Weather Update: एक ही शहर में अलग-अलग जगहों पर क्यों होता है अलग-अलग तापमान

दिल्ली के एक वेदर स्टेशन ने 29 मई को अधिकतम तापमान 52.9 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया, लेकिन दिल्ली में ही एक अन्य स्टेशन पर तापमान 45.2 डिग्री दर्ज किया गया. एक ही शहर में अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तापमान क्यों?

Delhi temperature
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 30 मई 2024,
  • अपडेटेड 4:05 PM IST

दिल्ली के मुंगेशपुर स्थित मौसम केंद्र ने बुधवार (29 मई) को अधिकतम तापमान 52.9 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया. मंगलवार को इसी जगह पर तापमान 49.9 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था. हालांकि, दिल्ली में दूसरी जगहों पर अधिकतम तापमान मुंगेशपुर की तुलना में कम से कम 6 या 7 डिग्री सेल्सियस कम दर्ज किया गया. उदाहरण के लिए, राजघाट और लोधी रोड पर बुधवार को अधिकतम तापमान क्रमशः 45.2 और 46.2 डिग्री सेल्सियस था. 

दिल्ली भर में कई मौसम केंद्र हैं, जिनमें से हर एक विशेष स्थान पर तापमान रिकॉर्ड करता है. कई वेधशालाएं (Observatories) और स्वचालित मौसम स्टेशन (Automatic Weather Station) शहर के भीतर अलग जगहों पर स्थित हैं - और कोई भी एक वेधशाला या स्टेशन नहीं है जो पूरी दिल्ली का औसत तापमान बताता हो. पालम, लोधी रोड, रिज, आयानगर, जाफरपुर, मुंगेशपुर, नजफगढ़, नरेला, पीतमपुरा, पूसा, मयूर विहार और राजघाट पर तापमान दर्ज किया गया. 

आपके मोबाइल फोन पर मौसम/टेंप्रेचर ऐप निकटतम स्टेशन पर तापमान दिखाता है, जो जरूरी नहीं कि आधिकारिक भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) स्टेशन का हो. यही बात आपके फ़ोन पर AQI/वायु प्रदूषण डेटा के लिए भी लागू होती है. अगर आप पीतमपुरा से राजघाट तक शहर भर में ड्राइव करते हैं, तो आपको संभवतः अपने फोन पर अलग-अलग तापमान दिखाई देंगे.

अलग-अलग जगहों पर तापमान अलग-अलग 
वैसे तो किसी विशेष क्षेत्र में तापमान काफी हद तक मौसम पर निर्भर करता है. लेकिन कई मानवजनित कारक भी इसमें भूमिका निभाते हैं, खासकर दिल्ली जैसे बड़े शहरी केंद्र में. इन कारकों में फुटपाथ, इमारतों, सड़कों और पार्किंग स्थलों की सघनता (Concerntration) शामिल है. सामान्य तौर पर, कठोर और सूखी सतहें कम छाया और नमी प्रदान करती हैं, जिससे तापमान बढ़ जाता है.

बुनियादी ढांचे के निर्माण में उपयोग की जाने वाली सामग्री का भी प्रभाव पड़ता है. उदाहरण के लिए, ऐसी जगहें जहां ज्यादातर फुटपाथ और इमारतें कंक्रीट से बनी होती हैं, वहां तापमान ज्यादा होता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि कंक्रीट हवा की समतुल्य मात्रा की तुलना में लगभग 2,000 गुना ज्यादा गर्मी धारण कर सकता है. 

इमारतों की ज्यामिति (जियोमेट्री) और दूरी भी एक कारक है. अगर कोई जगह बिल्डिंग्स, सरफेस, और स्ट्रक्चर्स से घनी आबादी वाला है तो वहां "बड़े थर्मल मासेज" बन जाते हैं क्योंकि वे आसानी से गर्मी नहीं छोड़ पाते हैं. बहुत संकरी सड़कें और ऊंची इमारतें प्राकृतिक हवा के प्रवाह में बाधा डालती हैं जो आम तौर पर तापमान को नीचे लाती हैं. शॉपिंग मॉल और रेजिडेंशियल इलाकों में एयर कंडीशनर के भारी उपयोग की वजह से भी तापमान बढ़ता है, क्योंकि एसी भारी मात्रा में गर्मी बाहर छोड़ते हैं.

अर्बन हीट आइलैंड
इस तरह के कारणों से कोई भी जगह 'अर्बन हीट आइलैंड' बन सकती है. इन जगहों में बाहरी क्षेत्रों की तुलना में ज्यादा तापमान का अनुभव होता है. किसी स्थान के अर्बन हीट आइलैंड बनने की संभावना तब ज्यादा होती है जब वहां पेड़, वनस्पति और वाटर बॉडीज नहीं होते हैं. नेचुरल लैंडस्केप्स तापमान में कमी लाते हैं क्योंकि वे छाया देते हैं, और पौधों से ट्रांसपिरेशन और वाटर बॉडीज से इवेपोरेशन की प्रोसेस ठंडक पैदा करती हैं. यह कूलिंग इफेक्ट दिल्ली के बड़े पार्कों या शहरी जंगलों के आसपास प्रमाण में है. 

 

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