संसद में एक नया बिल पेश हुआ है, जो शादियों में आने वाले बारातियों की संख्या, परोसे जाने वाले पकवान की सीमा तय करने के अलावा नवविवाहितों को उपहारों पर खर्च की जाने वाली राशि की सीमा तय करने का प्रावधान करता है. पंजाब के खडूर साहिब से कांग्रेस सांसद जसबीर सिंह गिल की ओर पेश किए गए प्राइवेट मेंबर बिल को शुक्रवार को लोकसभा में चर्चा के लिए सदन के पटल पर रखा गया.
शगुन या उपहार में 2500 रुपए से अधिक नहीं दिए जा सकेंगे
बिल का नाम ‘विशेष अवसरों पर फिजूलखर्ची रोकथाम विधेयक 2020’ (The Prevention of Wasteful Expenditure on Special Occasions Bill 2020) है. इस बिल के अनुसार बरात में सिर्फ 50 लोग ही शामिल हो पाएंगे. साथ ही शादी में 10 से अधिक व्यंजनों को नहीं परोसा जा सकेगा. इसके अलावा शगुन या उपहार में 2500 रुपए से अधिक नहीं दिए जा सकेंगे.
क्यों लाया गया ये बिल
संसद में पेश किया गया यह बिल विशेष अवसरों जैसे कि शादी के दौरान होने वाले अनाप-शनाप खर्चों में कमी लाने के लिए लाया गया है. इस बिल में कई प्रावधान हैं. एक प्रावधान के मुताबिक शादी में गिफ्ट लेने की बजाए गरीबों, जरूरतमंदों, अनाथों या समाज के कमजोर वर्गों को इसकी राशि दान में दी जानी चाहिए. कांग्रेस सांसद ने यह बिल जनवरी 2020 में पेश किया था. इसे अब संसद के मॉनसून सत्र में पेश किया गया.
सांसद ने इस विधेयक के पीछे के तर्क को समझाया
सांसद जसबीर सिंह गिल ने कहा कि विधेयक का उद्देश्य फिजूलखर्ची वाली शादियों की संस्कृति को खत्म करना है, जो विशेष रूप से दुल्हन के परिवार पर बहुत अधिक वित्तीय बोझ डालती हैं. सांसद ने विधेयक के पीछे के तर्क को समझाते हुए कहा, मैंने ऐसे कई वाकये सुने हैं कि कैसे लोगों को भव्य तरीके से शादियां करने के लिए अपने प्लॉट, संपत्तियां बेचनी पड़ीं और बैंक ऋण का विकल्प चुनना पड़ा. विवाह पर फिजूल खर्च में कटौती से कन्या भ्रूण हत्या को रोकने में काफी मदद मिल सकती है, क्योंकि तब लड़की को बोझ के रूप में नहीं देखा जाएगा.
पहले भी आ चुका है इस तरह का विधेयक
यह पहली बार नहीं है कि शादियों में होने वाले भारी भरकम खर्च को कानून के दायरे में लाने और उसे सीमित करने का प्रयास किया गया है. इससे पहले, मुंबई उत्तर से भाजपा के लोकसभा सांसद गोपाल चिनय्या शेट्टी ने दिसंबर 2017 में एक निजी विधेयक पेश किया था, जिसमें शादियों पर होने वाले फिजूलखर्चों पर रोकथाम की मांग की गई थी. फरवरी 2017 में कांग्रेस सांसद रंजीत रंजन ने शादियों में आमंत्रित किए जाने वाले मेहमानों की संख्या और परोसे जाने वाले व्यंजनों की सीमा तय करने के लिए विवाह बिल पेश किया था. इसमें प्रावधान किया गया था कि जो लोग शादी पर 5 लाख रुपए से अधिक खर्च करते हैं, वे इस राशि का 10 प्रतिशत गरीब परिवारों की लड़कियों की शादी में योगदान करें.
1970 के बाद से पास नहीं हुआ कोई प्राइवेट मेंबर बिल
देश के इतिहास में दोनों सदनों ने साल 1970 में एक प्राइवेट मेंबर बिल पारित किया था. यह सर्वोच्च न्यायालय के आपराधिक अपीलीय क्षेत्राधिकार का विस्तार बिल 1968 था. इसके बाद से अब तक संसद में कोई प्राइवेट मेंबर का बिल पास होकर कानून नहीं बन पाया है.आजादी के बाद अब-तक संसद में कुल 14 प्राइवेट मेंबर्स बिल पास होकर कानून बने हैं. इनमें से छह बिल अकेले 1956 में पास हुए थे. 16वीं लोकसभा (2014-19) में सबसे ज्यादा संख्या में प्राइवेट मेंबर बिल पेश किए गए थे. इनकी संख्या 999 रही थी. इस लोकसभा के 142 सदस्यों ने बिल पेश किए थे, जिनमें से 34 सांसदों ने 10 या ज्यादा बिलों को पेश किया था. हालांकि अब भी प्राइवेट मेंबर्स बिल पेश होते रहते हैं, लेकिन शायद ही संसद में इन पर चर्चा होती है.
क्या है प्राइवेट मेंबर बिल
संसद में पेश होने वाले सार्वजनिक बिल और प्राइवेट मेंबर बिल में अंतर होता है. प्राइवेट मेंबर बिल को कोई भी संसद सदस्य यानी सांसद पेश करता है. शर्त केवल यह है कि वो मंत्री नहीं होना चाहिए. ऐसे ही सासंद को प्राइवेट मेंबर कहते हैं. प्राइवेट मेंबर्स के विधेयकों (बिल) को केवल शुक्रवार को पेश किया जा सकता है और उन पर चर्चा भी इसी दिन की जा सकती है. यदि शुक्रवार को कोई प्राइवेट मेंबर्स बिल चर्चा के लिए नहीं होता तो उस दिन सरकारी विधेयक पर चर्चा की जाती है.
सार्वजनिक विधेयकों को मंत्री करते हैं पेश
सरकारी या सार्वजनिक विधेयकों को सरकार के मंत्री पेश करते हैं और ये किसी भी दिन पेश किए जा सकते हैं. ऐसे विधायकों पर कभी भी चर्चा की सकती है. सरकारी या पब्लिक बिलों को सरकार का समर्थन होता है, जबकि प्राइवेट मेंबर्स बिल के साथ ऐसा नहीं है. प्राइवेट मेंबर्स बिल सदन में पेश किए जाने लायक हैं या नहीं इसका फैसला लोक सभा अध्यक्ष और राज्य सभा के सभापति करते हैं. पेश होने की अनुमति मिलने के बाद प्राइवेट मेंबर बिल यह समीक्षा के लिए विभिन्न विभागों में जाते हैं. जब वहां से इन बिलों को अनुमोदन मिल जाता है, तब ही ये सदन के पटल पर रखे जाते हैं.
क्या होती है प्रक्रिया
प्राइवेट मेंबर का बिल सांसद या उनका स्टाफ ड्राफ्ट करता है. जो सांसद प्राइवेट मेंबर बिल पेश करना चाहता है, उसे कम से कम एक महीने का नोटिस देना होता है. नोटिस सदन सचिवालय को देना होता है, जो इसके संविधान के प्रावधानों के अनुपालन और विधेयक पर नियमों के अनुपालन को देखता है. एक से ज्यादा बिल होने पर, बिल को पेश करने के क्रम को तय करने के लिए एक बैलेट सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है. प्राइवेट मेंबर बिल और रेजोल्यूशन पर संसदीय कमेटी ऐसे सभी बिलों को देखती है और उनके महत्व के आधार पर वर्गीकृत करती है.