मां-बाप इस उम्मीद में अपने बच्चों का पालन पोषण करते हैं कि जब वे थक जाएंगे तो बच्चे उनका सहारा बनेंगे. बाद में वही बच्चे उनके साथ इतने कठोर हो जाते हैं कि उनका संघर्ष तक भूल जाते हैं. बॉम्बे की एक अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि अगर बच्चे मां-बाप की सेवा नहीं कर सकते, उन्हें खुश नहीं रख सकते तो उन्हें मां-बाप के घर में रहने का भी कोई हक नहीं है.
हालांकि बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने इस फैसले में यह भी कहा है कि सीनियर सिटीजन एक्ट की धारा 2 (ए) में बच्चों की श्रेणी में बेटा, बेटी, पोता और पोती शामिल हैं, इसमें बहू का उल्लेख नहीं है. इसलिए, बहू को सास-ससुर के लिए गुजारा भत्ता देने का निर्देश नहीं दिया जा सकता और वो भी तब जब बहू के पास आय का कोई साधन न हो.
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि बुजुर्ग माता-पिता की दैनिक जरूरतों पर ध्यान देना बेटे-बहू की जिम्मेदारी है. वृद्ध माता-पिता को शांति का जीवन नहीं देना, उनका मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न है.
सीनियर सिटीजन्स जानें अपने अधिकार
सीनियर सिटीजन वो है जिसकी उम्र 60 वर्ष या इससे अधिक हो.
अगर किसी भी वरिष्ठ नागरिक के बच्चे की देखभाल नहीं करते हैं तो, तो इसके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई जा सकती है. और उनसे गुजारा भत्ता मांगा जा सकता है.
यदि आपका कोई बच्चा आपको परेशान करता है तो आप ऐसे बच्चे को अपने घर से बेदखल करने के लिए भरण-पोषण न्यायाधिकरण से संपर्क कर सकते हैं.
पिता-माता के जीवित रहते हुए किसी भी बेटे-बेटी का संपत्ति पर किसी प्रकार का कोई अधिकार नहीं होता है.
यदि आप सीनियर सिटीजन हैं, और 2007 के बाद अपनी संपत्ति अपने किसी बच्चे को उपहार में दी है, और वो बच्चा आपको बुनियादी सुविधाएं प्रदान नहीं कर रहा है, तो आप उस संपत्ति को बच्चे से छीन भी सकते हैं.
वरिष्ठ नागरिकों को उनके ही घर से निकाल देना गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है और इसके लिए पांच हजार रुपये का जुर्माना या तीन महीने की कैद या दोनों हो सकते हैं.
ऐसे वरिष्ठ नागरिक, जिनका कोई वारिस नहीं है, उनकी देखभाल करना राज्य की जिम्मेदारी है. इसलिए कानून है कि राज्य के हर जिले में कम से कम एक वृद्धाश्रम हो ताकि वो वरिष्ठ नागरिक यहां आराम से रह सकें.
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