नेहरू मेमोरियल का नाम बदल कर प्रधानमंत्री म्यूजियम एंड लाइब्रेरी रख दिया गया है, नए नाम को लेकर जून में बैठक हुई इसके बाद इसपर मुहर लग गई. जैसे ही इसका नाम बदला ठीक वैसे बदले नाम पर सियासत भी होने लगीं ऐसे में लोगों के मन में कई सवाल भी उठने लगे की आखिर इसका नाम बदला क्यों गया है और इसकी क्या जरूरत थी, इन तमाम सवालों के जवाब को जानने के लिए और बदले हुए नाम पर हो रही सियासत के बारे में समझने के लिए हमने पीएम म्यूजियम एंड लाइब्रेरी कि कार्यकारी परिषद के उपाध्यक्ष सूर्या प्रकाश से बात की.
सवाल 1- नाम बदलने की बड़ी वजह क्या थी?
दरअसल यहां पहले केवल नेहरू म्यूजियम था लेकिन कुछ वक्त पहले जब ये तय हुआ कि यहां सभी प्रधामंत्रियों के बारे में लोगों को बताया जाए, खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना था कि ऐसा म्यूजियम होना चाहिए जहां देश के सभी प्रधामंत्रियो के बारे में पता चले सके, नेहरू म्यूजियम में 28 एकड़ जमीन थी जिसमें से कुछ जगह का इस्तेमाल करते हुए प्रधानमंत्री म्यूजियम बनाया गया.
सवाल 2- नेहरू म्यूजियम का नाम बदलने पर सियासत होने लगी है?
इसके जवाब में यह सूर्य प्रकाश बताते हैं कि नेहरू म्यूजियम लाइब्रेरी का कार्यभार अब पहले से ज्यादा बढ़ गया है, पहले यह सिर्फ नेहरू म्यूजियम और लाइब्रेरी था लेकिन अब यहां पर प्रधानमंत्री म्यूजियम और लाइब्रेरी है. इसलिए जैसे ही दायित्व बड़ा वैसे ही इसके नाम बदलने पर भी विचार किया जाने लगा जिसके तहत इसका नाम बदल गया है.
सवाल 3- ये विचार कब किया गया की नाम बदला जाए?
नेहरू मेमोरियल की एग्जीक्यूटिव कमिटी की जनरल बॉडी ने 15 जून को बैठक की जिसमे ये तय किया गया की इसका नाम बदला जाना चाहिए. उसके बाद कानून के तहत जो नई बॉडी की दूसरी बैठक हुई यह मीटिंग 18 जुलाई को हुई जिसमें नाम बदलने पर पूरी तरह से मुहर लग गई.
सवाल 4- इस संग्रहालय में लोग सभी प्रधानमंत्रियों के बारे में जान सकेंगे लेकिन इस पर राजनीति भी होने लगी है इसकी क्या वजह है?
नाम बदलने पर किसी भी तरह की राजनीति नहीं होनी चाहिए क्योंकि जैसे ही म्यूजियम का दायित्व बड़ा है तब उसके नाम को बदलने पर विचार किया गया क्योंकि अब इसमें सभी प्रधानमंत्री शामिल है इसलिए एक ऐसा नाम सुना गया जिसमें सभी प्रधानमंत्रियों की भागीदारी भी हो.
सवाल 5- विरोध ये कह कर भी जताया जा रहा है की नाम नेहरू म्यूजियम भी रखा जा सकता था?
इस तरह की बात करना ठीक नहीं होगा क्योंकि अगर इसका नाम आज भी नेहरू म्यूजियम ही रहेगा तो यह कैसे पता चल सकेगा कि इस म्यूजियम में देश के सभी प्रधानमंत्रियों की जानकारी दी गई है अगर हम लोकतंत्र की बात करते हैं तो हमे जो विवधता देश में है कि कितने प्रधानमंत्री जो अलग अलग राज्यों से है अलग अलग भाषा बोलते है, तो क्या हम बाकी जो 14 प्रधानमंत्री हैं उनके नाम को मान्यता ना दें क्या यह उनके साथ गलत नहीं होगा. इसमें राजनीति क्यों करना क्योंकि नेहरू म्यूजियम आज भी ठीक वैसा ही है जैसा पहले था उसमें 17 साल के कार्यकाल का पूरा ब्योरा दिया हुआ है.
सवाल 6- हमारे दर्शकों को ये बताइए कि नए और पुराने म्यूजियम में क्या क्या अंतर है?
हमारा प्रयास था कि अब म्यूजियम को थोड़ा आधुनिक बनाया जाए, बच्चों के मन में म्यूजियम के बारे में जो सोच है उसको बदलना चाहिए इसलिए हमने ऐसा म्यूजियम बनाया , जहां बच्चे आकर छोटी-छोटी एक्टिविटीज का हिस्सा बन सके और वह अपने इतिहास को समझ सके.
सवाल 7- म्यूजियम बनने के बाद ये भी कहा गया कि ये म्यूजियम पीएम मोदी को ध्यान में रख कर बनाया गया लेकिन असल में यहां सभी प्रधानमंत्रियों को बराबर जगह दी गई है.
बहुत लोग जो कह रहे हैं कि नेहरू के नाम को मिटा दिया गया यह बिल्कुल ठीक नहीं है क्योंकि आप म्यूजियम आकर देखिए तो आज भी नेहरू जी के लिए एक म्यूजियम पूरा अलग बना हुआ है लेकिन इस म्यूजियम के पीछे एक दूसरा प्रधानमंत्री संग्रहालय बनाया गया है जहां बाकी के प्रधानमंत्री के बारे में जानकारी दी गई है इसलिए यह कहना कि नेहरू जी का इतिहास मिटाया जा रहा है यह बिल्कुल गलत है.
देश के लिए हर प्रधानमंत्री की भूमिका काफी अहम रही है ऐसे में सबके इतिहास को दिखाया जाना जरूरी है. कोई 17 साल थे तो कोई 16 साल थे इसलिए हमारे लिए सब बराबर है. लाल बहादुर शास्त्री को देखिए जिन्होंने कम समय में देश में क्रांति ला दी.
कई लोग यह भी कह रहे हैं कि इस लाइब्रेरी को कहीं और भी बनाया जा सकता था लेकिन देश के लिए सभी प्रधान मंत्रियों की भूमिका बराबर है ऐसे में बाकी प्रधानमंत्रियों का म्यूजियम कहीं और होना ठीक नहीं होता है इसी को ध्यान में रखते हुए नेहरू म्यूजियम के पीछे ही नया प्रधानमंत्री संग्रहालय बनाया गया है.
सूर्या प्रकाश आगे बताते हैं कि सभी लोगों को नेहरू म्यूजियम और प्रधानमंत्री संग्रहालय देखना चाहिए उसके बाद टिप्पणी करनी चाहिए, वो अपने सुझाव भी दें लेकिन बिना देखे ये न सोचे कि यहां नेहरू जी के इतिहास के साथ खिलवाड़ हुआ है.