कोरोना काल में डॉक्टरों को डोलो-650 दवा लिखने के लिए दिए गए थे हजार करोड़ के उपहार, जज बोले- 'मैंने भी यही दवा खाई थी'

एडवोकेट अपर्णा भट के माध्यम से अदालत में जनहित याचिका (PIL) दायर की गई थी, जिसमें यूनिफ़ॉर्म कोड ऑफ़ फार्मास्युटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिसेस (UCPMP) से वैधानिक समर्थन की मांग की गई थी. याचिका के दौरान दावा सुनकर जज भी हैरान रह गए कहा,'मैंने भी यही खाई थी'.

Dolo 650
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 19 अगस्त 2022,
  • अपडेटेड 8:21 AM IST
  • कई ठिकानों पर छापेमारी
  • दस दिनों में मांगा जवाब

डोलो-650 एक ऐसी दवा जो हम और आप में से हर किसी ने खाई होगी, और अगर नहीं खाई तो कोरोना महामारी तो दौरान बुखार आया होगा तो डॉक्टर ने यही दी होगी. आप सोच रहे होंगे कि दवाई बहुत अच्छी है लेकिन असल में डॉक्टरों को ये दवा लिखने के लिए पैसे दिए गए थे. जी हां, आपको भले अजीब लगे लेकिन दवा कंपनियां अक्सर दवाइयों के प्रमोशन के लिए इस तरह कि तकनीक का इस्तेमाल करती हैं.

क्या है मामला?
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने डोलो-650 टैबलेट के निर्माताओं पर दवा लिखने के लिए डॉक्टरों को मुफ्त उपहार वितरित करने के लिए 1,000 करोड़ रुपये खर्च करने का आरोप लगाया है. फेडरेशन ऑफ मेडिकल एंड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FMRAI) बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में, FMRAI का प्रतिनिधित्व करने वाले एडवोकेट संजय पारिख ने कहा कि DOLO ने बार और बेंच (B & B) के अनुसार निर्धारित राशि को 'फ्रीबीज' में निवेश किया था.

कई ठिकानों पर छापेमारी
वहीं सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज (CBDT) ने भी छापेमारी के बाद दावा किया था कि दवा निर्माता कई तरह की अनैतिक गतिविधियां करता है. सीबीडीटी ने कहा था कि 300 करोड़ रुपये की टैक्स की चोरी भी की गई. एजेंसी ने कंनपी के 36 ठिकानों पर छापेमारी की थी.फेडरेशन की तरफ से पेश हुए वकीलल संजय पारिक ने कहा, डोलो ने डॉक्टरों को 1 हजार करोड़ रुपये के मुफ्त उपहार दिए ताकि उनकी दवा का प्रमोशन हो.

दायर की याचिका
एडवोकेट अपर्णा भट के माध्यम से अदालत में जनहित याचिका (PIL) दायर की गई थी, जिसमें यूनिफ़ॉर्म कोड ऑफ़ फार्मास्युटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिसेस (UCPMP) से वैधानिक समर्थन की मांग की गई थी. इसमें कहा गया है कि स्वास्थ्य का अधिकार जीवन के अधिकार का हिस्सा है और फार्मा कंपनियों को नैतिक मार्केटिंग प्रैक्टिसेस का पालन करना चाहिए.

दस दिनों में मांगा जवाब
पीठ की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि यह एक गंभीर मुद्दा है. उन्होंने बार एंड बेंच के हवाले से कहा, "यह मेरे कानों के लिए संगीत नहीं है. मुझे भी कोविड होने पर भी डोलो दवाई दी गई थी. यह एक गंभीर मामला है." केंद्र सरकार को दस दिनों के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया गया है. इसका प्रतिनिधित्व एडिशनल सॉलिसिटर केएम नटराज कर रहे थे.

स्वास्थय के लिए खतरा
याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि भारत में फार्मा मार्केटिंग प्रथाओं में भ्रष्टाचार अनियंत्रित है. रिपोर्ट में कहा गया है कि यह देश भ्रष्टाचार के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के हस्ताक्षरकर्ता होने के बावजूद है. वर्तमान में भारत में कोई भी कानून ऐसी किसी भी प्रथा को प्रतिबंधित नहीं करता है.याचिका में कहा गया है कि इस तरह की दवाएं मरीज के जीवन और स्वास्थ्य के लिए खतरा हैं. यह भी कहा कि इस स्थिति में, ग्राहक ब्रांडेड दवाओं के लिए भुगतान करता है जो डॉक्टरों द्वारा "over-prescribed" या "irrationally prescribed"हैं.

इसने तर्क दिया कि यूसीपीएमपी (UCPMP) को वैधानिक आधार देने से प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही मिलेगी. हालांकि, सरकार ने यूसीपीएमपी का मसौदा जारी किया और सुनवाई के तुरंत बाद जनता से टिप्पणियां मांगी.


 

 

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