दिल्ली पुलिस के SI की अनोखी पहल! बनाई 274 लाइब्रेरी, अब युवा सिपाही नहीं अफसर बनना चाहते हैं

द‍िल्ली पुल‍िस में सब इंस्पेक्टर सोनू बैंसला ने उत्तर प्रदेश, ह‍र‍ियाणा और द‍िल्ली में छात्रों के ल‍िए 274 लाइब्रेरी खोली हैं. इन लाइब्रेरी से ग्रामीण पृष्ठभूम‍ि वाले युवाओं को प्रत‍ियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने में मदद म‍िल रही है.

सोनू बैंसला की एक लाइब्रेरी
मनीष चौरसिया
  • नई दिल्ली ,
  • 29 मार्च 2022,
  • अपडेटेड 8:16 PM IST
  • सब इंस्पेक्टर सोनू बैंसला की अनोखी पहल
  • हजारों युवकों को हो रहा इन लाइब्रेरी से फायदा

दिल्ली से लगभग 40 किलोमीटर दूर गाजियाबाद के इस गांव के हर घर में आपको कोई फौजी या पुलिस वाला मिलेगा या फिर फौजी या पुलिस बनने की चाहत रखने वाले युवा मिलेंगे. इस गांव ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा पुलिस को बहुत सारे सिपाही दिए हैं. लेकिन एक वक्त ऐसा था जब गांव के युवा सिर्फ सिपाही बनने का ही सपना देखते थे. अफसर बनने का ख्याल उनके जहन में आता ही नहीं था. लेकिन अब यहां बदलाव की बयार चल पड़ी है.

गांव में अब एक शानदार चमचमाती हुई लाइब्रेरी बन चुकी है. यहां ढेर सारी किताबें हैं ऑनलाइन पढ़ाई के लिए वाई-फाई है, हर स्टूडेंट का अपना एक पर्सनल क्यूब है, सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरे हैं. और यह सब कुछ फ्री है.

बच्चों के लिए इस शानदार लाइब्रेरी को बनाया है सोनू बैंसला ने. सोनू गाजियाबाद के इसी गांव गनौली के रहने वाले हैं. सोनू दिल्ली पुलिस में सिपाही के पद पर भर्ती हुए थे और अब सब इंस्पेक्टर की पोस्ट पर तैनात हैं.

'कोरोना हुआ तो सोचा कुछ हो गया तो लोग मुझे क्यों याद रखेंगे'
सोनू कहते हैं कि गांव में शिक्षा को लेकर बहुत अभाव था. गांव में अगर कोई कभी सिपाही बन जाता था, वह पूरे गांव के लिए रोल मॉडल होता था. गांव के लोगों को लगता था कि इतना ही काफी है. मुझे यह बात हमेशा खटकती थी. सोनू बताते हैं कि 2020 में कोरोना की लहर में वो भी उसका शिकार हुए लेकिन जब वह अकेले में क्वारंटीन थे तो उन्हें लगा कि मैंने अपने बीवी बच्चों के लिए तो बहुत कुछ किया लेकिन समाज के लिए कुछ नहीं. अगर यहां से मैं ठीक होकर वापस जाता हूं तो समाज के लिए जरूर कुछ करूंगा.

इसके बाद ठीक होकर जब सोनू अपने गांव पहुंचे तो उनका कोरोना वॉरियर के रूप में जोरदार स्वागत किया. इसके बाद समाज के लिए कुछ करने का जज्बा और मजबूत हो गया. फिर सरकारी नौकरी करने वाले अपने साथियों से बात की. सब ने सहयोग किया और लाइब्रेरी खुल गई. धीरे-धीरे हमने यूपी, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली में 274 से ज्यादा लाइब्रेरी खोली हैं. हमारा मकसद है कि देश के हर गांव की अपनी लाइब्रेरी हो.

'दिन में काम और रात में लाइब्रेरी में पढ़ाई करते हैं'
सोनू ने अपने ही जैसे सरकारी कर्मचारियों के साथ मिलकर गांव में एक लाइब्रेरी बनवाई. इस लाइब्रेरी का एक मकसद था कि गांव के बच्चों को वो माहौल देना जिसमें बैठकर वो कॉम्पेटेट‍िव एग्जाम के बारे में सोचें. और सोचें भी तो सिर्फ यही कि उन्हें अफसर बनना है. सोनू बैंसला कहते हैं कि इस लाइब्रेरी का मकसद सिर्फ किताब या बच्चों को वाईफाई देना नहीं बल्कि उन्हें एक माहौल देना है. ग्रामीण परिवेश में बच्चे घर में रहते हैं तो उन्हें 10 तरह के काम बता दिए जाते है. ऐसे में उन्हें पढ़ाई के लिए माहौल नहीं मिलता. हालांकि इस लाइब्रेरी में आने वाले अधिकतर बच्चे ऐसे हैं जिनके माता-पिता मजदूरी करते हैं कई बच्चे तो ऐसे हैं जो खुद दिन में छोटी मोटी जगह काम करते हैं और रात में लाइब्रेरी में आकर पढ़ाई करते हैं.

'दिल्ली में कोचिंग के पैसे नहीं हैं'
यहां पढ़ने आने वाले कई बच्चे बताते हैं कि अगर यह लाइब्रेरी ना होती तो उनकी पढ़ाई का क्या होता और उन्हें कितना संघर्ष करना पड़ता. 17 साल के अंकुश बताते हैं कि घर में माहौल अच्छा नहीं है, पापा बीमार रहते हैं इसलिए आर्थिक तंगी भी रहती है. इस लाइब्रेरी की वजह से वो आराम से पढ़ाई कर पा रहे हैं.

इस लाइब्रेरी से जुड़े सुमित शर्मा का कहना है कि पहले मुखर्जी नगर में कोचिंग करता था, रोज लगभग 300 रुपए खर्च होते थे. पापा की किराना की दुकान है ज्यादा कमाई नहीं है. लेकिन लाइब्रेरी बनने के बाद लगता है जैसे मुखर्जीनगर गांव में ही आ गया. आने जाने के जो पैसे बचते हैं उससे ऑनलाइन कोर्स खरीद लेता हूं.
 

 

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