DRDO और IIT Delhi ने बनाई सेना के लिए आधुनिक बुलेट प्रूफ़ जैकेट, वजन कम और क्षमता ज्यादा... इस मामले में अमेरिकी सेना को भी छोड़ा पीछे

IIT Delhi Bulletproof Jacket: इन दोनों ही बुलेटप्रूफ़ जैकेट का वजन सेना में इस्तेमाल हो रही मौजूदा जैकेट से कम है. यही नहीं, दुनिया में इस्तेमाल हो रहे बुलेटप्रूफ जैकेट के वजन के मुकाबले में भी इन जैकेट का वजन काफी कम है.

इस जैकेट को तैयार करने में चार साल का समय लगा है.(Photo/Manish Chaurasiya)
मनीष चौरसिया
  • नई दिल्ली,
  • 01 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 9:43 AM IST

आईआईटी दिल्ली (IIT Delhi) और डीआरडीओ (Defence Research and Development Organisation) ने मिलकर भारतीय सेना के लिए दो नए बुलेटप्रूफ़ जैकेट बनाये हैं. इनमें से एक बुलेटप्रूफ़ जैकेट एके-47 (AK 47) की गोलियों से निपटने के लिए है, जबकि दूसरी स्नाइपर से बचने के लिए. दोनों ही जैकेट का नाम अभेद रखा गया है. अभेद यानी (Advance Ballistics for High Energy Defeat). 

कम हुआ जैकेट का वजन
इन दोनों ही बुलेटप्रूफ़ जैकेट का वजन सेना में इस्तेमाल हो रही मौजूदा जैकेट से कम है. यही नहीं, दुनिया में इस्तेमाल हो रहे बुलेटप्रूफ जैकेट के वजन के मुकाबले में भी इन जैकेट का वजन काफी कम है. सेना के जवानों के लिए बुलेटप्रूफ जैकेट का वजन बहुत मायने रखता है क्योंकि उन्हें उसे पहन कर ही मोर्चा संभालना होता है. 

मौजूदा वक्त में भारतीय सेना एके-47 की गोलियों से निपटने के लिए करीब 10.4 किलोग्राम वजन की बुलेटप्रूफ़ जैकेट इस्तेमाल कर रही है जबकि नई अभेद बुलेटप्रूफ जैकेट का वजन महज 8.2 किलोग्राम है. एंटी-स्नाइपर जैकेट का वज़न 9.5 किलो है. यह पूरी दुनिया में सेना के लिए इस्तेमाल होने वाली किसी भी स्नाइपर बुलेटप्रूफ जैकेट के वजन से बेहद कम है. इस जैकेट की खासियत यह है कि यह 360 डिग्री की सेफ़्टी प्रदान करती है.

'अब ज़्यादा गोली भी झेलने की क्षमता’
अभेद नाम की ये दोनों ही बुलेटप्रूफ़ जैकेट ज्यादा बुलेट झेलने की क्षमता रखती हैं. आईआईटी दिल्ली में रिसर्च एवं डेवलपमेंट विभाग के डीन प्रोफ़ेसर नरेश भटनागर बताते हैं कि अब तक सेना जो बुलेटप्रूफ़ जैकेट इस्तेमाल कर रही है वह लगभग छह बुलेट झेलने की क्षमता रखती है. लेकिन नई जैकेट में आठ बुलेट झेलने की क्षमता है. 

इसी तरह नई स्नाइपर बुलेटप्रूफ जैकेट में भी छह से आठ गोलियां झेलने की क्षमता होगी. प्रोफेसर नरेश बताते हैं कि स्नाइपर बुलेटप्रूफ जैकेट के मामले में हमने अमेरिकी सेना को भी पीछे छोड़ दिया है. अमेरिकी सेना जिस स्नाइपर बुलेटप्रूफ जैकेट का इस्तेमाल अभी कर रही है वह महज़ 1-3 गोलियां की झेल सकती है. 

चार साल की कोशिश के बाद तैयार हुई जैकेट
प्रोफेसर भटनागर बताते हैं कि वे लंबे समय से इस जैकेट को तैयार करने की कोशिश कर रहे थे. कई बार असफलता हाथ लगने के बाद भी उनकी टीम ने हिम्मत नहीं हारी. आखिरकार चार साल की कोशिशों के बाद वह जैकेट बनाने में कामयाब रहे. जीएनटीटीवी डॉट कॉम ने आईआईटी दिल्ली की वह लैब भी देखी जहां ये दोनों जैकेट तैयार की गईं. 

बुलेटप्रूफ जैकेट में प्लेट से लेकर एक-एक मटेरियल तक की बारीकी से जांच की जाती है. डिजाइन की नकल तैयार की जाती है. प्रोटोटाइप बनाकर टेस्ट किया जाता है और इसके बाद ही यह जैकेट टेस्टिंग के लिए चंडीगढ़ की टर्मिनल बॉलिस्टिक रिसर्च लैबोरेट्री (TBRL) में अंतिम टेस्ट के लिए जाती है. अब डीआरडीओ और आईआईटी दिल्ली इस टेक्नोलॉजी को तीन भारतीय कंपनियों को ट्रांसफर कर रही है. 

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