दिव्यांगता नहीं बनी राह का रोड़ा...टेक्नोलॉजी ने बदली सुमित की जिंदगी, आज हैं लाखों लोगों की प्रेरणा

सुमित मेहता के लिए हर रोज जीवन एक दैनिक लड़ाई है, उनकी सफलता की कहानी भी है और मानव आत्मा की जीत भी. सुमित जन्म से ही मस्क्युलर डिस्ट्रफ़ी (Muscular Dystrophy) से ग्रस्त हैं जिसके कारण सुमित कभी भी अपने आप न तो बैठ सकते हैं और न ही चल सकते हैं.

टेक्नोलॉजी ने बदली सुमित की जिंदगी
ललित शर्मा
  • चंडीगढ़ ,
  • 09 अगस्त 2022,
  • अपडेटेड 6:12 PM IST
  • संगीत में स्नातक की डिग्री पूरी कर चुके हैं सुमित
  • टेक्नोलॉजी ने बदली सुमित की जिंदगी

जो व्यक्ति जन्म से ही विकृतियों और दिव्यांगता के साथ पैदा हुआ हो उसके लिए जीवन जीना ही प्रकृति का सबसे बड़ा आशीर्वाद होता है. लेकिन वहीं समाज में कुछ ऐसे दिव्यांग लोग भी हैं, जिन्होंने अपनी दिव्यांगता को कभी मजबूरी नहीं बनने दिया. इन लोगों ने अपनी इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास से मजबूरी को ही मजबूती में तब्दील कर दिया और दिव्यांग होने के बाद भी सफलता के ऐसे झंडे गाड़े की आम लोगों को भी पीछे छोड़ कर अपने जैसे लाखो लोगों के लिए मिसाल बन गए. आज आपको पंचकूला के 39 वर्ष के सुमित मेहता की कहानी बताते हैं जो की जन्म से ही मस्क्युलर डिस्ट्रफ़ी (Muscular Dystrophy) से ग्रसित हैं. जिसके कारण वो उठ, बैठ या चल नहीं सकते है लेकिन फिर भी अपनी हिम्मत और हौसले से अपनी पढ़ाई पूरी आज घर बैठे अच्छे स्तर पर काम कर रहे हैं.

संगीत में स्नातक की डिग्री पूरी कर चुके हैं सुमित
सुमित मेहता के लिए हर रोज जीवन एक दैनिक लड़ाई है, उनकी सफलता की कहानी भी है और मानव आत्मा की जीत भी. सुमित जन्म से ही मस्क्युलर डिस्ट्रफ़ी (Muscular Dystrophy) नामक बीमारी से ग्रस्त हैं जिसके कारण सुमित कभी भी अपने आप न तो बैठ सकते हैं और न ही चल सकते हैं. सुमित मेहता ने स्कूल में शायद ही कोई औपचारिक शिक्षा प्राप्त की हो. सुमित बताते है की क्योंकि मेरे जैसे शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के लिए कोई विशेष स्कूल नहीं था, मुझे मानसिक रूप से विकलांग बच्चों के लिए कक्षा III और IV में दो साल के लिए एक स्कूल भेजा गया था. मैं वहां कभी भी मन से नहीं पढ़ सका, क्योंकि मेरे पास एक अच्छी तरह से विकसित मस्तिष्क था, और कक्षा 5 में, मैं सेंट माइकल्स स्कूल, पंचकुला में स्थानांतरित हो गया, जहां मुझे सामान्य बच्चों के साथ पढ़ाया जाता था. तब मुझे एहसास हुआ कि मैं कितना भाग्यशाली था कि मेरे पास एक अच्छी बुद्धि थी. आखिरकार, मुझे केवल एक शारीरिक विकृति का सामना करना पड़ा. मैंने नौ साल की उम्र में स्कूल जाना शुरू किया, और 13 साल की उम्र तक स्कूल गया. प्राइवेट स्कूल से 10वीं और   प्लस टू को पास करने के बाद सुमित ने संगीत में स्नातक की डिग्री पूरी की.

टेक्नोलॉजी ने बदली सुमित की जिंदगी
टेक्नोलॉजी कैसे किसी को उबार सकती है, कैसे किसी के जीवन को बदल सकती है उसका जीता जगता उदाहरण सुमित मेहता है. सुमित मेहता ने बताया की उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट तब आया जब उनके पिता जी डीडी मेहता ने कंप्यूटर ख़रीदा और वो चाहते थे की सुमित कंप्यूटर सीखे, सुमित कंप्यूटर और टेक्नोलॉजी के ऐसे दीवाने हुए की सुमित ने खुद ही कंप्यूटर सीखना शुरू किया. सुमित बताते है की सभी कंप्यूटर संस्थान पहली या दूसरी मंजिल पर स्थित हैं, और मैं वहाँ सीखने के लिए नहीं जा सका. हालांकि हमने घर आने के लिए एक प्रशिक्षक की व्यवस्था की थी, मैंने कुछ बुनियादी किताबें खरीदी थीं, और अपने दम पर कंप्यूटर सीखना शुरू किया. जब मैंने कंप्यूटर सीखना शुरू किया, तो मुझे अपना ईमेल अकाउंट बनाने में पांच घंटे लगे, लेकिन तब से मैंने एक लंबा सफर तय किया है. मैंने विभिन्न कंप्यूटर भाषाएं सीखी हैं जैसे की C, C+ और एक उन्नत जावा पाठ्यक्रम पूरा किया है.

सुमित मेहता बताते हैं की कंप्यूटर की अच्छी जानकारी जुटाने के बाद और उसमें प्रशिक्षित होने के बाद वर्ष 2009 में उन्हें एक आईटी सॉफ्टवेयर कंपनी में नौकरी मिली. उसके बाद से पिछले एक दशक से वो विदेश की एक प्रोडक्ट बेस्ड कंपनी के साथ काम कर रहे हैं. सुमित मेहता कहते हैं कि जो भी ऐसी विकलांगताओं से ग्रस्त है. उन्हें हमेशा प्यार, प्रोत्साहन और हिम्मत की जुरर्रत होती है और विकलांगता आप पर सिर्फ 30 प्रतिशत असर डालती है. लेकिन अगर आप अनपढ़ या अशिक्षित हो तो विकलांगता आप पर 100 प्रतिशत हावी हो जाती है. आप सिर्फ दूसरों पर ही निर्भर हो जाते हो. सुमित कहते है की विकलांगता को अगर हराना है तो पढ़ना और शिक्षित होना आपके लिए वरदान है और आप आत्मनिर्भर हो कर इस समाज की मुख्य धारा में सर ऊँचा कर आपने जीवन जी सकते हो.

मस्कुलर डिस्ट्रॉफी क्या होती है?
मस्क्युलर डिस्ट्रफ़ी (Muscular Dystrophy) मांसपेशियों को प्रभावित करने वाली एक आनुवंशिक बीमारी है. इस बीमारी के होने पर मांसपेशियों की कोशिकाओं में डाइस्ट्रोफिन (Dystrophin) नामक एक प्रोटीन का उत्पादन होना कम होने लगता है या उसका उत्पादन पूरी तरह से बंद भी हो सकता है. इसकी वजह से मांसपेशियां धीरे-धीरे खत्म होना शुरू हो जाती हैं और लंबे तक इसकी स्थिति के कारण वो पूरी से खराब भी हो सकती है. यानी अगर शरीर के किसी हिस्से का मांसपेशियों को यह बीमारी प्रभावित करती हैं और समय रहते उसका उपचार न किया जाए, तो वह प्रभावित हिस्सा पूरा से खराब हो सकता है.

 

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