कोर्नेलिया सोराबजी: भारत की पहली महिला वकील, जिन्होंने दिलाया महिलाओं को वकालत का अधिकार

कॉर्नेलिया सोराबजी भारत की पहली महिला वकील थीं. और एक ऐसी महिला जिन्होंने बहुत-सी रूढ़ियों को तोड़ा. वह विदेश में पढ़ाई करने वाली पहली भारतीय नागरिक भी थीं और बॉम्बे विश्वविद्यालय से स्नातक करने वाली पहली महिला. साथ ही ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई करने वाली पहली महिला थीं. 

कोर्नेलिया सोराबजी (साभार: विकीमीडिया)
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 14 नवंबर 2021,
  • अपडेटेड 11:40 PM IST
  • पारसी परिवार में हुआ था जन्म
  • महिला होने के कारण नहीं मिली थी स्कॉलरशिप

कॉर्नेलिया सोराबजी भारत की पहली महिला वकील थीं. और एक ऐसी महिला जिन्होंने बहुत-सी रूढ़ियों को तोड़ा. वह विदेश में पढ़ाई करने वाली पहली भारतीय नागरिक थीं और बॉम्बे विश्वविद्यालय से स्नातक करने वाली पहली महिला भी. साथ ही ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई करने वाली पहली महिला थीं. 

जिस जमाने में महिलाओं को घर से बाहर कदम रखने के लिए भी अनुमति की जरूरत पड़ती थी, उस जमाने में कॉर्नेलिया ने न सिर्फ घर बल्कि देश के बाहर भी कदम रखा. उन्होंने किया जो उस समय कोई महिला अपने सपने में भी नहीं सोचती थी.

भारत और ब्रिटेन में कानून का अभ्यास करने वाली वह पहली भारतीय महिला वकील थीं. 

पारसी परिवार में हुआ जन्म: 

15 नवंबर 1866 में नासिक में कॉर्नेलिया का जन्म एक पारसी परिवार में हुआ था. उनके पिता मिशनरी से जुड़े हुए थे. और उनकी माँ सामाजिक कार्यों के लिए प्रसिद्ध थीं. उनका करियर उनके माता-पिता से प्रभावित और प्रेरित था.

बताया जाता है कि कॉर्नेलिया और उनके पांच भाई-बहनों ने अपना बचपन बेल्जियम में बिताया था. उनकी शुरुआती पढ़ाई घर पर ही हुई. 

ऑक्सफोर्ड तक का सफर: 

अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने साहित्य में आगे बढ़ने का सोचा और डेक्कन कॉलेज, पूना से कोर्स पूरा किया. परीक्षाओं में टॉप करने के बाद भी उन्हें सिर्फ इसलिए स्कॉलरशिप नहीं मिली क्योंकि वह एक महिला थीं. ऑक्सफोर्ड पहुँचने की राह भी मुश्किलों से भरी हुई थी. 

लेकिन कहते हैं न जहां चाह, वहां राह. इसलिए जब उन्हें स्कॉलरशिप नहीं मिली तो पूना और बॉम्बे की कुछ प्रमुख अंग्रेजी महिलाओं ने उन्हें ऑक्सफोर्ड भेजने के लिए चंदा इकट्ठा किया. और आखिरकार 1889 में उन्होंने सोमरविले कॉलेज में दाखिला लिया.

अपने सपनों को किया साकार: 

ऑक्सफोर्ड में, उन्होंने कानून की पढ़ाई की. 1892 में कॉर्नेलिया बैचलर ऑफ सिविल लॉ (बीसीएल) परीक्षा उत्तीर्ण करने वाली पहली महिला बनीं. हालांकि कॉलेज ने उन्हें डिग्री देने से मना कर दिया था. उस समय किसी भी महिला को कानून का पंजीकरण और अभ्यास करने की अनुमति नहीं थी. 

भारत लौटने के बाद उन्होंने 'परदानशीन' (परदे में रहने वाली महिलाएं) के लिए सलाहकार के तौर पर काम करना शुरू कर दिया. क्योंकि इन महिलाओं को परदे से बाहर निकल अपनी ज़िंदगी आज़ादी से जीने की इजाजत नहीं थी. इनके लिए उन्होंने याचिका भी दायर की. 

कोर्नेलिया के लिए अपने सपनों को पूरा करना आसान नहीं था. लेकिन उनमें जुनून की भी कमी नहीं थी. साल 1902 से 1922 तक उन्होंने पूरे भारत में 600 से अधिक महिलाओं और नाबालिग लड़कियों की मदद की. और आखिरकार 1922 में लंदन बार ने महिलाओं को कानून का अभ्यास करने की अनुमति दे दी. 
 
और इसके बाद कॉर्नेलिया अपनी डिग्री लेने इंग्लैंड गईं. कार्नेलिया कलकत्ता हाईकोर्ट में बैरिस्टर बन कानून की प्रैक्टिस करने वाली पहली महिला बनीं.

उपलब्धियां: 

1929 में कॉर्नेलिया सेवानिवृत्त हुईं और लंदन में बस गईं. उन्होंने 'बिटवीन द ट्वाइलाइट्स' नाम से अपने अनुभवों पर एक किताब लिखी. साल 2012 में, उनके सम्मान के प्रतीक के रूप में लंदन में लिंकन इन, हाई कोर्ट कॉम्प्लेक्स में उनकी एक कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया गया. 


 

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