बाबा साहब आंबेडकर को लेकर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस में लगातार विवाद जारी है. कांग्रेस का कहना है कि गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में डॉ बीआर आंबेडकर का "अपमान" किया है. वहीं, भाजपा और उसके समर्थक बार-बार एक तथ्य का हवाला दे रहे हैं कि कांग्रेस ने बाबासाहब का "सम्मान नहीं किया." उनका कहना है कि कांग्रेस ने अपने कार्यकाल में उन्हें भारत रत्न नहीं दिया था. बाबा साहब को आजादी के लंबे अरसे बाद साल 1990 में भारत रत्न दिया गया था. उस समय देश में भारतीय जनता पार्टी की गठबंधन की सरकार थी और प्रधानमंत्री थे वीपी सिंह.
नेल्सन मंडेला को मिला भारत रत्न
हालांकि, साल 1990 में सिर्फ बाबासाहब नहीं बल्कि एक और शख्स को भारत रत्न दिया गया था. दिलचस्प बात यह है कि यह शख्स भारतीय नहीं थे. जी हां, 1990 में बाबा साहब के साथ दक्षिण अफ्रीका के पूर्व-राष्ट्रपति, नेल्सन मंडेला को भारत रत्न से नवाजा गया. मंडेला दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद विरोधी आंदोलन के नेता थे और बाद में दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति (1994-99) रहे. "दक्षिण अफ्रीका के गांधी" कहे जाने वाले मंडेला का अफ्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस आंदोलन गांधीवादी दर्शन से प्रभावित था. साल 1993 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
सीमांत गांधी को मिला है भारत रत्न
नेल्सन मंडेला से पहले एक और गैर-भारतीय शख्स को भारत रत्न से सम्मानित किया गया था. हालांकि, इनका भारत से बहुत गहरा नाता रहा. साल 1987 में अब्दुल गफ्फार खान को भारत रत्न दिया गया. उन्हें बादशाह खान, बाचा खान या फ्रंटियर/सीमांत गांधी भी कहा जाता है और सम्मानपूर्वक फख्र-ए-अफगान कहा जाता है. वह अफगानों (पश्तूनों) के स्वतंत्रता सेनानी थे. खान एक स्वतंत्रता कार्यकर्ता, महात्मा गांधी के अनुयायी और उपमहाद्वीप में हिंदू-मुस्लिम एकता के समर्थक थे. वह 1920 में खिलाफत आंदोलन का हिस्सा रहे और 1929 में खुदाई खिदमतगार ("लाल शर्ट आंदोलन") की स्थापना की थी.
भारत की आजादी के बाद बादशाह ख़ान बिल्कुल भी बंटवारे के पक्ष में नहीं थे लेकिन वह इसे नहीं रोक सके. और तो और पख़्तूनों को पाकिस्तान का हिस्सा बनना पड़ा. मुल्क भले ही नया था पर ख़ान ने अन्याय के खिलाफ़ अपनी आवाज हमेशा बुलंद रखी. कई बार स्वतंत्र पाकिस्तान में भी उन्हें गिरफ्तार किया गया, क्योंकि वे यहां भी दबे हुए लोगों के मसीहा बने रहे. साल 1988 में 20 जनवरी को पाकिस्तान में उन्होंने अपनी आख़िरी सांस ली.
मदर टेरेसा को मिला सर्वोच्च सम्मान
मदर टेरेसा एक कैथोलिक नन थीं और मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की संस्थापक थीं. यह संस्था बीमार लोगों के लिए घरों का प्रबंधन करती है. 1979 में उन्हें अपने मानवीय कार्यों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार मिला. साल 1980 में भारत सरकार ने भारत रत्न से सम्मानित किया. हालांकि, जब मदर टेरेसा को जब भारत रत्न दिया गया तब तक वह भारतीय नागरिक बन गई थीं.