Delhi: व्रतियों को अर्घ्य देने में नहीं होगी परेशानी, झाग के बीच यमुना में छठ पूजा न हो, इसके लिए जल बोर्ड ने बनाया ये प्लान

दिल्ली जल बोर्ड महापर्व छठ को लेकर अभी से तैयरियों में जुट गया है. छठ पर वर्ती यमुना के झाग में डुबकी न लगाएं इसको लेकर जल बोर्ड समेत सभी एजेंसियां सतर्क हैं. ओखला बैराज के पौंड एरिया से जलकुंभी निकाली जा रही है. झाग बनने के पीछे सबसे बड़ी वजह यमुना का प्रदूषण है.

दिल्ली में झाग के बीच यमुना में छठ पूजा न हो, जल बोर्ड ने बनाया ये प्लान (फाइल फोटो)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 22 अक्टूबर 2023,
  • अपडेटेड 5:14 PM IST
  • दिल्ली जल बोर्ड महापर्व छठ को लेकर तैयरियों में जुटा 
  • झाग बनने की बड़ी वजह है यमुना का प्रदूषण 

महापर्व छठ अगले महीने 17 से 20 नवंबर तक मनाया जाएगा. छठ वर्तियों को कोई परेशानी न हो इसके लिए दिल्ली जल बोर्ड ने अभी से कमर कस ली है. दिल्ली के कुल 250 वॉर्ड में हर एक को 40 हजार रुपए दिए जाएंगे ताकि तैयारियों में किसी तरह की कमी नजर न आए. हालांकि पिछले कई सालों से यमुना के घाटों पर प्रदूषण दिखता है. 

इस बार छठ पर श्रद्धालु यमुना के झाग में डुबकी न लगाएं इसको लेकर दिल्ली जल बोर्ड समेत सभी एजेंसियां सतर्क हैं. यमुना का पानी जहरीला न हो और जगह-जगह झाग न तैरें इसके लिए यमुना में कालोनियों से निकलने वाले नाले न गिरें उनपर नजर रखने के साथ ही, एसटीपी की क्षमता को बढ़ाया जाता है. यमुना किनारों की सफाई भी होती है.

जल बोर्ड के उपाध्यक्ष बोले- खुद लगाऊंगा डुबकी
जल बोर्ड के उपाध्यक्ष सोमनाथ भारती ने बताया की ओखला बैराज के पौंड एरिया से जलकुंभी निकाली जा रही है. सबसे खास इंतजाम किया जा रहा है कि जब पानी खोला जाए तो वो झरने की तरह नहीं बल्कि किसी स्लोप से टकराकर आए जिससे न हलचल होगी और न ही झाग बनेगा. भारती ने कहा कि हाइड्रोलिक एक्सपर्ट से इस पूरे मामले में मदद ली जा रही है. ओखला बैराज पर गेट खोलने और बंद करने के लिए दिल्ली के इरिगेशन एंड फ्लड कंट्रोल डिपार्टमेंट से कंसल्ट किया जा रहा है.

किया गया है अरेंजमेंट 
भारती ने कहा कि हाइड्रोलिक की व्यवस्था ऐसी है कि वहां पर ऊंचाई से पानी गिरने पर झाग का फार्मेशन होता है. इससे किसी भी तरह का खतरा नहीं है. झाग का भी अरेंजमेंट किया गया है. जल बोर्ड ने व्यवस्था की है झाग खत्म करने के लिए डोजिंग और केमिकल्स की व्यवस्था की गई है ताकि किसी को हानि न पहुंचे. भारती का दावा है कि गोवर्धन में दिल्ली की यमुना से कहीं ज्यादा झाग बनता है. दिल्ली में छठ व्रती स्नान कर पाएंगे और मैं खुद डुबकी लगाऊंगा. आपको बता दें कि फास्फेट, सल्फेक्टेंट और ऊपर से पानी गिरने पर तीनों के मिलने से झाग बनता है.

दिल्ली में ये बैराज खुलते ही यमुना में बनने लगता है झाग 
सीपीसीबी के बोर्ड मेंबर और एक्सपर्ट डॉ. अनिल गुप्ता ने बताया की ओखला बैराज खोलते ही पानी तेज बहाव के साथ नीचे आता है (झरने की तरह) यही वजह है कि नीचे आने पर उसमे हलचल होती है और झाग बन जाता है. लेकिन झाग बनने के पीछे सबसे बड़ी वजह यमुना का प्रदूषण है. मसलन यमुना में ओखला बैराज के पास BOD (Bio Chemcial Oxygen Demand) 43 है जबकि 3 Milligram Per Litre (mg/l) रेंज ही अच्छा माना जाता है. 

वहीं पल्ला के इलाके में बीओर जीरो है. Fecal Coliform यानी इंसानी अपशिष्ट और सीवर या नाले से आने वाले सभी अपशिष्ट यमुना के पानी में 2500 mpn/100 ml रेंज ही ठीक माना जाता है. लेकिन आईएसबीटी पर Fecal Coliform का आंकड़ा 8 हजार को पहुंच जाता है. ओखला बैराज तक ये 2 लाख mpn/100ml पहुच जाता है. साफ है कि यहां अनट्रीटेड पानी यमुना में मिलता है.

37 एसटीपी प्लांट में 14 ही स्टैंडर्ड को फॉलो कर रहे 
आपको बता दें कि दिल्ली में 792 MGD गंदा पानी यानी सीवर जेनरेट होता है जबकि सिर्फ 550 MGD ही हो पा रहा है. बाकी 242 एमजीडी अनट्रीटेड पानी ही यमुना में बहा दिया जाता है. दिल्ली में 37 एसटीपी प्लांट में 14 ही स्टैंडर्ड को फॉलो कर रहे है. 550 एमजीडी में से सिर्फ 182.5 एमजीडी पानी ही ढंग से साफ हो रहा है. और असल में झाग अनट्रीटेड वाटर से यमुना का पानी मिलने से बनता है.

दिल्ली में सीवर लाइन है 200 किलोमीटर 
दिल्ली में सीवर लाइन करीब 200 किलोमीटर हैं, जबकि 110 किलोमीटर सीवर लाइन साफ ही नही हो पा रही है और यहीं से गंदगी यमुना में आकर मिलती है. करीब 1052 कॉलोनी में सीवर लाइन ही नहीं डली है इसलिए उसका अपशिष्ट एसटीपी में ना जाकर अनट्रीटेड वाटर ड्रेन के जरिए यमुना में जाता है.

ओखला का एसटीपी प्लांट दिसंबर 2023 तक हो जाएगा पूरा 
दिल्ली जल बोर्ड के वाइस चेयरमैन और मालवीय नगर से विधायक सोमनाथ भारती बताते हैं कि ओखला का एसटीपी प्लांट दिसंबर 2023 तक पूरा हो जाएगा. ये इतना बड़ा होगा कि उसकी रोज की क्षमता 56.4 करोड़ लीटर पानी ट्रीट करने की हो जाएगी. हालांकि पहली बार इस प्लांट में अल्ट्रावायलेट तकनीक का प्रयोग होगा जो कि सिर्फ आरो प्लांट में इस्तेमाल की जाती है और पानी को पीने लायक बनाया जाता है.

(राम किंकर सिंह की रिपोर्ट) 
 

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