महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की भामरागढ़ तहसील में, ग्राम कंगारू में आमतौर पर बाल विवाह आम बात है, सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों पर डॉक्टर शायद ही कभी दिखाई देते हैं, और आदिवासी लोग नक्सलियों के रूप में फंसाए जाने के बाद सालों तक जेल में बंद रहते हैं. लेकिन, कोटी गांव की सरपंच भाग्यश्री मनोहर लेखमी हर दिन इन परिस्थितियों से लड़ रही है. वह अपने अधिकार क्षेत्र में एक गांव चुनती हैं और वहां के लोगों से जाकर मिलती हैं.
लेखमी का लक्ष्य माता-पिता को अपनी कम उम्र की बेटियों की शादी करने से रोकना और उनकी शिक्षा फिर से शुरू करना, साथ ही बिजली आपूर्ति के लिए उनके बिजली मीटर की स्थिति की जांच करना और शौचालयों और कंक्रीट घरों के लिए ब्लूप्रिंट तैयार करना होता है. लेखमी ने हरस्टोरी को बताया कि काम के बाद वे जंगल में लंबी सैर करते हैं.
16 साल बाद बनीं सरपंच
कोटी ग्राम पंचायत, जहां लेखमी रहती हैं, वहां 2003 से कोई सरपंच नहीं था क्योंकि बहुत से लोग नक्सल-प्रभावित क्षेत्र में तैनात होने के इच्छुक नहीं थे. उनकी मां, एक आंगनवाड़ी शिक्षिका, और पिता, एक तहसील-स्तरीय शिक्षक हैं. वे अक्सर ग्रामीणों की आधिकारिक दस्तावेजों के लिए आवेदन करने, पंजीकरण फॉर्म भरने और बैंक खाते खोलने में मदद करते थे. 2019 में, स्कूल की पढ़ाई पूरी करने वाली पंचायत की कुछ लड़कियों में से एक के रूप में, लेखमी को माडिया आदिवासी समुदाय ने सर्वसम्मति से एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुना लिया. तब वह 20 साल की थी और वॉलीबॉल चैंपियन थी.
लेखमी कहती हैं कि वह एक एथलीट बनना चाहती थी. लेकिन 20 साल की उम्र तक उन्होंने अपने घर में एक भी लाइट बल्ब नहीं देखा था. आदिवासी होने के कारण वे किसी भी सरकार की प्राथमिकता में नहीं थे. उन्होंने सरपंची को इस स्थिति को बदलने के एक अवसर के रूप में देखा. हालांकि, एक आदिवासी महिला सरपंच होना आसान बिल्कुल नहीं है.
मुश्किलों का सामना किया
सरपंच के रूप में अपनी नियुक्ति के कुछ समय बाद ही लेखमी के लिए बहुत कुछ बदल गया. उनके माता-पिता ने उन्हें एक बेटे की तरह पाला था. लेकिन उन्होंने बताया कि उन्हें अनुचित तरीके से छुआ गया, उनका मजाक उड़ाया गया और बोलने की कोशिश करते समय उन्हें चुप करा दिया गया और हर समय घूरकर देखा गया. वह घर आकर रोन लगती थीं लेकिन उनकी मां ने उन्हें साहस दिया और कहा कि उन्हें घर से अलग भाग्यश्री बनना होगा.
लेखमी चंद्रपुर में राष्ट्रीय शरीरिक शिक्षण महाविद्यालय से शारीरिक शिक्षा में बीए कर रही हैं. वह कहती हैं कि हालांकि उन्हें अभी भी समय-समय पर इन स्थितियों का सामना करना पड़ता है, लेकिन उन्होंने सीख लिया है कि उन्हें कैसे संभालना है और काम करना है. कई बार गांव वाले ही उनके दृष्टिकोण से असहमत होते हैं. वे अपनी बेटियों के स्कूल -कॉलेज पर पैसा खर्च नहीं करना चाहते. लड़कियों को बालिग होने से पहले शादी करने से रोकने के लिए, लेखामी ने उन्हें चंद्रपुर के एक आवासीय विद्यालय में दाखिला दिलाना शुरू कर दिया है, जो उनके गांव से काफी दूरी पर है.
गांवों में पहुंचाई बिजली
लेखमी उच्च शिक्षा के लिए जरूरतमंद छात्रों की फीस आदि में मदद करती हैं, और जब उन्हें समय मिलता है, तो महिलाओं और लड़कियों को मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता के बारे में भी शिक्षित करती हैं. उनका कहना है कि स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा जैसे बुनियादी संसाधनों तक पहुंच बनाना अपने आप में एक आदिवासी समुदाय के लिए एक बड़ा काम है. बिजली मीटर के लिए आवेदन करने के बाद, गांवों को बिजली आपूर्ति पाने के लिए छह महीने तक इंतजार करना पड़ा.
आज, उनके अधिकार क्षेत्र में आने वाले नौ में से छह गांवों में बिजली है. 150 से अधिक कच्चे घरों को ईंट-गारे के घरों के रूप में फिर से बनाया गया है और उनमें पानी की आपूर्ति के साथ शौचालय हैं. लेखमी कहती हैं कि इस इलाके में लोग काम करने नहीं आते क्योंकि वे कहते हैं यहां नक्सलवाद है. ज्यादातर लेखमी के पिता ही बच्चों को पढ़ाते हैं क्योंकि शिक्षक यहां रुकते नहीं. लेकिन लेखमी हार मानने वालों में से नहीं बदलाव लाने वालों मे से है.