साल 2005 में जब नीतीश कुमार ने एनडीए के पूर्ण बहुमत वाली सरकार की कमान संभाली तो उनके सामने एक ऐसा बिहार था, जो शिक्षा से लेकर सेहत तक में पिछड़ा हुआ था. स्वास्थ्य की तो इतनी बुरी हालत थी कि सरकारी अस्पताल में इलाज कराने के लिए मरीज तक नहीं मिलते थे. लेकिन धीरे-धीरे नीतीश कुमार विभाग को सुधारने के लिए काम किया और सूबे में स्वास्थ्य विभाग की तस्वीर बदल दी. चलिए आपको नीतीश कुमार के सीएम बनने के पहले और बाद में स्वास्थ्य विभाग के हालात के बारे में बताते हैं.
एक पीएचसी में एक महीने में सिर्फ 9 मरीज-
साल 2005 में नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के समय बिहार में स्वास्थ्य विभाग की हालत बदतर थी. जनता का सरकारी अस्पतालों से भरोसा उठ गया था. जिसका नतीजा हुआ कि हर चौराहे पर प्राइवेट क्लीनिक की बाढ़ आ गई थी. पीएचसी की हालत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता था कि 2005 में एक पीएचसी पर महीने में सिर्फ 9 मरीज ही ओपीडी सेवा के लिए आते थे.
नीतीश ने बदल दी तस्वीर-
नीतीश सरकार ने बदहाल सरकारी अस्पतालों को ठीक करने पर काम करने का प्लान बनाया. सीएम नीतीश चाहते थे कि मरीज दोबारा सरकारी अस्पतालों का रूख करें. इसकी शुरुआत पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल से हुई, जो उस वक्त राज्य के 6 बड़े अस्पतालों में से एक था. पीएचसी में डॉक्टरों की भारी कमी थी. किताब 'कितना राज, कितना काज' में सीनियर जर्नलिस्ट संतोष सिंह लिखते हैं कि 2005 में एक पीएचसी में महीने में सिर्फ 9 मरीज ओपीडी में आते थे. लेकिन साल 2010 तक पीएचसी में प्रति महीना 3500 मरीज आने लगे. साल 2012 में ये आंकड़ा बढ़कर 9 हजार हो गया.
स्वास्थ्य चेतना यात्रा से बदली तस्वीर-
1983 बिहार काडर के आईएएस अधिकारी अमरजीत सिन्हा ने दिसंबर 2010 में स्वास्थ्य प्रधान सचिव का कार्यभार संभाला. किताब के मुताबिक उन्होंने बताया कि जनवरी-फरवरी 2011 में हुई स्वास्थ्य चेतना यात्रा बहुत बड़ा बदलाव लेकर आई, जब सरकारी डॉक्टरों ने छोटे-छोटे कैंपस में करीब एक करोड़ लोगों की स्वास्थ्य जांच की. इससे सरकारी ओपीडी सेवी में लोगों का भरोसा बढ़ा. सिन्हा बताते हैं कि हमने जिला और उपविभागीय स्तर पर इलाज की सुविधाएं बढ़ाई. हमने 30 हजार सहायक नर्स के पद भरे. अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर संस्थागत प्रसव किए जाने लगे. 2005 से पहले सिजेरियन की सुविधा कुछ ही अस्पतालों में थी, वहीं अब यह ब्लॉक अस्पताल में भी होने लगी.
मातृ मृत्युदर में आई कमी-
बिहार में नीतीश कुमार की सरकार आने के बाद मातृ मृत्युदर में भी कमी आई. जहां 2005 में एक लाख पर मातृ मृत्युदर 371 थी, वहीं साल 2012-13 में घटकर 219 तक आ गई. हेल्थ मैनेजमेंट इन्फोर्मेशन सिस्टम के मुताबिक 2013 में 74 फीसदी टीकाकरण और 2014-15 में सितंबर 2014 तक 86 फीसदी टीकाकरण हुए. एसआरएस के मुताबिक साल 2005 में शिशि मृत्यु दर 61 थी. जबकि साल 1990 में 75 और साल 1994 में 67 थी. लेकिन साल 2013 में 42 पर आ गई.
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