इस साल महिला ही होगी दिल्ली की Mayor, जानिए महापौर चुनने के लिए क्या है नियम

MCD Election Result: एमसीडी चुनाव में आम आदमी पार्टी को बहुमत मिला है. AAP ने 134 सीटों पर जीत दर्ज की है. लेकिन अभी भी जरूरी नहीं है कि आम आदमी पार्टी का ही मेयर चुना जाएगा. दरअसल मेयर का चुनाव दिल्ली के लोकसभा सांसद, राज्यसभा सांसद और पार्षद मिलकर करते हैं. इसके अलावा भी एमसीडी एक्ट के कुछ नियम ऐसे हैं, जिसकी वजह से मेयर को लेकर अभी तक तस्वीर साफ नहीं है.

Municipal Corporation of Delhi
शशिकांत सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 07 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 10:02 PM IST
  • पहले साल महिला के लिए मेयर पद आरक्षित
  • तीसरे साल एससी के लिए मेयर पद आरक्षित

दिल्ली नगर निगम चुनाव के नतीजे आ गए हैं. नतीजों के बाद अब मेयर को लेकर जंग तेज हो गई है. हार के बाद भी बीजेपी ने अपना मेयर होने का दावा किया है तो आम आदमी पार्टी मेयर पद को लेकर आश्वस्त है. लेकिन अगर नियमों पर नजर डालें तो सिर्फ चुनाव में जीत से मेयर का पद तय नहीं होता है. मेयर बनाने का काम सिर्फ पार्षदों के हाथ में है. एमसीडी के कुछ नियम ऐसे हैं, जिसकी वजह से बीजेपी मेयर पद को लेकर उत्साहित है. चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव में हार के बाद भी बीजेपी ने अपना मेयर बनाया है. इसलिए बीजेपी के दावे को लेकर हलचल तेज हो गई है.

AAP की जीत, मेयर पर बीजेपी का दावा-
एमसीडी चुनाव में आम आदमी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला है. जबकि बीजेपी दूसरी बड़ी पार्टी बनी है. एमसीडी चुनाव में सबसे खराब प्रदर्शन कांग्रेस का रहा है. कांग्रेस दहाई का आंकड़ा भी नहीं छू पाई है. आम आदमी पार्टी ने 134 सीटों पर जीत दर्ज की है. बीजेपी को 104 सीटों पर जीत हासिल हुई है. जबकि कांग्रेस के खाते में सिर्फ 9 सीटें आई हैं. भले ही सीटों में बीजेपी पिछड़ गई है. लेकिन पार्टी ने मेयर पद पर दावा ठोका है. बीजेपी नेता अमित मालवीय ने ट्वीट किया और कहा कि मेयर कौन बनता है? ये इसपर निर्भर है कि पार्षद किस तरह से मतदान करते है. मालवीय ने चंडीगढ़ में बीजेपी का मेयर चुने जाने का उदाहरण दिया.

क्या बीजेपी का हो सकता है मेयर-
एमसीडी में AAP की जीत हुई है. उसे पूर्ण बहुमत मिला है. लेकिन इसके बावजूद ये तय नहीं है कि आम आदमी पार्टी का ही मेयर बनेगा. क्योंकि एमसीडी में मेयर चुनने का नियम अलग है. इन नियमों की वजह से बीजेपी को बल मिला है. फिलहाल AAP के 134 पार्षद जीतकर आए हैं. जबकि बीजेपी के पास 104 पार्षद हैं. लेकिन मेयर का चुनाव एमसीडी की बैठक में पार्षद करेंगे. अगर चुनाव में क्रॉस वोटिंग होती है तो किसी भी पार्टी का मेयर बन सकता है.

मेयर चुनाव में दल बदल कानून लागू नहीं-
दिल्ली में मेयर के चुनाव में दल बदल कानून लागू नहीं होगा. इसका मतलब है कि पार्षद किसी भी मेयर उम्मीदवार को वोट कर सकते हैं. दरअसल कानून है कि नगर निकाय चुनाव में दल बदल कानून लागू नहीं होता है. अगर कोई पार्षद क्रॉस वोटिंग करता है तो उसे अयोग्य घोषित नहीं किया जा सकता.

मेयर के चुनाव में केंद्र की भूमिका-
एमसीडी एक्ट की धारा 53 के मुताबिक हर वित्तीय वर्ष की पहली बैठक में महापौर का चुनाव होता है. यानी की अप्रैल महीने में पहली वित्तीय बैठक होती है. लेकिन इस बार चुनाव दिसंबर महीने में हुए हैं. इसलिए मेयर चुनने का अधिकार स्वत: ही केंद्र सरकार के पास चला गया है. अब केंद्र सरकार की भूमिका बढ़ गई है. नियम के मुताबिक एमसीडी के कमिश्नर चीफ सेक्रेटरी के जरिए एलजी को बैठक बुलाने और मेयर के चुनाव के लिए प्रिसाइडिंग ऑफिसर नियुक्त करने को लिखेंगे. इसको लेकर ये भी परंपरा है कि एलजी गृहमंत्रालय से हरी झंडी के बाद ही इसे मंजूरी देते हैं. जब तक महापौर का चुनाव नहीं होता है तब तक केंद्र सरकार के जरिए विशेष अधिकारी की नियुक्ति की जा सकती है. जो महापौर के चुनाव तक एमसीडी के कामकाज को देख सके. केंद्र सरकार ने मई 2022 में आईएएस अधिकारी अश्विनी कुमार को एकीकृत एमसीडी के लिए विशेष अधिकारी नियुक्त किया है.

मेयर के लिए कौन करता है वोटिंग-
दिल्ली में मेयर के चुनाव में सिर्फ पार्षद ही वोट नहीं डालते हैं. इसमें दिल्ली के सांसद भी वोट करते हैं. इसका मतलब है कि 250 पार्षद, 7 लोकसभा सासंद और 3 राज्यसभा सासंद मिलकर मेयर का चुनाव करेंगे. इसके अलावा विधानसभा अध्यक्ष के मनोनीत 14 विधायक भी मेयर पद के लिए वोट डालते हैं. इसलिए दिल्ली में मेयर बनने के लिए 138 वोट पाना जरूरी है. आपको बता दें कि दिल्ली में सातों लोकसभा सांसद बीजेपी के हैं, जबकि तीनों राज्यसभा सांसद आम आदमी पार्टी के हैं.

कैसे होता है मेयर का चुनाव- 
एमसीडी एक्ट के मुताबिक चुनाव के बाद जब सदन की पहली बैठक होती है. तब मेयर के चुनाव की प्रकिया शुरू होती है. पहले मेयर पद के लिए नामांकन होता है और उसके बाद पार्षद वोटिंग के जरिए मेयर चुनते हैं. दिल्ली में पार्षदों का कार्यकाल 5 साल के लिए होता है. लेकिन मेयर का कार्यकाल सिर्फ एक साल के लिए होता है. पार्षद हर साल नया मेयर चुनते हैं.

पहले साल महिला ही मेयर-
दिल्ली नगर निगम एक्ट के मुताबिक पहले साल महिला मेयर होना अनिवार्य है. पहले साल के लिए मेयर का पद महिला पार्षद के लिए आरक्षित है. इतना ही नहीं, ये भी तय है कि तीसरे साल अनुसूचित जाति का ही मेयर होगा. बाकी बचे 3 सालों के लिए मेयर का पद अनारक्षित है. कोई भी पार्षद मेयर का चुनाव लड़ सकता है.

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