भारत और चीन की सीमा पर लगातार तनाव बढ़ता जा रहा है. पहले गलवान और अब तवांग में दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प हुई है. चीन की तरफ से लगातार उकसावे वाली कार्रवाइयां की जा रही हैं. भारत जिसको लगातार काउंटर कर रहा है. लेकिन रक्षा बजट की बात की जाए तो चीन का रक्षा बजट भारत के मुकाबले 3 गुना है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारत चीन को रोकने के लिए पर्याप्त सेना और हथियारों का बना पाया है? इस सवाल का जवाब पिछले एक दशक में भारत के रक्षा बजट में बढ़ोतरी में छिपा हुआ है.
भारत रक्षा पर खर्च करने वाला तीसरा बड़ा देश-
पूरी दुनिया में रक्षा बजट पर खर्च करने वाला तीसरा सबसे ज्यादा बड़ा देश भारत है. इस मामले में भारत ने रूस और ब्रिटेन को पीछे छोड़ दिया है. रक्षा बजट पर खर्च के मामले में भारत से आगे सिर्फ अमेरिका और चीन हैं. हालांकि इनका रक्षा खर्च भारत से चार गुना ज्यादा है. अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो चीन भारत के मुकाबले कहीं ज्यादा रक्षा खर्च करता है.
एक दशक में भारत का रक्षा खर्च 50 फीसदी बढ़ा-
भारत का रक्षा बजट लगातार बढ़ता जा रहा है. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक पिछले एक दशक में भारत का रक्षा खर्च 50 फीसदी बढ़ गया है. जो रक्षा बजट साल 2011 में 49.6 अरब डॉलर का था, अब वो 76.6 अरब डॉलर का हो गया है. अभी भी लगातार खर्च में बढ़ोतरी हो रही है. फरवरी में रक्षा बजट में 10 फीसदी की बढ़ोतरी की थी.
भारत की प्राथमिकता अपनी सेना का आधुनिकीकरण करना है. लेकिन इसके साथ ही सेना का स्वदेशीकरण भी जरूरी है. गलवान में झड़प के कुछ महीने बाद ही भारत ने अमेरिका से एक समझौता किया. जिसके सेना के स्वदेशीकरण में मदद मिल रही है.
चीन भी तेजी से बढ़ा रहा रक्षा बजट-
चीन अपने रक्षा में तेजी से बढ़ोतरी कर रहा है. 2020 में गलवान घाटी में झड़क के बाद से चाइना के रक्षा बजट में बढ़ोतरी हुई है. चीन ने 52 बिलियन डॉलर का रक्षा बजट बढ़ाया है. जबकि भारत का पूरा रक्षा बजट करीब 76 बिलियन डॉलर का है. साल 2021 में चीन का रक्षा बजट 209 बिलियन डॉलर था. लेकिन 2022 में बजट 261 बिलियन डॉलर हो गया.
देश में हथियार बनाने में जुटा भारत-
आजादी के बाद भारत ने स्वदेशी सैन्य उद्योग को बढ़ावा देना शुरू किया था. देसी हथियार बनाने के लिए विदेशी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता था. जिसमें लड़ाकू विमान और स्व-लोडिंग राइफल शामिल थी. लेकिन इसके निर्माण की इजाजत सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को दी गई. जिसकी वजह से हथियारों का स्वदेशीकरण धीरे-धीरे कमजोर होने लगा और भारत दुनिया का बड़े हथियार आयात करने वाले देशों में शामिल हो गया. लेकिन जब 2020 में भारत और चीन के बीच गलवान में झड़प हुई तो एक बार फिर देश को हथियारों के स्वदेशीकरण की जरूरत महसूस हुई. सरकार ने सैकड़ों मिलिट्री हार्डवेयर कंपोनेंट्स के आयात पर रोक भी लगा दिया. जिसमें स्प्रिंग्स से लेकर गश्ती नौकाएं शामिल हैं.
हथियार बनाने की होड़ में भारतीय प्राइवेट कंपनियां-
अब भारत ने प्राइवेट कंपनियों को भी हथियार बनाने की छूट दी है. गौतम अडानी ने साल 2015 में रक्षा और एयरोस्पेस कारोबार शुरू किया. अडानी की कंपनी इजरायल की एलबिट कंपनी के साथ मानव रहित विमान बनाने का समझौता कर रही है. इसके साथ ही अडानी की कंपनी इजरायल वेपन्स इंडस्ट्रीज के साथ समझौते भी कर रही है, जो भारत में मशीनगन और राइफल बनाने के लिए Uzi को बनाती है.
टाटा संस का एयरोस्पेस और रक्षा डिविजन लॉकहीड मार्टिन एंड बोइंग के साथ ज्वाइंट वेंचर्स पर काम कर रहा है, जिस के लिए विमान के पार्ट्स बनाती है. लेकिन हाल ही में कंपनी ने विमान और हथियार सिस्टम की डिजाइनिंग और निर्मण का काम शुरू किया है. भारत अब हल्के लड़ाकू हेलिकाप्टरों, लड़ाकू विमानों, टैंकों और रॉकेट बनाने लगा है.
रक्षा बजट का सैन्य उपकरणों पर इस्तेमाल-
भारत में रक्षा बजट का दो-तिहाई हिस्सा सैलरी, पेंशन और सेना के कर्मचरियों के नियमित सेवाओं में जाता है. जब एक-तिहाई से भी कम बजट हथियारों और सैन्य सिस्टम पर खर्च किया जाता है. लेकिन भारतीय सेना इन समस्याओं से निपटने पर भी काम कर रही है. इसके लिए सेना ने अग्निपथ योजना शुरू की है. जिसके तहत सैनिकों को कम समय के लिए भर्ती किया जाता है. इसमें से 25 फीसदी सैनिकों को सेना में पर्मानेंट जॉब मिलती है.
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