Loksabha Elections: पश्चिम में हो रहे विरोध से क्या पूर्वांचल को लेकर बढ़ेगी बीजेपी पार्टी की बेचैनी ? जानिए क्या है क्षत्रिय संगठन के आरोप

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ठाकुर खासकर बीजेपी से नाराज हैं. ये हवा पूर्वांचल न पहुंच जाए बीजेपी को इसका डर सता रहा है.ठीक चुनाव से पहले जब पार्टी हर जाति को साध कर सियासी संदेश देने की कोशिश कर रही है पश्चिम में नाराज क्षत्रिय संगठन सक्रिय दिखाई पड़ रहे हैं.

PM Modi with VK Singh
शिल्पी सेन
  • लखनऊ,
  • 09 अप्रैल 2024,
  • अपडेटेड 9:09 PM IST

लोकसभा चुनाव के लिए प्रथम चरण के मतदान में सिर्फ 10 दिन का समय बाकी रह गया है. ऐसे में पश्चिम यूपी में क्षत्रिय संगठनों की नाराजगी ने बीजेपी रणनीतिकारों की चिंता बढ़ा दी है. सहारनपुर के बाद अब मेरठ,मुजफ्फरनगर में भी क्षत्रिय महापंचायत की घोषणा से पार्टी जहां स्थिति का आकलन करने में जुटी है वहीं ये नाराजगी पूर्वांचल तक न फैले इसके लिए भी मंथन शुरू हो गया है. क्षत्रिय संगठनों ने बीजेपी पर क्षत्रिय समाज का राजनीतिक प्रतिनिधित्व घटाने और उनके महत्व को कम करने का आरोप लगाया है.

यूपी की राजनीति में अचानक पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षत्रिय समाज के नेताओं ने जो बागी अंदाज दिखाया है,उससे बीजेपी में हलचल मच गई है.ठीक चुनाव से पहले जब पार्टी हर जाति को साध कर सियासी संदेश देने की कोशिश कर रही है पश्चिम में नाराज क्षत्रिय संगठन सक्रिय दिखाई पड़ रहे हैं. लेकिन ये सक्रियता बीजेपी के खिलाफ जा सकती है क्योंकि समाज के नेताओं ने गाव-गांव में बैठक करके ये आरोप लगते हुए क्षत्रिय समाज को ये बताना शुरू कर दिया है कि बीजेपी क्षत्रियों की राजनीतिक प्रतिनिधित्व और ताकत को कम कर रही है.

क्या है वजह ? 
दरअसल मामला लोकसभा के क्षत्रिय समुदाय के लोगों को टिकट देने का है. क्षत्रिय संगठन इस बात का आरोप लगा रहे हैं कि उनको पहले के मुकाबले टिकट वितरण में कम भागीदारी दी गई. इससे उनका सियासी प्रतिनिधित्व तो घटेगा ही,उनका महत्व भी कम आंकने की कोशिश है. सहारनपुर में इस बात को रखने के लिए न सिर्फ'क्षत्रिय महाकुंभ'के नाम पर क्षत्रिय पंचायत बुलाई गयी बल्कि बीजेपी के खिलाफ बगावती सुर विरोध और बॉयकॉट तक जा पहुंचा. बाक़ायदा ये कहा गया कि क्षत्रिय, बीजेपी के परम्परागत वोटर रहे है इसलिए अब पार्टी उनको नजरअंदाज कर रही है. इसके लिए उनका सियासी प्रतिनिधित्व घटाया जा है. महापंचायत में ये बात रखी गयी कि बीजेपी ने अब तक घोषित टिकट में सिर्फ 8 टिकट क्षत्रिय समुदाय को दिए हैं,जबकि 2019 और  2014 में क्षत्रिय  नेताओं को ज़्यादा प्रतिनिधित्व मिला था.

ठेस पहुंचाने का प्रयास किया गया
साथ ही ये भी आरोप लगाया गया कि पश्चिम क्षेत्र में आने वाली लोकसभा सीटों में जहां हर जिले में क्षत्रिय वोटों कि संख्या 1-1.5 लाख से ऊपर हैं वहां सिर्फ़ एक ठाकुर सर्वेश सिंह को मुरादाबाद से टिकट दिया गया है. यहां तक कि ग़ाज़ियाबाद और गौतमबुद्ध नगर में जहां 4 से 5 लाख क्षत्रिय वोटर हैं वहां उनको प्रतिनिधित्व नहीं मिला. इसके अलावा सहारनपुर की पंचायत में पिछले राजा मिहिर भोज नाम पर हुए एक कार्यक्रम की भी बात की गयी. ये कहा गया कि गुर्जर समुदाय के लोगों ने जिस तरह क्षत्रिय समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का प्रयास किया है,उसमें बीजेपी के नेता भी शामिल थे. प्रमुख रूप से प्रदीप चौधरी का नाम लिया गया. प्रदीप चौधरी को बीजेपी ने दोबारा कैराना से टिकट दिया है. राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्रा कहते हैं कि क्षत्रियों की हिस्सेदारी कम नहीं हुई है. अभी हाल के समय में जो निषाद या राजभर जैसी जातियों ने प्रेशर टैक्टिक्स अपनाई है इससे दूसरी जाति के संगठनों को भी लगने लगा है कि इससे वो अपनी बात कह कर एक सीमित क्षेत्र में प्रभाव डाल सकते हैं. 

पूर्वांचल के क्षत्रिय चेहरों को लेकर बीजेपी की क्या है बेचैनी ? 
हालांकि बीजेपी इस तरह के किसी विरोध के जवाब में यही तर्क देती नज़र आ रही है कि पार्टी ने संगठन,विधानसभा और विधान परिषद में क्षत्रियों को पर्याप्त हिस्सेदारी दे रखी है.लेकिन नाराज़गी कम होने की जगह महापंचायत की घोषणा मेरठ और मुज़फ़्फ़रनगर में भी कर दी है. इसके बाद बीजेपी के लिए मुश्किल ये है कि पश्चिमी यूपी से उठी विरोध की लहरें पूर्वांचल की राजनीति को भी न प्रभावित करें ये तय करना पार्टी के लिए ज़रूरी है. पूर्वांचल में पहले से ही क्षेत्र विशेष में कई क्षत्रिय नेताओं का प्रभाव रहा है. बृजभूषण शरण सिंह,धनंजय सिंह,रघुराज प्रताप सिंह 'राजा भैया' जैसे नेताओं के प्रभाव और सियासी दबाव को कई बार बीजेपी ने महसूस किया है. अब ऐन चुनाव के समय इसी की चिंता हो सकती है कि ये नाराज़गी कहीं पूर्वांचल तक न फैले जहां के जातीय समीकरण पश्चिमी यूपी के मुक़ाबले पार्टी के लिए मुश्किल खड़ी कर सकते हैं.

लाभार्थी और मोदी पर है चुनाव 
कैसरगंज के सांसद बृजभूषण सिंह के टिकट को लेकर पार्टी अभी भी निर्णय नहीं कर पायी है.बृजभूषण ने अपने पुराने तेवर दिखाते हुए कैसरगंज से ही लड़ने की इच्छा जताई है. जौनपुर के पूर्व सांसद धनंजय सिंह जेल में है  पर उनका जिले के ठाकुरों पर प्रभाव बताया जाता है. यहां तक कि बीजेपी के कई स्थानीय नेता और विधायक भी उनके करीबी हैं.ऐसे में इस बात को लेकर भी पार्टी इस क्षेत्र में कोई चूक नहीं करना चाहती. कहा जा रहा है कि प्रतापगढ़ और कौशांबी संसदीय सीट पर सीधा और आसपास के जिलों में क्षत्रिय की राजनीति में प्रभाव रखने वाले रघुराज प्रताप सिंह भी भाजपा से खुश नहीं है.

राजा भैया ने राज्यसभा चुनाव में बीजेपी के पक्ष में वोटिंग की थी.लेकिन अब क्षत्रिय अस्मिता और राजनीतिक प्रतिनिधित्व के सवाल पर राजा भैया का रुख़ क्या रहता है ये बात भी बीजेपी की बेचैनी बढ़ा सकता है. ऐसे में अगले पश्चिम की आंच पूर्वाचल को झुलसा सकती है? बीजेपी नेतृत्व का ध्यान इस ओर है और आने वाले समय में बृजभूषण के टिकट से लेकर पार्टी के कई फैसले इस राजनीति की ओर संकेत कर सकते हैं.राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्रा कहते हैं 'इस चुनाव को बीजेपी बिल्कुल अलग तरह से लड़ रही है. इसमें मायनॉरिटी बनाम मेज़रिटी है. ऐसे में ये छोटे-छोटे विरोध के स्वर बीजेपी के बड़े प्लान को डेंट नहीं कर पाएंगे.इसके अलावा बीजेपी के लिए ये बात भी है कि सूबे की कमान योगी आदित्यनाथ के हाथ में है. मंत्री पद में भागीदारी है,नौकरशाही में भागीदारी है इसलिए ये विरोध पूरी तस्वीर को नहीं प्रभावित करता है. 

 

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