India's First Voter Died: हिमाचल के मतदान से पहले देश के पहले मतदाता का निधन, नहीं रहे श्याम सरन नेगी

आजाद हिंदुस्तान के पहले वोटर 105 साल के श्याम सरन नेगी ने दुनिया को अलविदा कह दिया. श्याम सरन नेगी ने हाल ही में हिमाचल उपचुनाव में मतदान किया था, और आगामी विधानसभा चुनाव में वोट डालने के लिए काफी उत्साहित थे.

हिमाचल के मतदान से पहले देश के पहले मतदाता का निधन
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 05 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 12:20 PM IST
  • स्वतंत्र भारत के पहले मतदाता
  • 1951 में पहली बार संसदीय चुनाव में डाला वोट

आजाद हिंदुस्तान के पहले वोटर 105 साल के श्याम सरन नेगी ने दुनिया को अलविदा कह दिया. श्याम सरन नेगी ने हाल ही में हिमाचल उपचुनाव में मतदान किया था, और आगामी विधानसभा चुनाव में वोट डालने के लिए काफी उत्साहित थे. स्वतंत्र भारत के पहले मतदाता के तौर पर मशहूर नेगी को भारतीय लोकतंत्र का लीविंग लीजेंड भी कहा जाता था. अपने सुदीर्घ जीवन में उन्होंने 33 बार वोट दिया. बैलेट पेपर से ईवीएम का बदलाव भी देखा. इस विधान सभा के लिए भी उन्हें मतदान के दिन का बेसब्री से इंतजार था.

स्वतंत्र भारत के पहले मतदाता
एक जुलाई 1917 को किन्नौर जिले के तब के गांव चिन्नी और अब के कल्पा में जन्में नेगी अक्सर याद करते थे कि स्वतंत्र भारत के पहले चुनाव के लिए देश भर ने 1952 में वोट डाले थे. लेकिन तब की राज्य व्यवस्था में किन्नौर सहित ऊंचे हिमालयी पर्वतीय क्षेत्रों में 25 अक्टूबर, 1951 को वोट डाले गए थे. क्योंकि वैसे तो भारत के अन्य हिस्सों में फरवरी-मार्च, 1952 में वोट डाले जाने थे. किन्नौर जैसी ऊंची बर्फबारी वाली जगहों में जाड़ा और हिमपात के मद्देनजर पहले ही मतदान करा लिया गया था.

नेगी को साफ साफ याद था कि 1951 में उस वक्त उनके गांव के पास के गांव मूरांग में वो स्कूल में पढ़ाते थे. लेकिन मतदाता वो अपने गांव कल्पा में थे. उस वक्त कल्पा को चिन्नी गांव के नाम से जाना जाता था. नौवीं तक की पढ़ाई तो कष्ट झेलकर कर ली. लेकिन उम्र ज्यादा हो जाने से तब दसवीं में दाखिला नहीं मिला तो मास्टर श्याम सरण नेगी ने शुरू में 1940 से 1946 तक वन विभाग में वन गार्ड की नौकरी की. उसके बाद शिक्षा विभाग में चले गए और कल्पा लोअर मिडिल स्कूल में अध्यापक बने.

1951 में पहली बार संसदीय चुनाव में डाला वोट
अक्टूबर, 1951 में नेगी ने पहली बार संसदीय चुनाव में वोट डाला था. इसके बाद उन्होंने एक भी चुनाव में अपनी भागीदारी न छोड़ी न टाली. वो कहते थे कि मैं अपने वोट की अहमियत जानता हूं. शरीर साथ नहीं दे रहा तो मैं आत्मशक्ति की बदौलत वोट देने जाता रहा हूं. इस बार भी मताधिकार का इस्तेमाल करना है. उन्होंने कुछ दिनों पहले ये आशंका भी जाता दी थी कि हो सकता है कि इस चुनाव में ये मेरा आखिरी मतदान हो. लेकिन यह उम्मीद है. मैं अपने जीवन के अंतिम चरण में इसे छोड़ना नहीं चाहता.

सुबह 6 बजे पहुंच गए पोलिंग बूथ
नेगी ने एक बार बताया था कि "मुझे ड्यूटी के तहत अपने गांव के पड़ोस वाले गांव के स्कूल में चुनाव कराना था.  लेकिन मेरा वोट अपने गांव कल्पा में था. मैं एक रात पहले अपने घर आ गया था. कड़कती ठंड में सुबह चार बजे उठकर तैयार हो गया. सुबह छह बजे अपने पोलिंग बूथ पर पहुंच गया. तब वहां कोई वोटर नहीं पहुंचा था. मैंने वहां पोलिंग कराने वाले दल का इंतज़ार किया. वे आए तो मैंने उनसे अनुरोध किया कि मुझे जल्दी वोट डालने दें. क्योंकि इसके बाद मुझे नौ किलोमीटर दूर पड़ोस के गांव मूरंग जाकर वहां चुनाव कराना था. उन लोगों ने मेरी मुश्किल और उत्साह को समझ लिया. इसलिए मुझे निर्धारित समय से आधा घंटा पहले साढ़े छह बजे ही वोट डालने दिया. इस तरह मैं देश का पहला वोटर बन गया." इसके बाद से नेगी ने एक भी चुनाव मिस नहीं किया. संसद से लेकर पंचायत चुनाव तक. कल्पा में उनके पोलिंग बूथ पर करीब 900 मतदाता हैं.

 

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