बिहार में सियासी घटनाक्रम तेजी से बदल रहा है. एनडीए टूट रहा है. नया गठबंधन आकार ले रहा है. महागठबंधन बड़ा हो रहा है. इस बीच सबसे ज्यादा चर्चा एक घर की है. सबकी निगाहें एक अणे मार्ग पर टिकी हैं. जी हां, ये वही जगह है, जहां बिहार की सियासी बवंडर का रिमोट कंट्रोल है. इतना ही नहीं, इस घर से बिहार की सत्ता चलती है. आपने सही पहचाना, ये बिहार के मुख्यमंत्री का सरकारी आवास है. एक अणे मार्ग में कई सालों तक लालू प्रसाद यादव भी रहे हैं. अब सालों से सीएम नीतीश कुमार रह रहे हैं. चलिए आपको बताते हैं कि एक अणे मार्ग को मुख्यमंत्री के सरकारी आवास का दर्जा कब और कैसे मिला. इस एक अणे मार्ग का नाम जिस बडे़ नेता माधव श्रीहरि अणे के नाम पर पड़ा, उनकी कहानी क्या है.
1 अणे मार्ग कैसे बना सीएम आवास-
एक अणे मार्ग को साल 2006 में आधिकारिक तौर पर मुख्यमंत्री का सरकारी आवास घोषित किया गया. इससे पहले इस आवास में राबड़ी देवी और लालू यादव मुख्यमंत्री के तौर पर रह चुके थे. लेकिन मुख्यमंत्री के सरकारी आवास के तौर पर इसे कभी मान्यता नहीं मिली थी. लेकिन अक्टूबर 2006 में नोटिफिकेशन जारी करके एक अणे मार्ग को मुख्यमंत्री का सरकारी आवास घोषित कर दिया. जब इस आवास को सीएम आवास के तौर पर मान्यता दी गई तो लालू यादव और राबड़ी देवी ने इसपर आपत्ति जताई. उस वक्त तक बिहार में स्पीकर और विधान परिषद के चेयरमैन का आवास भी आधिकारिक तौर पर मान्य नहीं है.
कौन थे माधव श्रीहरि अणे-
एक अणे मार्ग का नाम पर स्वतंत्रता सेनानी माधव श्रीहरि अणे के नाम पर रखा गया है. माधव श्रीहरि अणे का जन्म 29 अगस्त 1880 को महाराष्ट्र में हुआ था. अणे ने कोलकाता विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की और उसके बाद टीचर का काम किया. उन्होंने यवतमाल में वकालत भी शुरू कर दी. माधव श्रीहरि आजादी की लड़ाई में संघर्ष किया था. माधव श्रीहरि लोकमान्य तिलक से प्रभावित थे. अणे को नमक सत्याग्रह के समय जेल भी जाना पड़ा. साल 1943 से 1947 तक श्रीलंका में भारत के उच्चायुक्त भी रहे. आजादी के बाद इनको बिहार के राज्यपाल बनाया गया.
सियासत में अणे की इंट्री-
साल 1914 में जब लोकमान्य तिलक जेल से छूटकर आए तो उनसे सबसे पहले माधव अणे ने मुलाकात की थी. इसके बाद अणे सियासत में आ गए. उनको यवतमाल कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया. जब होमरूल लीग की स्थापना हुई तो उसके उपाध्यक्ष बनाए गए. साल 1921 से 1930 तक विदर्भ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी रहे. स्वराज पार्टी की तरफ से केंद्रीय असेंबली के सदस्य चुने गए. माधव श्रीहरि ने महामना मदन मोहन मालवीय के साथ मिलकर कांग्रेस नेशनलिस्ट पार्टी बनाई. साल 1941 में वायसराय ने अणे को अपनी कार्यकारिणी में सदस्य बनाया था. लेकिन साल 1943 में गांधीजी के अनशन के बाद अणे ने कार्यकारिणी से इस्तीफा दे दिया. स्वतंत्रता के बाद उनको संविधान सभा का सदस्य भी चुना गया. लेकिन जल्द ही उनको बिहार के राज्यपाल का पद ग्रहण करना पड़ा. माधव श्रीहरि अणे 12 जनवरी 1948 से 14 जून 1952 तक बिहार के राज्यपाल रहे. अणे 1959 से 1967 तक लोकसभा के सांसद भी रहे.
ये भी पढ़ें: