Increase in Groundwater Level: झीलों के रिवाइवल से मिली ग्राउंडवाटर रिचार्ज में मदद, रिसायक्लड पानी का किया गया उपयोग

दिल्ली सरकार का 'City of Lakes' प्रोजेक्ट सफल रहा है. इस जल संरक्षण पहल के तहत सफलतापूर्वक वाटरबॉडीज को रिवाइव किया गया है और इससे भूजल स्तर में अच्छी बढ़ोतरी हुई है. हाल ही में, CSE के रिसर्चर्स ने इस बारे में जानकारी दी.

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gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 27 जून 2024,
  • अपडेटेड 1:05 PM IST

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) के रिसर्चर्स के किए गए एक नए राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण के अनुसार, उपचारित पानी (ट्रीटेड वाटर) का उपयोग करके झीलों को पुनर्जीवित करने की दिल्ली सरकार की परियोजना सफल साबित हुई है. खासकर दक्षिण पश्चिम जिले में, जहां ग्राउंडवाटर यानी कि भूजल में बढ़ोतरी हुई है. सर्वेक्षण में पाया गया कि आर्टिफिशियल झीलें बनाए जाने के बाद पप्पनकलां में जल स्तर लगभग 6 मीटर, निलोठी में 4 मीटर और नजफगढ़ में 3 मीटर बढ़ गया.

इस सर्वेक्षण के निष्कर्षों को 'बैक फ्रॉम द ब्रिंक: रिजुविनेटिंग इंडियाज लेक्स, पॉन्ड्स एंड टैंक्स - ए कम्पेंडियम ऑफ सक्सेस स्टोरीज़' नामक किताब में शामिल किया गया है. इस किताब को हाल ही में, एक संगोष्ठी में जारी किया गया था. यह किताब साल भर के सर्वेक्षण पर आधारित है जिसमें CSE टीम ने 22 राज्य-स्तरीय कार्यक्रमों और पांच केंद्रीय सरकार योजनाओं के तहत निर्मित या बहाल किए गए 250 जल निकायों (वाटर बॉडीज) की समीक्षा की. 

बनाई गईं आर्टिफिशियल झीलें
CSE ने टीओआई को बताया कि दिल्ली सरकार की सिटी ऑफ लेक्स प्रोजेक्ट के तहत, पिछले साल दिसंबर तक 14-15 झीलें आर्टिफिशियल रूप से बनाई गईं या अतिक्रमित झीलों को बहाल किया गया. दिल्ली जल बोर्ड ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को जो रिपोर्ट सौंपी, उसके अनुसार, प्रोजेक्ट के तहत 155 जल निकायों को रिवाइव यानी पुनर्जीवित करने पर विचार किया गया है. पप्पनकलां में, भूजल स्तर 2019 में सतह के स्तर से 21.8 मीटर नीचे था, लेकिन वहां दो झीलों को रिवाइव करने के बाद बढ़कर 6 मीटर हो गया. 

इन साइट्स पर स्थापित पीज़ोमीटर का उपयोग करके भूजल स्तर का अनुमान लगाया गया. ये भूजल दबाव (ग्राउंडवाटर प्रेशर) और समय के साथ भूजल स्तर में बढ़ोतरी की गणना मीटर में करते हैं. सीएसई का कहना है कि दिल्ली में साल में सिर्फ 50 दिन ही बारिश होती है.ऐसे में, शहर की झीलें और दूसरी वाटर बॉडीज में सालभर पानी भरा रहे, इसके लिए इन सभी को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स से जोड़ा गया. इसके पीछे आइडिया यह था कि ये वाटर बॉडीज ट्रीटेड वाटर से भरी रहें. 

ऐसे कम की जा सकती है पानी की कमी 
राज्य सरकार के अनुसार, दिल्ली 37 ऑपरेशनल एसटीपी से 500 मिलियन गैलन प्रति दिन (MGD) या 1,893 मिलियन लीटर प्रति दिन (MLD) रिसायक्लड पानी का उत्पादन करती है, जिनमें से 21 एसटीपी वर्तमान में बर्बाद हो रहे हैं. सीएसई ने बताया कि इस रिसायक्लड पानी को प्रस्तावित झीलों और जलाशयों में इकट्ठा किया जा सकता है और इसका उपयोग शहर में सालाना होने वाली 200MGD (757MLD) पानी की कमी को कम करने के लिए किया जा सकता है. 

सीएसई में जल कार्यक्रम की वरिष्ठ कार्यक्रम प्रबंधक सुष्मिता सेनगुप्ता ने कहा कि यह जल संरक्षण का एक अच्छा उदाहरण है. इस प्रोजेक्ट के तहत जल निकायों को ट्रीटेड वेस्टवाटर से भरा गया. यह भरा हुआ पानी आस-पास के बोरवेलों में भूजल को रिचार्ज करने में मदद करता है. पीज़ोमीटर (उदाहरण के लिए, नजफगढ़ और पप्पन कलां के पास) जो स्थानीय भूजल को रिकॉर्ड करते हैं, उन्होंने सिर्फ एक साल में ग्राउंडवाटर लेवल में 3-4 मीटर की बढ़ोतरी देखी है. 

जल संकट के इस समय में यह सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है कि न केवल वेस्टवाटर, या सीवेज का उपचार किया जाए, बल्कि इसका रिसायकलिंग और रियूज भी किया जाए. शहर के तालाबों और टैंकों का उपयोग ट्रीटेड सीवेज को चैनल करने और बदले में, भूजल को रिचार्ज करने के लिए किया जा सकता है. 

 

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