Captain Vikram Batra Birth Anniversary: तिरंगा लहराकर या लिपटकर लेकिन आऊंगा जरूर.. कारगिल वॉर में कैप्टन विक्रम बत्रा ने कैसे पाकिस्तान के उड़ा दिए थे होश, जानिए पूरी कहानी

Captain Vikram Batra Kargil War: कैप्टन विक्रम बत्रा (Captain Vikram Batra) बचपन से ही भारतीय सेना (Indian Army) में जाना चाहते थे. पाकिस्तान के सैनिक विक्रम बत्रा से कांपते थे. विक्रम बत्रा ने कारगिल युद्ध (Kargil War 1999) जीतने में अहम भूमिका निभाई थी.

Captain Vikram Batra (Photo Credit: Getty Images)
ऋषभ देव
  • नई दिल्ली,
  • 08 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 6:40 PM IST
  • कैप्टन विक्रम बत्रा का जन्म हिमाचल के पालमपुर में हुआ था
  • विक्रम बत्रा बचपन से ही सेना के लिए कुछ करना चाहते थे

Captain Vikram Batra Kargil War: एक सैनिक जो अपने देश के लिए मरने के लिए तैयार था. एक बेटा जिसकी फैमिली बेसब्री से इंतजार कर रही थी. एक प्रेमी जिसने अपने प्रेमिका से अबकी बार आने पर शादी करने का वादा किया था. एक बहादुर जवान जिसके बारे में इंडियन आर्मी के चीफ ने कहा था- अगर वो जिंदा वापस आता तो सेना का हेड बनता. ये कहानी है कैप्टन विक्रम बत्रा की.

कैप्टन विक्रम बत्रा (Captain Vikram Batra) पूरे भारत की शान हैं. जिन्होंने आखिरी सांस तक दुश्मन का सामना किया. मरने से पहले अपने कई साथियों को बचाया. कैप्टन विक्रम बत्रा ने एक बार कहा था-

या तो मैं लहराते तिरंगे के पीछे आऊंगा या तिरंगे में लिपटकर आऊंगा पर मैं आऊंगा जरूर. आइए जानते हैं कारगिर वॉर में कैप्टन विक्रम बत्रा ने पाकिस्तान के होश कैसे उड़ा दिए थे.

विक्रम बत्रा
कैप्टन बत्रा का जन्म 9 सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में हुआ था. पढ़ाई पूरी होने के बाद दिसंबर 1997 में विक्रम बत्रा भारतीय सेना में शामिल हुए. उनकी नियुक्ति जम्मू-कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट पद पर हुई.

दो साल विक्रम बत्रा ने इंडियन आर्मी में कमांडो ट्रेनिंग समेत कई प्रशिक्षण लिए. कारगिर युद्ध से पहले विक्रम बत्रा ने घर गए. तभी उन्होंने अपनी प्रेमिका डिंपल चीमा से कहा- या तो मैं लहराते तिरंगे के पीछे आऊंगा या तिरंगे में लिपटकर आऊंगा पर मैं आऊंगा जरूर.

कारगिल वॉर
मई में पाकिस्तान के सैनिक कारगिल (India Pakistan War 1999) में घुसपैठ कर चुके थे लेकिन भारत को इसका अंदाजा भी नहीं था. एक चरवाहे की वजह से इंडियन आर्मी को पाकिस्तान की घुसपैठ के बारे में पता चला.

इसके बाद कारगिल वॉर (Kargil War 1999) शुरू हो गया. पाकिस्तानी सैनिक कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर कब्जा करके हमला कर रहा था. पाकिस्तान भारत पर हावी पड़ रहा था. भारतीय सेना को काफी मुश्किल हो रही थी.

विक्रम बत्रा की एंट्री
कारगिल की जंग के समय कैप्टन विक्रम बत्रा जम्मू-कश्मीर राइफल्स (Jammu Kashmir Rifles) की 13वीं बटालियन में थे. 5 जून 1999 को लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा को द्रास पहुंचने का ऑर्डर मिला. अगले दिन बटालिन द्रास (Dras Kargil) पहुंच गई.

कारगिर वॉर में 18 ग्रेनेडियर्स बटालियन को तोलोलिंग पर कब्जा करने का आदेश मिला. चार कोशिशों के बाद भी बटालियन ऐसा नहीं कर पाई. इसके बाद विक्रम बत्रा वाली बटालियन को ये जिम्मा सौंपा गया.

बत्रा की बहादुरी
कैप्टन विक्रम बत्रा के बारे में कहा जाता है कि लड़ाई में वो सबसे आगे रहा करते थे और बिना डरे आगे बढ़ते रहते थे. 13 जून 1999 को भारतीय सेना ने टोलोलिंग पहाड़ी और हंप के एक हिस्से को जीत लिया. 

इस जीत के बाद कमांडिंग ऑफिसर ने योगेश जोशी ने प्वाइंट 5140 को जीतने के लिए एक योजना बनाई. दो टीमें बनाईं गईं. एक टीम के लीडर संजीव सिंह जामवाल और एक टीम के लीडर विक्रम बत्रा बने.

ये दिल मांगे मोर
तब जीत का मंत्र चुनने की बात आई. तब विक्रम बत्रा ने कहा- ये दिल मांगे मोर. कुछ इस तरह से दिल मांगे मोर आया. कहा जाता है हर जीत के बाद कैप्टन विक्रम बत्रा यही दोहराते, ये दिल मांगे मोर.

दोनों टीमें रात के समय अपने मिशन पर निकलीं. दुश्मनों की तोपों और गोलीबारी के बीच कैप्टन विक्रम बत्रा चोटी पर पहुंचे. कई दुश्मनों के सीधे मुकाबले में ढेर कर दिया. अपने मिशन को पूरा करने के बाद कैप्टन विक्रम बत्रा ने रेडियो पर मैसेज भेजा- दिल मांगे मोर.

ये लो माधुरी के प्यार के साथ
इस जीत के बाद जंग में बहादुरी को देखते हुए विक्रम बत्रा को कैप्टन बना दिया गया. इसके बाद कैप्टन विक्रम बत्रा ने दुश्मनो को ढेर करते हुए प्वाइंट 4700 पर भी कब्जा कर लिया. 

एक बार दुश्मनों ने कहा- हमें माधुरी दीक्षित दे दो. हम नरम दिल हो जाएंगे. इस पर कैप्टन विक्रम बत्रा ने कहा- ये लो माधुरी दीक्षित के प्यार के साथ. विक्रम बत्रा ने कई सैनिकों को मार गिराया. पाकिस्तानी सैनिक भी विक्रम बत्रा को शेरशाह कहा करते थे.

टारगेट- प्वाइंट 4875
द्रास के बाद 26 जून 1999 को विक्रम बत्रा की बटालियन को घुरमी जाने का ऑर्डर मिला. 30 जून को उनकी बटालियन मुशकोह वैली चली गई. इसके बाद उनको प्वाइंट 4875 पर कब्जा करना था. इस प्वाइंट पर कब्जे की वजह से पाकिस्तान जंग में काफी आगे था.

कैप्ट्न विक्रम बत्रा की बटालियन को दुश्मनों से कुछ दूर तैनात किया गया था. विक्रम बत्रा को बुखार था. वो अपने स्लीपिंग बैग में लेटे हुए थे. वहीं कुछ दूर पाकिस्तान और भारतीय सैनिकों के बीच गोलीबारी जारी थी.

पाकिस्तानी पस्त
लगातार गोलीबारी की वजह से भारतीय सैनिक चोटी के पास नहीं पहुंच पा रहे थे. कैप्टन विक्रम बत्रा बेस से सब कुछ देख रहे थे. बत्रा ऊपर जाने की परमिशन मांग रहे थे.

कैप्टन विक्रम बत्रा की टीम ने पाकिस्तान सेना पर ऐसा हमला किया कि वो पस्त हो गए. दुश्मनों की मशीनगनें नष्ट हो गईं. बत्रा की टीम के दो साथी घायल हो गए थे. कैप्टन विक्र बत्रा उनको वापस ला रहे थे. लौटते समय दुश्मन की गोली विक्रम बत्रा को लग गई. 

बत्रा प्वाइंट
7 जुलाई 1999 को कैप्टन विक्रम बत्रा ने अपनी जान गंवा दी. जब तक वो जिंदा रहे, अपने साथी की जान बचाते रहे. कैप्टन विक्रम बत्रा को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. 

कैप्टन विक्रम बत्रा आखिरी जवान हैं जिनको परमवीर चक्र दिया गया. बाद में  प्वाइंट 4875 का नाम बदलकर बत्रा प्वाइंट कर दिया गया.

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