भारत में बहुत से माता-पिता का सपना होता है कि उनके बच्चे अच्छा पढ़-लिखकर डॉक्टर या इंजीनियर बनें. लेकिन कई बार घर के आर्थिक हालातों की वजह से सपने अधूरे रह जाते हैं. पर हमारे समाज में कुछ ऐसे विरले छात्र भी होते हैं जो हर तरह की चुनौती को पार करके अपनी मंजिल हासिल कर लेते हैं.
आज हम आपको एक ऐसी ही लड़की के बारे में बता रहे हैं, जिसने अपनी मेहनत और लगन से नीट क्वालीफाई करके एमबीबीएस में दाखिला पाने का सपना पूरा किया है. पश्चिम चम्पारण के सुदूर वनवर्ती क्षेत्र वाल्मीकिनगर की दीपमाला ने दिन-रात मेहनत करके न सिर्फ अपने बल्कि अपने माता-पिता के सपने को भी सच किया है.
तीसरे प्रयास में मिला दाखिला:
दीपमाला ने बताया कि यह उनका तीसरा प्रयास था. इसके पहले वह दो बार नीट की परीक्षा पास करने में सफल हुई थीं लेकिन रैंक अच्छी नही होने के कारण एमबीबीएस में दाखिला नही मिला. लेकिन उन्होंने प्रयास जारी रखे और 2021 मे तीसरी बार में उन्हें एमबीबीएस में दाखिला मिल गया.
उन्होंने पहली बार 2019 मे उन्होंने नीट क्वालीफाई किया था, जिसमे रैंक नीचे होने के कारण उन्हें पटना में आयुर्वेद कॉलेज मिला. दीपमाला ने आयुर्वेदिक कॉलेज में दाखिला ले लिया था लेकिन एक साल पढ़ाई करके उन्हें लगा कि उन्हें फिर से एमबीबीएस के लिए ट्राई करना चाहिए.
फिर 2020 में भी उन्हें एमबीबीएस में दाखिला नही मिला लेकिन उन्होंने हिम्मत नही हारी.आखिरकार इस साल उन्होंने अपना मुकाम हासिल कर लिया. दीपमाला की यह सफलता इसलिए भी मायने रखती है क्योंकि वह बहुत ही साधारण परिवार से आती हैं.
पिता चलाते हैं छोटी-सी दुकान:
उनके माता-पिता जीविकोपार्जन के लिए मेला में एक छोटी सी दुकान चलाते हैं, जिसमें वह माता की चुनरी, चूड़ी, बिंदी, नारियल आदि सामान बेचते हैं. घर की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद दीपमाला ने इसे कभी भी अपनी पढ़ाई में बाधा नहीं बनने दिया. उन्होंने वाल्मीकिनगर स्थित सरकारी स्कूल नदी घाटी उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालय से 12वी तक पढ़ाई की है और खुद दिन-रात पढ़ाई करके यह मुकाम हासिल किया है.
इस सफलता से पूरा परिवार खुश है और लोगो को यह कहने में गर्व हो रहा है कि प्रतिभा धन-दौलत की मोहताज नही होती. क्योकि बहुत से बच्चे कोचिंग में लाखों की फीस देकर भी सफल नहीं हो पाते हैं. वहां एक साधारण परिवार की बेटी का अपने बलबूते पर नीट क्रैक करना किसी प्रेरणा से कम नहीं है.
दीपमाला की इस सफलता में उनका परिवार भी बराबर का भागीदार है. पांच बहन-भाइयों में दीपमाला सबसे बड़ी हैं. लेकिन फिर भी उनके पिता ने अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए कोई कसर नही छोड़ी है. अपनी छोटी-सी दुकान के सहारे, टूटे-फूटे मकान में गुजारा करने वाले इस परिवार की बेटी की यह उपलब्धि काबिल-ए-तारीफ है.