Explainer: पांच राज्यों में चुनावी बिगुल बजते ही आचार संहिता लागू, आखिर क्या है कोड ऑफ कंडक्ट, कौन काम बंद और कौन रहेंगे जारी, जानें सबकुछ

Code Of Conduct: देश में विधानसभा या लोकसभा चुनावों की तारीखों की घोषणा के साथ ही कोड ऑफ कंडक्ट यानी आचार संहिता लागू हो जाती है. क्या होती है ये आचार संहिता, इसमें सियासी दल क्या कर सकते हैं और क्या नहीं. चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों के लिए क्या शर्तें होती हैं. यहां पढ़िए.

एमपी सहित पांच राज्यों में चुनाव की तारीखों की हुई घोषणा
मिथिलेश कुमार सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 09 अक्टूबर 2023,
  • अपडेटेड 5:27 PM IST
  • चुनाव की तारीखों का ऐलान होते ही लागू हो जाती है आदर्श आचार संहिता
  • वोटों के नतीजों की घोषणा के बाद खत्‍म हो जाती हैं पाबंदियां

चुनाव आयोग ने पांच राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान कर दिया है. इस घोषणा के साथ ही इन प्रदेशों में आदर्श आचार संहिता भी लागू हो गई है. आइए आज जानते हैं क्या होता है कोड ऑफ कंडक्ट ( आचार संहिता), इसे कौन करता है लागू और इस दौरान कौन से काम बंद और कौन रहते जारी रहते हैं?

क्या होती है आचार संहिता
देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग ने कुछ नियम बनाए हैं. आयोग के इन्हीं नियमों को आचार संहिता कहते हैं. लोकसभा/विधानसभा चुनाव के दौरान इन नियमों का पालन करना सरकार, नेता और राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी होती है. 

भारत निर्वाचन आयोग, भारत के संविधान के अनुच्छेद 324 के अधीन संसद और राज्य विधान मंडलों के लिए स्वतंत्र, निष्पक्ष और शांतिपूर्ण निर्वाचनों के आयोजन के लिए अपने सांविधिक कर्तव्यों के निर्वहन में केंद्र और राज्यों में सत्तारूढ़ दल (दलों) और निर्वाचन लड़ने वाले अभ्यर्थियों से इसका अनुपालन सुनिश्चित करता है. यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि निर्वाचन के प्रयोजनार्थ अधिकारी तंत्र का दुरूपयोग न हो. आचार संहिता लागू होते ही सरकारी कर्मचारी चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक निर्वाचन आयोग के कर्मचारी बन जाते हैं. आचार संहिता सभी राजनीतिक दलों की सर्वसहमति से लागू व्यवस्था है. 

कब से हुई आचार संहिता की शुरुआत  
आदर्श आचार संहिता की शुरुआत सबसे पहले 1960 में केरल विधानसभा चुनाव में हुई थी, जिसमें बताया गया कि उम्मीदवार क्या कर सकता है और क्या नहीं. इलेक्शन कमीशन ने 1962 के लोकसभा चुनाव में पहली बार इसके बारे में सभी राजनीतिक दलों को अवगत कराया था. 1967 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों से आचार संहिता की व्यवस्था लागू हुई. तब से अब तक नियमित इसका पालन हो रहा है. हालांकि समय-समय पर इसके दिशा-निर्देशों में बदलाव होते रहा है.

आचार संहिता कब से कब तक रहती है प्रभावशाली 
चुनाव आयोग प्रेस कॉन्फ्रेंस कर जब चुनाव प्रोग्राम की तारीखें घोषित करता है, उसी के साथ ही आचार संहिता भी प्रभावशाली हो जाती है. इस बार इन पांच राज्यों में 9 अक्टूबर 2023 से लागू हो गई है. यह निर्वाचन प्रक्रिया पूरी होने तक लागू रहती है. या यूं कहें कि रिजल्ट आने तक ये प्रभाव में रहती है. इलेक्शन कमीशन ने कहा कि मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम 5 दिसंबर 2023 से पहले चुनाव प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी. चुनाव प्रक्रिया पूरी होते ही आचार संहिता खत्म हो जाएगी.

आचार संहिता में किन-किन कामों पर होती है पाबंदी
आचार संहिता के तहत बताया जाता है कि राजनीतिक दलों और कैंडिडेट को चुनाव के दौरान क्या करना है और क्या नहीं करना है. ये ऐसे काम होते हैं जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मतदान को प्रभावित कर सकते हैं. 

1. आचार संहिता लागू होते ही दीवारों पर लिखे गए सभी तरह के पार्टी संबंधी नारे व प्रचार सामग्री हटा दी जाती है. होर्डिंग, बैनर व पोस्टर भी हटा दिए जाते हैं. 
2. आचार संहिता लागू होने पर सरकार नई योजना और नई घोषणाएं नहीं कर सकती. भूमिपूजन और लोकार्पण भी नहीं हो सकते. 
3. चुनाव प्रचार के लिए सरकारी संसाधनों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. सरकारी गाड़ी, बंगला, हवाई जहाज का उपयोग वर्जित होता है. 
4. राजनीतिक दलों को रैली, जुलूस या फिर मीटिंग के लिए परमिशन लेनी होती है. 
5. धार्मिक स्थलों और प्रतीकों का इस्तेमाल चुनाव के दौरान नहीं किया जाता है. 
6. मतदाताओं को किसी भी तरह से रिश्वत नहीं दी जा सकती है. 
7. किसी भी चुनावी रैली में धर्म या जाति के नाम पर वोट नहीं मांगे जाएंगे. 
8. किसी भी प्रत्याशी या पार्टी पर निजी हमले नहीं किए जा सकते हैं. 
9. मतदान केंद्रों पर वोटरों को लाने के लिए गाड़ी मुहैया नहीं करवा सकते हैं. 
10. मतदान के दिन और इसके 24 घंटे पहले किसी को शराब वितरित नहीं की जा सकती है. 
11. चुनाव कार्यों से जुड़े किसी भी अधिकारी को किसी भी नेता या मंत्री से उसकी निजी यात्रा या आवास में मिलने की मनाही होती है.
12. सरकारी खर्चे पर किसी नेता के आवास पर इफ्तार पार्टी या अन्य पार्टियों का आयोजन नहीं कराया जा सकता है.
13. विधायक, सांसद या विधान परिषद के सदस्य लोकल एरिया डेवलपमेंट फंड से नई राशि जारी नहीं कर सकते हैं.
14. आदर्श आचार संहिता लगने के बाद पेंशन फॉर्म जमा नहीं हो सकते और नए राशन कार्ड भी नहीं बनाए जा सकते. 
15. हथियार रखने के लिए नया आर्म्स लाइसेंस नहीं बनेगा. BPL के पीले कार्ड नहीं बनाए जाएंगे.
16. कोई भी नया सरकारी काम शुरू नहीं होगा. किसी नए काम के लिए टेंडर भी जारी नहीं होंगे.
17. आदर्श आचार संहिता लगने के बाद बड़ी बिल्डिंगों को क्लियरेंस नहीं दी जाती है.
18. मतदान के दिन मतदान केंद्र से सौ मीटर के दायरे में चुनाव प्रचार पर रोक और मतदान से एक दिन पहले किसी भी बैठक पर रोक लग जाती है. 

आम आदमी पर भी लागू
कोई आम आदमी भी इन नियमों का उल्लंघन करता है, तो उस पर भी आचार संहिता के तहत सख्त कार्रवाई की जाएगी. इसका आशय यह है कि यदि आप अपने किसी नेता के प्रचार में लगे हैं तब भी आपको इन नियमों को लेकर जागरूक रहना होगा. यदि कोई राजनेता आपको इन नियमों के इतर काम करने के लिए कहता है तो आप उसे आचार संहिता के बारे में बताकर ऐसा करने से मना कर सकते हैं. क्योंकि ऐसा करते पाए जाने पर तत्काल कार्रवाई होगी. ज्यादातर मामलो में आपको हिरासत में लिया जा सकता है.

कौन कर सकता है ट्रांसफर-पोस्टिंग
आचार संहिता लागू होने के बाद किसी भी सरकारी अधिकारी, कर्मचारी की ट्रांसफर-पोस्टिंग सरकार नहीं कर सकती है. ट्रांसफर कराना बेहद जरूरी हो गया हो तब भी सरकार बिना चुनाव आयोग की सहमति के ये फैसला नहीं ले सकती है. इस दौरान राज्य के मुख्य चुनाव आयुक्त जरूरत के हिसाब से अधिकारियों की ट्रांसफर पोस्टिंग कर सकते हैं.

जुलूस-रैली के लिए थाने में देनी होती है जानकारी 
उम्मीदवार और पार्टी को जुलूस निकालने या रैली और बैठक करने के लिए चुनाव आयोग से अनुमति लेनी होती है. इसकी जानकारी निकटतम थाने में भी देनी होती है. सभा के स्थान व समय की पूर्व सूचना पुलिस अधिकारियों को देना होती है.

इन कामों पर नहीं लगता ब्रेक
1. जिस सरकारी योजना पर काम शुरू हो गया है. वो आचार संहिता लागू होने के बावजूद जारी रहती है.
2. जिन योजनाओं में आचार संहिता लागू होने से पहले किसे लाभ मिलेगा, इसकी पहचान हो गई हो, वो योजनाएं चालू रहेंगी.
3. पहले से चल रही मनरेगा जैसी योजनाएं जारी रहती हैं.
4. नई योजनाओं को मंजूरी मिल चुकी है और उसके लिए राशि भी स्वीकृत हो चुकी हो तो वो चलती रहेंगी.
5. ड्राइविंग लाइसेंस, जाति-निवास प्रमाण पत्र, जमीन की रजिस्ट्री जैसे काम आचार संहित के दौरान भी जारी रहते हैं.

आचार संहिता के उल्लंघन पर क्या होता है
चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद कई नियम भी लागू हो जाते हैं. इनकी अवहेलना कोई भी राजनीतिक दल या राजनेता नहीं कर सकता. इसके अतिरिक्त यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि निर्वाचन के दौरान अपराध, कदाचार और भ्रष्ट आचरण, रिश्वतखोरी और मतदाताओं को प्रलोभन, मतदाताओं को धमकाना और भयभीत करने जैसी गतिविधियों को रोका जा सके. इनके उल्लंघन के मामले मे उचित कार्रवाई की जाती है. यदि कोई इन नियमों का पालन नहीं करता है तो चुनाव आयोग उसके खिलाफ कार्रवाई कर सकता है. उम्मीदवार को चुनाव लड़ने से रोका जा सकता है या उसके विरुद्ध एफआईआर दर्ज हो सकती है. दोषी पाए जाने पर जेल भी जाना पड़ सकता है. 

आचार संहिता लागू होने से पहले भी हो सकती है कार्रवाई 
चुनाव आयोग आचार संहिता लागू होने से पहले भी कार्रवाई कर सकता है. साल 2010 में राज्य के चुनाव आयोग के सामने यह शिकायत आई थी कि बहुजन समाज पार्टी ने सरकारी पैसे से अपने चुनाव चिह्न 'हाथी' की प्रतिमाएं बनवाकर आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन किया है. 

इस शिकायत पर चुनाव आयोग ने कहा कि आचार संहिता की समय-सीमा से बाहर किसी भी राजनीतिक दल की ओर से सरकारी शक्ति और तंत्र के कथित दुरुपयोग पर एक्शन नहीं ले सकते हैं. चुनाव आयोग के इस रुख को दिल्ली उच्च न्यायालय में कॉमन कॉज बनाम बहुजन समाज पार्टी के रूप में चुनौती दी गई. इस मामले से जुड़े नियमों को जांच करने के बाद उच्च न्यायालय ने ये फैसला सुनाया कि चुनाव आयोग BSP के चुनाव चिह्न को अमान्य घोषित कर सकता है.

चुनावी खर्च में क्या-क्या होता है शामिल
निर्वाचन आयोग ने विधानसभा और लोकसभा चुनावों में प्रत्याशी के चुनावी खर्च पर सीमा तय कर रखी है. 2022 में चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनावों के लिए राज्यों के आधार पर 54 से 70 लाख रुपए की सीमा को बढ़ाकर 70 से 95 लाख रुपए तय किया था. विधानसभा चुनावों में खर्च की सीमा को 20 से 28 लाख रुपए (राज्यों के आधार पर) से बढ़ाकर 28 से 40 लाख रुपए तय किया गया था. 

चुनावी खर्च वह राशि है जो एक उम्मीदवार चुनाव अभियान के दौरान कानूनी रूप से खर्च करता है. इसमें सार्वजनिक बैठकों, रैलियों, विज्ञापनों, पोस्टर, बैनर, वाहनों और विज्ञापनों पर खर्च शामिल होता है. जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 77 के तहत प्रत्येक उम्मीदवार को नामांकन की तिथि से लेकर परिणाम घोषित होने की तिथि तक किए गए सभी व्यय का अलग और सही खाता रखना होता है. चुनाव संपन्न होने के 30 दिनों में उम्मीदवारों को चुनाव आयोग के समक्ष अपना व्यय विवरण प्रस्तुत करना होता है. यदि उम्मीदवार ने गलत विवरण प्रस्तुत किया तो अधिनियम की धारा 10 के तहत चुनाव आयोग उसे तीन साल के लिए अयोग्य घोषित कर सकता है.

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