Bigamy and Pension Benefits: 23 साल की कानूनी लड़ाई के बाद दूसरी बीवी को मिला इंसाफ, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- उसे भी है पेंशन का अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने अपनी सुप्रीम पावर दिखाते हुए फैसला सुनाया है. SC ने 23 साल से चल रही कानूनी लड़ाई में राधा देवी को इंसाफ दिया है. जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने ये ऐतिहासिक निर्णय, न्याय और करुणा को ध्यान में रखते हुए दिया है. 

Supreme Court
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 01 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 12:20 PM IST

भारत में, द्विविवाह (bigamy) को कानून के तहत अपराध माना जाता है. द्विविवाह उसे कहा जाता है जब विवाहित होते हुए भी किसी दूसरे से आप शादी कर लेते हैं. इसे कानून के तहत एक गंभीर अपराध माना जाता है. आसान भाषा में समझें तो इसका मतलब यह है कि अगर कोई पहले से ही शादीशुदा है, तो उसकी दूसरी शादी को कानूनी रूप से वैध नहीं माना जाएगा.

हालांकि, इस सख्त नियम के कुछ अपवाद भी हैं. इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने दूसरी बीवी को भी पेंशन देने की बात कही है. 

सुप्रीम कोर्ट की सुप्रीम पावर 
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी सुप्रीम पावर दिखाते हुए फैसला सुनाया है. एससी ने 23 साल से चल रही कानूनी लड़ाई में राधा देवी को इंसाफ दिया है. जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने ये ऐतिहासिक निर्णय, न्याय और करुणा को ध्यान में रखते हुए दिया है. 

क्या है पूरा मामला?
दरअसल, मामला राधा देवी और उनके मृत पति, जय नारायण महाराज का है. जय नारायण साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड में काम करते थे. जय नारायण की पहली पत्नी, राम सांवरी देवी, तब जीवित थीं, जब जय नारायण ने राधा देवी से शादी की. भारतीय कानून के तहत इस तरह की शादी को द्विविवाह माना जाता है. ये शादी कानूनी रूप से वैध नहीं होती है. जय नारायण 1983 में रिटायर हुए और उनकी पहली पत्नी का 1984 में निधन हो गया. जय नारायण की खुद 2001 में मृत्यु हो गई. जिसके बाद राधा देवी ने अपने पति की मृत्यु के बाद पेंशन से जुड़े फायदों को लेने के लिए लगभग 23 साल तक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी.

कानूनी चुनौती और कोर्ट का फैसला
जय नारायण की मौत के बाद, राधा देवी ने साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड से पेंशन के लिए आवेदन किया. हालांकि, इस आधार पर इसे अस्वीकार कर दिया गया कि जय नारायण के साथ राधा का विवाह वैध नहीं था. 

बाद में इस मामले को हाई कोर्ट कोर्ट ने उठाया, जिसने भी राधा देवी के खिलाफ फैसला सुनाया. जिसके बाद राधा ने राहत की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने मामले की जांच करते हुए और इसकी गंभीरता समझते हुए अपना फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 की विशेष शक्तियों का प्रयोग किया. 

बता दें, ये अनुच्छेद कोर्ट को उन मामलों में विशेष शक्तियां देता है जिनमें नॉर्मल कानून लागू नहीं होते हैं. 

अपने फैसले में, बेंच ने माना कि राधा देवी जय नारायण महाराज की पहली पत्नी की मृत्यु के बाद उनके साथ रहती थीं और उनकी देखभाल करती थीं. कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि उसे जीवनसाथी का दर्जा  दिया जाए. 


 

Read more!

RECOMMENDED