होंने सामाजिकि मुद्दों को अपने एजेंडे में आगे रखा. वे जनता के सवाल को सदन में मजबूती से उठाने के लिए जाने जाते थे. समाज के कमजोर तबकों पर होनेवाले जुल्म और अत्याचार की घटनाओं को लेकर कर्पूरी ठाकुर सरकार को भी कठघरे में खड़ा कर देते थे. कर्पूरी ठाकुर के बेटे रामनाथ ठाकुर ने कहा कि मैं मोदी सरकार को यह फैसला लेने के लिए बिहार के 15 करोड़ लोगों की ओर से धन्यवाद देना चाहता हूं.
बिहार में युवाओं की प्रेरणा बने थे कर्पूरी ठाकुर
बिहार में जिन नेताओं को ओजस्वी भाषण देने वाले के तौर पर गिना जाता है, उनमें कर्पूरी ठाकुर का नाम भी बड़े आदर से लिया जाता है. वो अपने भाषणों में सधी हुई मधुर भाषा का इस्तेमाल करते थे लेकिन उस भाषा की ओजस्विता युवाओं के भीतर अलख जगाती थी. कर्पूरी ठाकुर अपने क्रांतिकारी भाषणों के लिए जाने जाते थे. उस दौर में बिहार में एक तरफ लोकनायक जयप्रकाश नारायण का भाषण देश भर में युवाओं को जागरूक कर रहा था तो जननायक कर्पूरी ठाकुर बिहार में युवाओं की प्रेरणा बने थे. कर्पूरी ठाकुर ने कहा था- ‘अधिकार चाहो तो लड़ना सीखो, पग पग पर अड़ना सीखो,जीना है तो मरना सीखो.’ इसके अलावा कर्पूरी ठाकुर ने ही नारा दिया था- ‘यदि जनता के अधिकार कुचले जायेंगे तो जनता आज न कल संसद के विशेषाधिकारों को चुनौती दे देगी.
पीएम मोदी ने जताई खुशी
पीएम मोदी ने एक्स पर लिखा, मुझे खुशी है कि भारत सरकार ने सामाजिक न्याय के प्रतीक जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित करने का निर्णय लिया है. वह भी ऐसे समय में जब हम उनकी जन्मशती मना रहे हैं. दलितों के उत्थान के लिए उनकी अटूट प्रतिबद्धता और उनके दूरदर्शी नेतृत्व ने भारत के सामाजिक-राजनीतिक ताने-बाने पर एक अमिट छाप छोड़ी है. यह पुरस्कार न केवल उनके उल्लेखनीय योगदान का सम्मान है, बल्कि हमें अधिक न्यायसंगत समाज बनाने के उनके मिशन को जारी रखने के लिए भी प्रेरित करता है.
सर्वोच्च नागरिक सम्मान पाने वाले बिहार के तीसरे व्यक्ति
कर्पूरी ठाकुर सर्वोच्च नागरिक सम्मान पाने वाले बिहार के तीसरे व्यक्ति होंगे. उनसे पहले प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद और लोकनायक जयप्रकाश नारायण को यह सम्मान मिल चुका है.
इतने लोगों को अब तक मिल चुका है यह सम्मान
भारत रत्न पुरस्कार अब तक 48 हस्तियों को मिल चुका है. इनमें से 17 को मरणोपरांत पुरस्कार दिया गया है.पहली बार साल 1954 में आजाद भारत के पहले गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राज गोपालाचारी, वैज्ञानिक चंद्रशेखर वेंकटरमन और सर्वपल्ली राधाकृष्णन को दिया गया था.
प्रधानमंत्री करते हैं भारत रत्न देने की सिफारिश
भारत रत्न देने के लिए नामों की सिफारिश भारत के प्रधानमंत्री की ओर से राष्ट्रपति से की जाती है. इसके बाद राष्ट्रपति की ओऱ से उस व्यक्ति को यह सम्मान दिया जाता है. इस पुरस्कार के तहत प्राप्तकर्ता को राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित एक सनद (प्रमाण पत्र) और एक पदक प्राप्त होता है. पुरस्कार में कोई मौद्रिक अनुदान नहीं होता है. इस सम्मान को पाने के बाद विजेता को प्रोटोकॉल में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उपप्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश, लोकसभा स्पीकर, कैबिनेट मंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, पूर्व राष्ट्रपति, पूर्व प्रधानमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री, संसद के दोनों सदनों में विपक्ष के नेता के बाद जगह मिलती है. सम्मान प्राप्त करने वाला व्यक्ति देश के लिए वीआईपी होता है.