BRICS Summit 2023: 22 से 24 अगस्त तक चलेगा ब्रिक्स सम्मेलन, पीएम मोदी होंगे शामिल, जानिए भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है यह समिट

मेजबान दक्षिण अफ्रीका ने 67 देशों को ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में आने का न्योता दिया है. भारत के पीएम नरेंद्र मोदी, दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा, चीन के शी जिनपिंग, ब्राजील के लुइज लूला दा सिल्वा सहित कई देशों के नेता इसमें हिस्सा लेंगे.

ब्रिक्स सम्मेलन में शामिल पीएम मोदी सहित संगठन के अन्य नेता (फाइल फोटो)
मिथिलेश कुमार सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 21 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 8:26 PM IST
  • ब्रिक्स संगठन में भारत सबसे मजबूत सदस्य देशों में से है एक
  • 20 से ज्यादा देश ब्रिक्स में होना चाहते हैं शामिल 

साउथ अफ्रीका की अध्यक्षता में 15वां ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का आयोजन 22 से 24 अगस्त तक जोहान्सबर्ग में होगा. इस शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हिस्सा लेंगे. पीएम मोदी मंगलवार को सम्मेलन में भाग लेने के लिए रवाना होंगे और इसी दिन समूह के व्यापार मंच की बैठक के साथ इसकी शुरुआत होगी. आइए आज जानते हैं भारत के लिए इस बार का सम्मेलन क्यों महत्वपूर्ण है.

क्या है ब्रिक्स
ब्रिक्स दुनिया की पांच प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं के एक संगठन का नाम है. इस संगठन में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं. ब्रिक्स शिखर सम्मलेन की अध्यक्षता हर साल इसके सदस्य राष्ट्रों की ओर से की जाती है. पांच देशों में से हर साल बदल-बदलकर इस सम्मेलन की मेजबानी करते हैं.  ब्रिक्स की स्थापना जून 2006 में हुई थी. 2010 में इस संगठन में दक्षिण अफ्रीका भी शामिल हुआ.

इतने देशों को भेजा गया है न्योता 
मेजबान दक्षिण अफ्रीका ने 67 देशों को ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में आने का न्योता दिया है. दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा, चीन के शी जिनपिंग, ब्राजील के लुइज लूला दा सिल्वा के साथ कई देशों के नेताओं के शामिल होने की उम्मीद है. यह पीएम मोदी का 2019 के बाद पहला व्यक्तिगत ब्रिक्स शिखर सम्मेलन होगा. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी इस सम्मेलन में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से जुड़ेंगे. 

भारत के लिए कितना महत्वपूर्ण है सम्मेलन
15वां ब्रिक्स सम्मेलन भारत के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है. ब्रिक्स देशों के विस्तार और आपसी व्यापार व आर्थिक समझौतों से भारतीय आयात-निर्यात को बढ़ावा मिलेगा. साथ ही, ब्रिक्स बैंक के मुद्दे पर सहमति बनने से ब्रिक्स देशों के साथ रुपए के मुद्रा विनिमय में उतार-चढ़ाव का जोखिम नहीं रहेगा. इसके अतिरिक्त पीएम मोदी की ओर से आंतकवाद के मुद्दे को सम्मेलन में उठाया जा सकता है और इससे ब्रिक्स देशों से और बेहतर कूटनीतिक सहयोग भारत को मिल सकता है.

पीएम मोदी बिजनेस फोरम को करेंगे संबोधित
मोदी मंगलवार को बिजनेस फोरम को संबोधित करेंगे, जहां उनसे ऐसे समय में ब्रिक्स के महत्व को रेखांकित करने की उम्मीद है जब दुनिया अभी भी कोरोना महामारी, यूक्रेन युद्ध के परिणामों से जूझ रही है. पीएम अपने संबोधन में डिजिटल परिवर्तन सहित अपनी सरकार की कुछ उपलब्धियों को भी बता सकते हैं. संभावना है कि पीएम मोदी रूस-यूक्रेन युद्ध को तुरंत समाप्त करने और बातचीत और कूटनीति से इसका हल निकालने पर भी जोर दे सकते हैं. 

ब्रिक्स सम्मेलन के ये हैं प्रमुख मुद्दे
1. ब्रिक्स देशों के समूह में सम्मिलित होने के लिए कई देशों ने इच्छा जताई है. इनमें सउदी अरब, यूएई, इरान, अर्जेंटिना, इंडोनेशिया, इजिप्ट और ईथीओपिया शामिल हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक इन देशों को ब्रिक्स समूह में शामिल किए जाने को लेकर सहमति नहीं है. अमेरिका से व्यापार एवं भौगोलिक-राजनैतिक प्रतिद्वंदिता रखने वाली चीन ब्रिक्स का विस्तार चाहता है, यूक्रेन से युद्ध कर रहे रूस और दक्षिण अफ्रीका ब्रिक्स का विस्तार चाहते हैं. वहीं, ब्राजील इस विस्तार से सहमत नहीं है. भारत की तरफ से इस संबंध में स्थिति स्पष्ट नहीं की गई है.
2. 15वें ब्रिक्स सम्मेलन में न्यू डेवेलपमेंट बैंक (NDB) (या ब्रिक्स बैंक) के माध्यम से स्थानीय मुद्रा में पूंजी उगाही और ऋण देने को कैसे बढ़ावा दिया जाए, इस पर भी चर्चा हो सकती है. इससे ब्रिक्स देशों में विदेशी मुद्रा विनिमय में उतार-चढ़ाव का जोखिम नहीं रहेगा.
3. ब्रिक्स सम्मेलन में भाग ले रहे देशों में आर्थिक समझौतों को लेकर भी चर्चा हो सकती है, ताकि आपसी विभिन्न क्षेत्रों में व्यापार और निवेश को बढ़ावा दिया जा सके. इनमें ऊर्जा सहयोग, ढांचागत विकास, डिजिटल अर्थव्यवस्था और रोजगार शामिल हैं.
4. ब्रिक्स सदस्य देशों की संख्या में विस्तार के साथ-साथ 15वें ब्रिक्स सम्मेलन में सम्मिलित होने के लिए 67 अफ्रीकी, लैटिन अमेरिकी, कैरेबियाई देशों को भी आमंत्रण दक्षिण अफ्रीका की ओर से भेजा गया है. इन देशों को ‘फ्रेंड्स ऑफ ब्रिक्स’ कहा गया है.

ये देश ब्रिक्स में होना चाहते हैं शामिल
ब्रिक्स में शामिल होने के लिए 20 से ज्यादा देशों ने अपनी रुचि दिखाई है. इनमें ईरान, अल्जीरिया, अर्जेंटीना, बांग्लादेश, बहरीन, बेलारूस, बोलीविया, क्यूबा, मिस्र, इथियोपिया, होंडुरास, इंडोनेशिया, कजाकिस्तान, कुवैत, नाइजीरिया, फिलिस्तीन, सऊदी अरब, सेनेगल, थाईलैंड, यूएई, वेनेजुएला और वियतनाम शामिल हैं. इस शिखर सम्मेलन में पर्याप्त अफ्रीकी प्रतिनिधित्व है, जो भारत और अफ्रीकी देशों के साथ संबंध बढ़ाने का अवसर बन सकता है. ईरानी राष्ट्रपति ने पिछले सप्ताह पीएम मोदी के साथ चर्चा की थी.

पाकिस्तान भी ब्रिक्स में शामिल होने की जता चुका है चाहत 
पाकिस्तान ने भले ही ऑफिशियली ब्रिक्स में शामिल होने के लिए अप्लाय नहीं किया हो, लेकिन वो कई बार संगठन का सदस्य बनने की चाहत जता चुका है. पाकिस्तान इन वजहों से इस संगठन में शामिल होना चाहता है.
1. भारत के साथ बराबरी: पाकिस्तान को लगता है कि भारत इस संगठन का सदस्य है और ये दुनिया का ताकतवर संगठन है. ऐसे में पाकिस्तान को इसका सदस्य होना चाहिए.
2. आर्थिक मदद: पाकिस्तान को लगता है कि ब्रिक्स संगठन के देश तेजी से विकास कर रहे हैं. ऐसे में यदि पाकिस्तान इसका सदस्य बनता है तो बाकी देश मिलकर पाकिस्तान की मदद करेंगे. चीन ब्रिक्स बैंक के जरिए पाकिस्तान को कर्ज दिलवाएगा. 
3. चीन के साथ मिलकर भारत को साधने की कोशिश: ब्रिक्स संगठन में भारत सबसे मजबूत सदस्य देशों में से एक है. यही वजह है कि पाकिस्तान इस संगठन में शामिल होकर चीन के साथ मिलकर भारत को साधने की कोशिश करेगा.
 
ब्रिक्स के विस्तार को लेकर भारतीय चिंता की वजह 
फिलहाल ब्रिक्स में नए सदस्य के तौर पर कौन देश जुड़ सकता है, इसको लेकर कोई तय नीति या सिद्धांत नहीं है. दक्षिण अफ्रीका को 2010 में जोड़ा गया था. उस वक्त समूह के सभी चार सदस्य देशों की सहमति के आधार पर ये फैसला किया गया था. ब्रिक्स का विस्तार रायशुमारी के बाद सर्वसम्मति के आधार पर होता है. दक्षिण अफ्रीका को सदस्य बनाए जाने में यही कसौटी थी. अब रूस और चीन का ब्रिक्स के विस्तार को लेकर जो उतावलापन हैं, उसमें भारत की कोशिश ये है कि ब्रिक्स ऐसा संगठन या संस्था न बन जाए, जो दो ध्रुवीय विश्व व्यवस्था को बढ़ावा दे. भारत की चिंताओं से ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका भी इत्तेफाक रखते हैं.

इंडिया बहुध्रुवीय दुनिया के है पक्ष में  
भारत बहुध्रुवीय दुनिया के पक्ष में है. भारतीय विदेश नीति का ये अहम हिस्सा है. भारत अपनी चिंताओं से बस इसे ही सुनिश्चित करना चाहता है. पिछले दो साल में भारत ने अपनी चिंताओं से सदस्य देशों को अलग-अलग तरीके से परिचित भी कराया है. इस साल जून की शुरुआत में दक्षिण अफ्रीका में ही ब्रिक्स के सदस्य देशों की बैठक हुई थी. उसमें भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने विस्तार को लेकर भारत का पक्ष और रुख दोनों ही स्पष्ट तरीके से रख दिया था. भारत के लिए विस्तार में खुले दिमाग और सकारात्मक इरादा सबसे महत्वपूर्ण पहलू है. भारत के लिए ब्रिक्स के विस्तार का मुद्दा संवेदनशील है.

विस्तार के हर पहलू पर हो गौर
भारत विस्तार के विरोध में नहीं है. भारत की मंशा विस्तार से पहले कुछ चीजों को सुनिश्चित करने की है. भारत चाहता है कि विस्तार से जुड़े हर पहलू पर सदस्य देशों के बीच रायशुमारी उस स्तर तक हो, जिससे हर सदस्य देशों की चिंताओं और कूटनीतिक जरूरतों को महत्व मिल सके. भारत पहले विस्तार के मानकों, मानदंडों और प्रक्रियाओं के साथ ही मार्गदर्शक सिद्धांतों को तय करना चाहता है. भारत की मंशा है कि इस मसले से जुड़े हर पहलू पर गौर हो. साथ ही विस्तार से और किसी खास देश को सदस्य बनाए जाने से वैश्विक व्यवस्था पर किस तरह का असर पड़ेगा, इस पर भी मंथन भारतीय हितों के लिहाज से जरूरी है. विस्तार में सदस्य देशों के बीच आपसी सहयोग को लेकर भी कोई सिद्धांत होना चाहिए. भारत इसे भी सुनिश्चित करना चाहता है.


 

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