Mohammad Usman को जिन्ना ने दिया था पाक आर्मी चीफ बनाने का ऑफर, बाद में पाकिस्तान ने रखा था 50 हजार का इनाम, जानिए नौशेरा के शेर की कहानी

Happy Birthday Mohammed Usman: ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान का जन्म 15 जुलाई 1912 को उत्तर प्रदेश के मऊ जिले में हुआ था. उस्मान के परिवार वाले उन्हें आईएएस अफसर बनाना चाहते थे लेकिन वे सेना में जाना चाहते थे. सिर्फ 20 साल की उम्र में सेना में अफसर बन गए थे. 36 साल की उम्र में देश के लिए लड़ते हुए शहीद हो गए थे.

महावीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान (फाइल फोटो)
मिथिलेश कुमार सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 15 जुलाई 2023,
  • अपडेटेड 10:54 AM IST
  • ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान का जन्म 15 जुलाई 1912 को हुआ था
  • मरणोपरांत महावीर चक्र से नवाजा गया था 

अंग्रेजों की गुलामी से जब देश आजाद हो रहा था, उसी समय देश का बंटवारा भी हो रहा था. राज्य बंट रहे थे, लोग बंट रहे थे और सेना भी. आज हम ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान के जन्मदिन पर उनकी कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने मोहम्मद जिन्ना के ऑफर तक को ठुकरा दिया था. बहादुरी ऐसी कि पाकिस्तानी सेना खौफ खाती थी. इंडियन आर्मी के इस अफसर को नौशेरा का शेर भी कहा जाता है. मोहम्मद उस्मान पहले ऐसे अफसर हैं, जिनके डर से पाकिस्तान ने उन पर 50 हजार रुपए का इनाम रखा था.

20 साल की उम्र में सेना में बन गए थे अफसर 
मोहम्मद उस्मान का जन्म 15 जुलाई 1912 को उत्तर प्रदेश के मऊ जिले के बीबीपुर गांव में हुआ था. उनके पिता मोहम्मद फारूख बनारस शहर के कोतवाल थे. अंग्रेज सरकार ने उन्हें खान बहादुर का खिताब दिया था. उस्मान के परिवार वाले चाहते थे कि वो आईएएस अफसर बनें, लेकिन वो आर्मी अफसर बनना चाहते थे. इसी के चलते सिर्फ 20 साल की उम्र में सेना में अफसर बन गए थे.

बचपन से ही बहादुर थे मोहम्मद उस्मान
कहते हैं न कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं. उस्मान के बारे में भी यही लाइन बैठती है. उस्मान जब 12 साल के थे तभी से वह काफी बहादुर स्वभाव के थे. एक बार की बात है. एक दिन कुएं में एक बच्चा गिर गया. बच्चा गिरते ही लोगों की भीड़ कुएं के आस-पास जमा हो गई. वहीं से उस्मान भी गुजर रहे थे. उस्मान ने बच्चे को देखते ही कुएं में छलांग लगा दी और बच्चे के बाहर निकाल ले आए.

सैम मानेकशॉ और मूसा थे बैचमेट
मोहम्मद उस्मान ने अपनी पढ़ाई बनारस से की थी. इसके बाद उन्होंने सेना में जाने का फैसला किया था. साल 1934 के पहले दिन यानी 1 जनवरी को उन्होंने ब्रिटिश रॉयल अकादमी ज्वाइन की थी. खास बात यह थी कि उस्मान के बैचमैट सैम मानेकशॉ और मोहम्मद मूसा जैसे सेना के मशहूर लोग थे. मानेकशॉ बाद में भारतीय सेना के चीफ बने थे. मोहम्मद उस्मान को उस वक्त बलूच रेजीमेंट में पोस्टिंग दी गई थी. मोहम्मद उस्मान को उस समय उनकी जांबाजी के चलते खूब सराहा गया. बर्मा में उस वक्त जापानियों से युद्ध किया और कई मोर्चों पर जीत हासिल की थी.

...जब भारत में रहने का किया फैसला
ब्रिगेडियर उस्मान के सामने सबसे विकट स्थिति तब हुई जब 1947 में भारत का विभाजन हुआ. उस समय मोहम्मद उस्मान के सामने भारत और पाकिस्तान में से कोई एक को चुनने का विकल्प दिया गया था. बलूच रेजीमेंट के ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान से पूछा गया कि वे किस मुल्क में रहेंगे. उस्मान ने तुरंत जवाब दिया भारत. रेजीमेंट के दूसरे अधिकारियों ने कहा कि फिर से विचार करो, मुसलमान हो...पाकिस्तान में ही रह लो. लेकिन उस्मान अपने फैसले पर अड़े रहे.

पाकिस्तान सेना का अध्यक्ष बनाने का दिया ऑफर
उस समय मोहम्मद उस्मान को पाकिस्तान से भी ऑफर आया था. पाकिस्तान के कायदे-आजम मोहम्मद अली जिन्ना और पहले पीएम लियाकत अली खान ने उन्हें पाकिस्तान आने के बदले जल्दी प्रमोशन का वादा किया था. लेकिन, उस्मान ने यह ऑफर ठुकरा दिया था. इसके बाद जिन्ना ने उस्मान को पाकिस्तान सेना का अध्यक्ष बनने का भी ऑफर दिया. लेकिन कोई पैंतरा काम ना आया. उस्मान टस से मस नहीं हुए. बाद में उन्हीं मोहम्मद उस्मान को नौशेरा के शेर का खिताब मिला.

पाक सेना की मदद से कबालियों ने बोल दिया था हमला
1947 में भारत पर पाक की ओर से कबालियों ने पाक सेना की मदद से हमला बोल दिया था. हमला उस समय के सबसे संवेदनशील जगह कश्मीर पर हुआ था. कबालियों ने भारत के इलाके में घुसकर राजौरी, नौशेरा, मीरपुर, कोटली और पुंछ में कब्जा कर लिया था. 50 पैरा ब्रिगेड के कमांडर मेजर परांजपे घायल हो चुके थे. नौशेरा में भारतीय सैनिक तो थे लेकिन, चारों ओर से पाकिस्तानी सैनिकों से घिरे हुए थे. 

बेजोड़ थी लीडरशिप क्वालिटी 
पाक सेना अब नौशेरा पर कब्जा करना चाहती थी. लेकिन, ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान के प्लान के आगे यह कोशिश फेल हो गई. नौशेरा पर पाकिस्तान की ओर से 3 बार हमला हुआ लेकिन फेल रहा. पाकिस्तान के सामने उस्मान ढाल बनकर खड़े थे. उस्मान ने नौशेरा में इतनी जबर्दस्त लड़ाई लड़ी थी कि पाकिस्तान के एक हजार घुसपैठिए घायल हुए थे और एक हजार घुसपैठिए मारे गए थे. जबकि भारत की तरफ से 33 सैनिक शहीद और 102 सैनिक घायल हुए थे. लीडरशिप क्वालिटी की वजह से ही ब्रिगेडियर उस्मान को नौशेरा का शेर कहा जाता है. ब्रिगेडियर उस्मान ने ही जवानों को आदेश दिया था कि जब भी वे एक-दूसरे से मिलेंगे तो जय हिंद बोलेंगे. सेना में जय हिंद की ये परंपरा आज भी कायम है.

उस्मान से डरे पाकिस्तान ने रखा था 50 हजार का इनाम
नौशेरा की घटना के बाद पाकिस्तानी सरकार ने ब्रिगेडियर उस्मान की मौत पर 50 हजार रुपए का इनाम रखा था, जो कि उस समय के लिहाज से एक बहुत बड़ी रकम थी. ब्रिगेडियर उस्मान ने कसम खाई थी कि जब तक झनगड़ भारत के कब्जे में नहीं आएगा, तब तक वह जमीन पर चटाई बिछाकर ही सोएंगे. आखिरकार उस्मान ने झनगड़ पर भी कब्जा जमा लिया. लेकिन इसी जंग के बीच 3 जुलाई 1948 को झनगड़ में मोर्चे पर ही कहीं से तोप का एक गोला आ गिरा और उस्मान इसकी चपेट में आ गए. इस तरह नौशेरा का शेर जंग के मैदान में शहीद हो गया. उस्मान को मरणोपरांत महावीर चक्र से नवाजा गया था. साथ ही दो खिताब हीरो ऑफ नौशेरा और नौशेरा का रक्षक से भी सम्मानित किया गया था.

पंडित नेहरू ने रिसीव किया था पार्थिव शरीर
ब्रिगेडियर उस्मान के पार्थिव शरीर को जम्मू लाया गया. वहां से उसे दिल्ली ले जाया गया. खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उनके पार्थिव शरीर को रिसीव किया. उनके जनाजे में भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन और नेहरू मंत्रिमंडल के करीब-करीब सभी सदस्य मौजूद थे.  ब्रिगेडियर उस्मान के पार्थिव शरीर को राजकीय सम्मान के साथ दिल्ली स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया के कब्रस्तिान में दफनाया गया था.

 

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