लॉकडाउन में बंद हुए स्कूल...तो खुद बच्चों तक स्कूल लेकर पहुंच गए

लॉकडाउन के दौरान लगातार स्कूल बंद रहे. इस दौरान काफी बच्चों की पढ़ाई छूट गई. बच्चों को भटकने से बचा कर रखने के लिए रांची के स्कूल ने अनोखी पहल की शुरूआत की. यहां मध्य विद्यालय नामकुम के सरकारी शिक्षक ने अपने पैसे और समय देकर अपनी कार को ही मोबाइल स्कूल में बदल दिया है. अब वो गांव गांव घूमकर मोहल्ला क्लास का आयोजन करते हैं. उनका साफ मानना है कि इससे युवा पीढ़ी के निर्माण में फायदे होंगे.

Mobile School
gnttv.com
  • रांची,
  • 18 जनवरी 2022,
  • अपडेटेड 4:57 PM IST
  • कार को ही बना दिया मोबाइल स्कूल
  • ज्यादातर बच्चे गरीब परिवार से हैं

लॉकडाउन के दौरान लगातार स्कूल बंद रहे. इस दौरान काफी बच्चों की पढ़ाई छूट गई. बच्चों को भटकने से बचा कर रखने के लिए रांची के स्कूल ने अनोखी पहल की शुरूआत की. यहां मध्य विद्यालय नामकुम के सरकारी शिक्षक ने अपने पैसे और समय देकर अपनी कार को ही मोबाइल स्कूल में बदल दिया है. अब वो गांव गांव घूमकर मोहल्ला क्लास का आयोजन करते हैं. उनका साफ मानना है कि इससे युवा पीढ़ी के निर्माण में फायदे होंगे. उनका कहना है कि उनकी मुहिम अगर रंग पकड़ती है तो देश के विकास और समाज के प्रति ये बड़ा योगदान होगा. इस मुहिम में उनके ही स्कूल के अन्य शिक्षक भी उनकी मदद करते हैं. विद्यार्थी और उनके अभिवावक शिक्षक की इस पहल से बेहद खुश हैं.

कार को ही बना दिया मोबाइल स्कूल
दरअसल कोरोना महामारी के दौरान स्कूल लगातार दो सालों से बंद हैं और शिक्षकों को सिर्फ सरकारी कामकाज के लिए स्कूल बुलाया जाता है. टीचर अगर चाहें तो अपना काम करके चुपचाप निकल सकता है, लेकिन यहां के हर शिक्षक की सोच अलग है. सहायक अध्यापक राजेश कुमार ने अपनी कार को ही मोबाइल स्कूल बना लिया है. बच्चों का स्कूल आना मना है तो ये इस स्कूल को ही लेकर बच्चों के बीच पहुंच जाते हैं. राजेश की कार में दरी, बोर्ड, मार्कर, सैनिटाइजर, मास्क और पढ़ने के लिए सभी जरूरी समान मिल जाएंगे. राजेश जहां भी अपनी कार लगाते हैं उनका स्कूल वहीं शुरू हो जाता है. बच्चों को पहले सैनिटाइज किया जाता है इसके बाद उन्हें मास्क पहनने को दिया जाता है. 

ज्यादातर बच्चे गरीब परिवार से हैं
राजेश खुद भी एक्स आर्मीमैन के पुत्र हैं. देश के लिए किसी न किसी तरह कुछ करने का जज्बा इनमे भरा हुआ है. राजेश के इस प्रयास से बच्चे भी खुश हैं. सरकारी स्कूल में ज्यादातर बच्चे बिल्कुल निम्न मध्य वर्ग से आते हैं. यहां पढ़ रहे बच्चों के अभिभावक या तो मजदूर हैं या फिर प्लम्बर या राज मिस्त्री या गार्ड हैं. इन बच्चों के पास न तो स्मार्टफोन है और न ही डेटा की सुविधा. 

मोहल्ला क्लास ने सबकुछ बदल दिया
गांव के लोग भी तेतरी स्कूल के शिक्षक और खासकर अध्यापक राजेश के जज्बे और प्रयास को सलाम करते हैं. उनका मानना है कि पहले बच्चे खेलकूद में रहते थे. मोहल्ला क्लास ने सबकुछ  सुखद तरीके से बदलकर रख दिया है. राज्य में लगभग 40, 000 मध्य या प्राथमिक  विद्यालय हैं जहां कक्षा 8 तक कि पढ़ाई होती है. कोरोना महामारी के समय में मोहल्ला क्लास का कांसेप्ट नया है और कारगर भी साबित हो रहा है.

(सत्यजीत कुमार की रिपोर्ट)

 

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